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What Modi did of corporate loans

What Modi did of corporate loans , मोदी ने कॉरपोरेट कर्ज का क्या किया?  

सरकार ने 18 जुलाई 2022 को लोक सभा में बतलाया कि पिछले आठ वित्तीय वर्षों में एनपीए का 8,60,369 करोड़ रुपये वसूला जा चुका है। ध्यान दीजिए, "एनपीए का 8,60,369 करोड़ रुपये"। 

मोदी सरकार ने बैंकिंग व्यवस्था को इतना टाइट कर दिया है कि अब सभी लोन (मुद्रा लोन को छोड़कर) Security Oriented Lending है जिसे NPA होने की स्थिति में वसूला जा सके।  

वित्त मंत्री निर्मला सीथारमन से संसद में 27 नवंबर 2019 को मनमोहन सिंह के समक्ष कहा कि दिल्ली से फोन के आधार पे कॉरपोरेट्स ने बैंकों से लोन लिया जिसको चुकाने की उनकी क्षमता नहीं थी। अतः वे बैंकों का भुगतान नहीं कर सके। इससे खराब लोन बढ़ गया और बैंक की लोन देने की क्षमता कमजोर हो गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि निजी क्षेत्र में निवेश कम हो गया।
(What Modi did of corporate loans , मोदी ने कॉरपोरेट कर्ज का क्या किया?)
वर्ष 2020 में जारी आर्थिक सर्वेक्षण बड़े कारपोरेट हाउसेस के द्वारा जानबूझकर लोन ना चुकाने के बारे में बतलाता है कि इन बड़े उद्यमियों - जिनमे प्रत्येक ने सौ करोड़ से अधिक लोन ले रखा था - ने अपने करीबी लोगों को लोन का पैसा ट्रांसफर कर दिया तथा इसके बारे में ना तो बैंक ना ही स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी। ऐसे कारपोरेट लोन में सितंबर 2007 से सितंबर 2013 के मध्य एकदम से जबरदस्त उछाल आया।

इसके अलावा, 12 बड़ी कंपनियों - जिनका सबसे अधिक एनपीए था - के ऑडिटर ने इन कंपनियों की वित्तीय स्थिति के बारे में ठीक जानकारी नहीं दी। ऐसे 8 मानक थे जिनसे यह पता चल सकता था कि ऐसी कंपनियां या तो लोन नहीं चुका पाएंगी या अपने लोन को अनुचित रूप से कहीं और डायवर्ट कर रही हैं। ऑडिटर ने इन 12 कंपनियों में से एक कंपनी के बारे में सिर्फ एक मानक के बारे में जानकारी दी, जबकि अधिकतर कंपनियों के सम्बन्ध में तीन से चार मानक ही उजागर किये। अतः, वर्ष 2011 - 2013 के दौरान कुछ बड़े बेईमान कारपोरेट हाउसेस की करतूतों से अर्थव्यवस्था में विश्वास की कमी हो गयी जिसके कारण बैंकिंग व्यवस्था को बड़े एनपीए का सामना करना पड़ा।

(What Modi did of corporate loans , मोदी ने कॉरपोरेट कर्ज का क्या किया?)
मोदी सरकार की नीतियों के कारण जब एक कॉर्पोरेट हाउस अपना लोन नहीं चुका पाता है तो बाकी सभी बैंकों को भी इसकी सूचना मिल जाती है जिससे या तो वे अपना लोन वापस ले लेते हैं या फिर नया लोन इशू नहीं करते। वर्ष 2014 में ऐसी सूचना की उपलब्धता केवल 25% थी जो वर्ष 2019 में बढ़कर 95% हो गई है। 

इसके कारण अब कारपोरेट हाउसेस के द्वारा जानबूझकर लोन ना चुकाने के अवसर लगभग समाप्त हो गए हैं।
 
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