नीलेश बड़ा असमंजस में था, समझ में ही नहीं आ रहा था कि हंसे या रोए। सामने मार्कशीट पड़ी हुई थी, जिसमें हर विषयों में उसे सबसे अधिक नंबर मिले थे पर उसे वह खुशी नहीं मिल पा रही थी जो अच्छे अंक मिलने पर होती है।
आखिर नीलेश के साथ ऐसा क्यों हो रहा था… क्या हुआ था नीलेश के साथ?
दरअसल, नीलेश और कमल दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। पर दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। जहां कमल शांत स्वभाव का था, वहीं नीलेश को हर समय कोई ना कोई शरारत सूझते रहती थी। पढ़ाई में उसका मन ही नहीं लगता था। वहीँ कमल पढ़ाई में अव्वल था। शिक्षक के हर सवालों का जवाब वह फट्ट से दे देता था। नीलेश को इसी चीज की तकलीफ थी। खुद पढ़ाई में ध्यान ना लगा कर कमल के हर क्रियाकलापों की कॉपी करना ही उसका काम था। कैसे उसे पीछे धकेले और नीचा दिखाए, बस इसी चक्कर में वह हमेशा लगा रहता था। इन सबके बीच में इसका सबसे बुरा असर उसकी खुद की पढ़ाई पर पड़ रहा था।
इसी तरह एक बार लंच टाइम में जब कमल थोड़ी देर के लिए कक्षा से बाहर गया तो नीलेश ने उसके स्कूल बैग से विज्ञान की कॉपी चुरा ली। ताकि जब शिक्षक उससे कुछ पूछे तो वह जवाब देने की स्थिति में ना हो। हुआ भी वही शिक्षक की खूब डांट पड़ी कमल को। निलेश तो मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।
हर समय नीलेश मौके की ताक में रहता कि कैसे कमल को परेशान करें। एक तरह से वह कमल की वजह से हीन भावना का शिकार भी होते जा रहा था। उसे लगता था कि वह कभी पढ़ाई नहीं कर पाएगा। कभी कमल का पेन गायब कर देता तो कभी लंच बॉक्स में खाना ही नहीं रहता। कमल को परेशान देखकर उसे बड़ी खुशी होती थी। धीरे-धीरे उसकी शरारत और हीन भावना दोनों ही बढ़ने लगे। क्लास के दूसरे बदमाश लड़कों से भी उसकी दोस्ती हो गई थी जो उसे हर समय उकसाते रहते थे ।
नीलेश की एक दोस्त थी रितिका जिसकी हर बात वह मानता था। नीलेश की हरकतों को देखकर रितिका को बड़ी तकलीफ हो रही थी, उसने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह हीन भावना का ऐसा शिकार हुआ था कि निकल ही नहीं पा रहा था।
देखते-देखते परीक्षाएं नजदीक आ गयीं। निलेश की पूरी कोशिश थी कि इस बार कमल को पहले रैंक पर नहीं आने देगा। अचानक कुछ उड़ती हुई खबर मिली उसे। उसके कुछ उद्दंड दोस्तों ने एग्जाम के पेपर चुरा लिए और नीलेश को दे दिया। नीलेश की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। अब तो इस बार वह अव्वल आकर ही रहेगा। परीक्षाएं खत्म हो गई और कुछ दिन के बाद रिजल्ट भी आ गया। अपनी कक्षा में वह सबसे अव्वल था। उसने कमल की तरफ विजयी मुस्कान से देखा। आज उसने कमल को पीछे छोड़ दिया था। कमल को अपने कम नंबरों से थोड़ी निराशा जरूर थी पर वह हारा नहीं था। उसने नीलेश को उसके सफलता पर बहुत बधाई दी और उसे गले लगा लिया।
नीलेश असमंजस में पड़ गया, क्या करे क्या ना करे, अपने स्वभाव पर रोए या कमल की अच्छाई पर खुश हो। जिस लड़के को उसने परेशानी के सिवा कुछ ना दिया था, आज वही उसे उसकी सफलता पर बधाई दे रहा था। पल भर में ही उसकी जीत की खुशी काफूर हो गई और आईने की तरह उसके कारनामे सामने दिखने लगे।
बेईमानी से लायी गयी रैंक पर उसे अब बड़ी शर्मिंदा हो रही थी, सामने रखे अच्छे अंक भी उसे बार-बार उसकी गलतियों का एहसास करा रहे थे। उसकी आंखों के कोरों से शर्मिंदगी के आंसू बहने लगे और अपनी गलतियों को सुधारने का मौका सूझने लगा। उसने मन में ठान लिया कि वह कमल से अपनी पिछली गलतियों के लिए माफी मांगेगा और शिक्षक के सामने अपनी चोरी भी कुबूल करेगा, चाहे उसे स्कूल से निकलना ही क्यों ना पड़े।
तभी सर ने आवाज दी, “नीलेश यहाँ आओ, तुम्हारी क्लास में फर्स्ट रैंक आई है, मैं तुमसे बहुत खुश हूँ, बताओ तुमने ये सफलता कैसे हासिल की?”
नीलेश बड़ा असमंजस में था, समझ में ही नहीं आ रहा था कि हंसे या रोए। सामपेपर ने मार्कशीट पड़ी हुई थी, जिसमें हर विषयों में उसे सबसे अधिक नंबर मिले थे पर उसे वह खुशी नहीं मिल पा रही थी जो अच्छे अंक मिलने पर होती है।
नीलेश दबे क़दमों से ब्लैक बोर्ड के सामने पहुंचा-
“सर, फर्स्ट रैंक मेरी नहीं कमल की आई है, मैं आप सभी से माफ़ी मांगता हूँ… मैंने चीटिंग की है, कमल को नीचा दिखाने के लिए मैंने पेपर आउट करा दिया था।
सर, आप इसकी जो चाहे वो सजा मुझे दे सकते हैं। कमल, I am really sorry! मैंने हमेशा तुम्हे परेशान करता रहा पर आज तुमने ही मुझे गले लगा कर बधायी दी।”
और ये कहते-कहते नीलेश की आँखों में आँसू आ गए।
क्लास के सबसे शरारती बच्चे को इस तरह टूटता देख सभी भावुक हो गए, रितिका और कमल फ़ौरन उसके पास पहुंचे और उसका हाथ थाम लिया।
स्कूल मैनेजमेंट ने भी नीलेश का पश्चाताप बेकार नहीं जाने दिया और पुनः परीक्षा ले उसे पास कर दिया।
अब नीलेश समझ चुका था कि बेईमानी से पायी गयी सफलता कभी ख़ुशी नहीं दे सकती, असली ख़ुशी ईमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चल कर ही पायी जा सकती है।