भारत में कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है जिन्हें लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। अगर आप शिव और विष्णु दोनों के भक्त हैं, तो आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां आप इनके दर्शन कर सकते हैं। हम बात कर रहे हैं ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित प्रसिद्ध लिंगराज मंदिर की। भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर का विशेष महत्व है। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ विष्णु की भी पूजा की जाती है।
लिंगराज मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि भुवनेश्वर नगर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। दरअसल भगवान शिव की पत्नी को यहां भुवनेश्वरी कहा जाता है। वहीं लिंगराज का अर्थ होता हो, लिंगम के राजा, जो यहां भगवान शिव को कहा जाता है। पहले इस मंदिर में शिव की पूजा कीर्तिवास के रूप में की जाती थी, फिर बाद में हरिहर के रूप में की जाने लगी। भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर शहर का एक मुख्य लैंडमार्क है। (लिंगराज मंदिर की कथा - Lingaraj Mandir Ki Katha in Hindi)
लिंगराज मंदिर का इतिहास :
लिंगराज का अर्थ होता है लिंगम के राजा, जो यहां भगवान शिव को कहा गया है। वास्तव में यहां शिव की पूजा कृतिवास के रूप में की जाती थी और बाद में भगवान शिव की पूजा हरिहर नाम से की जाने लगी। ये मंदिर का वर्तमान स्वरूप 11वी शताब्दी के अंतिम दशको में आया। हालाँकि इस मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में किया गया था। जिसका उल्लेख संस्कृति ग्रंथो में किया गया हैं।
इतिहासकार फग्युर्सन का मानना हैं की इस मंदिर के निर्माण कार्य ललाट इंदु केसरी ने आरम्भ करवाया था जिन्होंने 615 से 657 शताब्दी तक शासन किया था। मौजूदा मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केशरि ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। जो सोमा वंश के थे। उसने तभी अपनी राजधानी को जयपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरिक किया था। इस स्थान को ब्रह्म पुराण में एकाम्र क्षेत्र बताया गया है। किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। (लिंगराज मंदिर की कथा - Lingaraj Mandir Ki Katha in Hindi)
मंदिर की कहानी
धार्मिक कथा है कि लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिवजी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दूसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मन्दिर है। सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर यहीं पूर्वोत्तर भारत में शैवसम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र रहा है। कहते हैं कि मध्ययुग में यहाँ सात हज़ार से अधिक मन्दिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब क़रीब पाँच सौ ही शेष बचे हैं। यह मंदिर वैसे तो भगवान शिव को समर्पित है परन्तु शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु भी यहां मौजूद हैं। (लिंगराज मंदिर की कथा - Lingaraj Mandir Ki Katha in Hindi)
मंदिर की वास्तुकला :
Lingaraj Temple की वास्तुशिल्पीय बनावट भी बेहद उत्कृष्ट है और यह भारत के कुछ बेहतरीन गिने चुने हिंदू मंदिर में एक है। इस मंदिर की ऊंचाई 55 मीटर है और पूरे मंदिर में बेहद उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। गणेश, कार्तिकेय तथा गौरी के तीन छोटे मन्दिर भी मुख्य मन्दिर के विमान से संलग्न हैं। गौरीमन्दिर में पार्वती की काले पत्थर की बनी प्रतिमा है। मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार का है तथा कलश की ऊँचाई 40 मीटर है। मन्दिर के चतुर्दिक गज सिंहों की उकेरी हुई मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं। मन्दिर के शिखर की ऊँचाई 180 फुट है। मुख्य मंदिर 55 मीटर लंबा है और इसमें लगभग 50 अन्य मंदिर हैं। लिंगराज मंदिर कुछ कठोर परंपराओं का अनुसरण करता है और गैर-हिंदू को मंदिर के अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं है। हालांकि मंदिर के ठीक बगल में एक ऊंचा चबूतरा बनवाया गया है, जिससे दूसरे धर्म के लोग मंदिर को देख सकें।
वास्तुकला की दृष्टि से लिंगराज मंदिर, जगन्नाथपुरी मंदिर और कोणार्क मंदिर लगभग एक जैसी विशेषताएं समेटे हुए हैं। बाहर से देखने पर मंदिर चारों ओर से फूलों के मोटे गजरे पहना हुआ-सा दिखाई देता है। मंदिर के चार हिस्से हैं – मुख्य मंदिर और इसकेअलावा यज्ञशाला, भोग मंडप और नाट्यशाला। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर कलिंग वास्तुशैली और उड़ीसा शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार लिंगराज मंदिर से होकर एक नदी गुजरती है। इस नदी के पानी से मंदिर का बिंदु सागर टैंक भरता है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह पानी शारीरिक और मानसिक बीमारियों को दूर करता है। लोग अक्सर इस पानी को अमृत के रूप में पीते हैं और उत्सवों के समय भक्त इस टैंक में स्नान भी करते हैं।
लिंगराज मंदिर पूजा पद्धति
Lingaraj Mandir की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का रहा है। गणेश पूजा के बाद गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश किया जाता है। जहाँ आठ फ़ीट मोटा तथा क़रीब एक फ़ीट ऊँचा है।
शिवलिंग का बाहरी रूप पारम्परिक शिवलिंग जैसा गोलाकार है जिसमें से एक ओर से पानी जाने का मार्ग है लेकिन बीचों-बीच लिंग न होकर चाँदी का शालीग्राम है जो विष्णु जी है। गहरे भूरे लगभग काली शिवलिंग की काया के बीच में सफेद शालिग्राम जैसे शिव के हृदय में विष्णु समाए है। हरि है विष्णु जिन्हें शिव ने हरा है। इसी से इन्हें हरिहर कहा जाता है। यहाँ की विशेषता यही है कि शिव-विष्णु एक साथ होने से ऑक के फूल और तुलसी एक साथ चढ़ाए जाते है।
ओङीसा में जगन्नाथ पुरी जाने से पहले पौराणिक मान्यता के अनुसार लिंगराज मंदिर में हरिहर के दर्शन किए जाने चाहिए। भीतर मुख्य गर्भगृह में हरि को हरने वाले इस हरिहर के अतिरिक्त लिंगराज मन्दिर के विशाल प्रांगण में अनेकों देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मन्दिर है – गणेश, पार्वती, महालक्ष्मी, दुर्गा, काली, नागेश्वर, राम, हनुमान, शीतला माता, संतोषी माता, सावित्री, यमराज। लिंगराज मन्दिर के पास है पाप विनाशिनी जहां कुंड है।
लिंगराज मंदिर कैसे पहुंचे
लिंगराज मंदिर आप वायु मार्ग, रेल और सड़क तीनों मार्गों द्धारा आसानी पहुँच सकते हैं। लिंगराज मंदिर से भुवनेश्वर एयरपोर्ट सबसे नजदीक है। एयरपोर्ट मंदिर से 3.7 किमी की दूरी पर है और सभी भारतीय प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। और साथ ही ट्रेन और बस सुविधा से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप पर्सनल कार से भी आ सकते हैं।