Udarikaran aur Aatmanirbharata
उदारीकरण एवं आत्मनिर्भरता , Udarikaran aur Aatmanirbharata , Liberalization and Self-reliance
सन 1991 की बात है जब देश में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण था । गठबंधन की सरकार जोड़-तोड़ के सहारे चल रही थी । जोड़-तोड़ की इसी कड़ी में चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने थे । यह उस वक्त की बात है।जब अमेरिका खाड़ी युद्ध में व्यस्त था और भारत ने अपना सोना गिरवी रख कर सरकार का खर्चा चला रहे थे। देश मे अघोषित आर्थिक आपातकाल था । देश मे मध्य अवधि चुनावों की घोषणा हो चुकी थी । अस्थिर और गठबंधन सरकारों के कारण मध्य अवधि चुनावों के बाद नई सरकार का गठन होता है। नई सरकार ने आर्थिक संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था को मजबूरी में ही सही उदारीकरण के सहारे संजीवनी देने का प्रयास किया ।
उदारीकरण से तात्पर्य है अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से आर्थिक नीतियों , शर्तों नियमों , प्रशासनिक नियंत्रण आदि को उदार बनाना । उदारीकरण मे अर्थव्यवस्था विकसित होने के साथ-साथ ही देश का विकास सुनिश्चित होना होता है। भारत मे आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत 1991 के नर्सिंग राव समिति की सिफारिश पर की गई। पूंजी बाजार को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 बनाया गया । 1994 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की शुरुआत की गई जो 1996 तक भारत का सबसे बड़ा शेयर बाजार के रूप में स्थापित हुआ। उदारीकरण से निजीकरण और वैश्वीकरण का शुभारंभ हुआ, विदेशी प्रौद्योगिकी समझौता, विदेशी निवेश, औद्योगिक लाइसेंसिंग में ढील, विदेशी व्यापार के लिए अवसर और जब लाइसेंस की आवश्यकता समाप्त कर व्यापारिक गतिविधियों के मानक तय करने में स्वतंत्रता, व्यापक विस्तार पर प्रतिबंध समाप्त कर टैक्स दरों में कमी आयात निर्यात के लिए विदेशी पूंजी निवेश को आकर्षित करना रहा।
(उदारीकरण एवं आत्मनिर्भरता , Udarikaran aur Aatmanirbharata , Liberalization and Self-reliance)
उदारीकरण से उपजे निजीकरण और वैश्वीकरण ने सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को अपने कब्जे मे ले लिया । जिसके परिणामस्वरूप पूंजीवाद का बढना स्वभाविक था । उदारीकरण से उत्पन्न पूंजीवाद ने शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र को सर्वाधिक प्रभावित किया । सरकारी शिक्षा और चिकित्सा की जाने -अनजाने दुर्गति हुई । आम जनमानस से दूर होती शिक्षा और चिकित्सा कुछ मात्र पूंजीपतियों की बपौती बनती चली गई ।
1991 से शुरू हुआ उदारीकरण का दौर 2020 तक सरकारी शिक्षा और चिकित्सा को निगलकर एक विशालकाय अजगर का रूप ले चुका है । निजीकरण का ही परिणाम है कि बडे - बडे उद्योगपति फैक्ट्री बंद करके आज स्कूली शिक्षा मे आ गये , चिकित्सा मे आ गये । जिसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा और चिकित्सा आम आदमी की पहुंच से या तो दूर हो गई या फिर इतना महंगी हो गई कि अभिभावकों की पूरी कमाई केवल शिक्षा पर खर्च ह़ो रही है और बीमार व्यक्ति चिकित्सा पर अपना सब कुछ खर्च कर रहा है । कुकरमुत्तों की तरह उग आये निजी स्कूलों और निजी अस्पतालों की बाढ सी आ गई । जहाँ गुणवत्ता के नाम पर केवल धन की लूट के सिवाय कुछ नहीं है ।
निजीकरण विकास का एक अच्छा माडल हो सकता है बशर्ते निजीकरण के पक्षधर लोग ईमानदार हों और निजीकरण के उपरांत व्यवस्था का ईमानदारी से संचालन करें अन्यथा की स्थिति मे केवल धन की लूट के उद्देश्य से चलने वाली व्यवस्था मे आर्थिक असमानता बढने के साथ ही शोषण बढने की भी उतनी ही प्रबल सम्भावना विद्यमान है।
उदारीकरण और आत्मनिर्भरता का भी आपस मे कोई सम्बंध है ? जी हाँ ! बिल्कुल है जब सरकार की नीतियों मे उदारता होगी तो निश्चित रूप से देश का बेरोजगार युवा स्वरोजगार सृजन की ओर उन्मुख होगा और आत्मनिर्भर बनने की दिशा मे प्रयास करेगा।
(उदारीकरण एवं आत्मनिर्भरता , Udarikaran aur Aatmanirbharata , Liberalization and Self-reliance)
उदाहरण के रूप मे रमेश एक शिक्षित बेरोजगार युवक है। वह तकनीकी शिक्षा से भी वंचित है ,आर्थिक रूप से भी कमजोर है। ऐसी स्थिति मे वह अपना कोई कारोबार भी शुरू नहीं कर सकता। सरकार ने स्वरोजगार शुरू करने के उद्देश्य से योजना निकाली कि वह बेरोजगार युवकों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करके उनको ब्याज मुक्त ऋण देकर उनको आत्मनिर्भर बनाने मे मदद करेगी । रमेश ने इस योजना मे ऋण लेकर अपना कारोबार शुरू किया । कडी मेहनत के बाद उनको अपने व्यवसाय मे लाभ होना शुरू हो गया । यह सब सम्भव हुआ सरकारी नीतियों मे उदारीकरण के कारण । उदारीकरण से ही आत्मनिर्भर बनने का रास्ता निकलता है।यदि हम सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो नीतियों मे उदारीकरण भी आत्मनिर्भर भारत बनाने मे सहायक है। आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए उदारीकरण के साथ -साथ सिंगल विंडो पोलिसी का क्रियान्वयन भी महत्वपूर्ण कारक सिद्ध होगा । इसके साथ -साथ स्थानीय उत्पादों का प्रोत्साहन मिलना आत्मनिर्भरता मे सहायक होगा।