संविधान के बुनियादी मूल्यों की रक्षा करेंगे - थल सेना प्रमुख
संविधान के बुनियादी मूल्यों की रक्षा करेंगे - थल सेना प्रमुख
थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने शनिवार को कहा कि 13 लाख कर्मियों वाली सेना का आचरण संविधान के प्रति “निष्ठा” और संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना से दिशा-निर्देशित होगी। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब सेना के राजनीतिकरण के आरोपों को लेकर हाल ही में उनके पूर्ववर्ती को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। सेना दिवस की पूर्व संध्या पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए जनरल नरवणे ने यह भी कहा कि चीन से लगी सीमा पर संपूर्ण तैयारियों का “पुनर्संतुलन” शुरू किया गया है और उन्नत हथियार प्रणाली समेत कई कदम इस दिशा में उठाए जा रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि थल सेना प्रमुख के तौर पर उनका मुख्य जोर किस बात पर होगा, उन्होंने कहा कि यह ‘एबीसी’ - “अलीजन्स, बिलीफ और कंसॉलिडेशन” (निष्ठा, विश्वास और सुदृढ़ीकरण) होगा। उन्होंने कहा कि संविधान के बुनियादी मूल्यों की रक्षा सेना की प्रेरक शक्ति बनी रहेगी। जनरल नरवणे ने कहा, “हम भारत के संविधान के प्रति निष्ठा व्यक्त करते हैं। चाहे वे अधिकारी हों या जवान, हमने संविधान की रक्षा की शपथ ली है और यह हर वक्त और हर कार्रवाई में हमारा मार्ग निर्देशन करेगा” उन्होंने कहा, “यह इसके बुनियादी मूल्यों को दर्शाता है जो संविधान के प्रस्तावना में शामिल हैं। ये हैं न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना। हम इसी के लिए लड़ रहे हैं।” उन्होंने कहा, “हम देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिये सीमा पर तैनात हैं, हमारे लोगों को यह सुनिश्चित करना है कि वे इसके बुनियादी मूल्यों की रक्षा करें। और, मुझे लगता है कि यह वही चीज है जिसे हमलोग और मैं कहना चाहुंगा कि हमें इसे ध्यान में रखने की जरूरत है।’’ जनरल नरवणे ने 31 दिसंबर को जनरल बिपिन रावत से सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला था। सेना प्रमुख के तौर पर अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान जनरल बिपिन रावत को राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं रहने और सेना का राजनीतिकरण होने देने के आरोपों का सामना करना पड़ा था। पिछले महीने उन्होंने उस वक्त एक बड़े विवाद को तूल दे दिया, जब उन्होंने संशोधित नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगों की सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हुए कहा था कि ‘नेतृत्व’ भीड़ को देश भर में आगजनी या हिंसा के लिये प्रेरित करने के लिए नहीं है। विपक्षी दलों के साथ ही पूर्व सैन्य अधिकारियों ने भी इस बयान के लिये उनकी आलोचना की थी। पूर्व सैन्य अधिकारियों ने कहा था कि सशस्त्र सेनाओं को देश की सेवा करनी चाहिए, न कि किसी राजनीतिक ताकत की सेवा करने के दशकों पुराने सिद्धांत का हर हाल में पालन करना चाहिए। जनरल नरवणे ने यह भी कहा कि उनका ध्यान ‘आईटीपीक्यू’ पर भी होगा। उन्होंने कहा कि आईटीपीक्यू से आशय- इंटीग्रेशन, ट्रेनिंग पर्सनल और क्वालिटी (एकीकरण, कार्मिक प्रशिक्षण और गुणवत्ता) है। उन्होंने कहा कि थल सेना के अंदर और वायुसेना तथा नौसेना के साथ एकीकरण पर उनका विशेष ध्यान रहेगा। उन्होंने कहा, ‘‘सीडीएस का गठन और सैन्य मामलों के विभाग का गठन एकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। हम अपनी तरफ से इसकी सफलता सुनिश्चित करेंगे।’’ सेना प्रमुख ने कहा, ‘‘एकीकरण सेना के भीतर भी होगा और एकीकृत युद्ध समूह इसका एक उदाहरण है। मैं सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि एकीकरण की इस प्रक्रिया में हम सभी को साथ लेकर चलेंगे। कोई भी पीछे नहीं छूटेगा।’’ उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण का मुख्य जोर भविष्य के युद्धों के लिए सेना को तैयार करने पर होगा, जो नेटवर्क केंद्रित और जटिल होगा। सेना प्रमुख ने कहा कि सेना की सबसे “महत्वपूर्ण ताकत” उसके सैनिक होते हैं। उन्होंने कहा, “मात्रा नहीं गुणवत्ता अब मंत्र होगा, फिर चाहे वह सैनिकों का चयन हो या उपकरणों का।” सेना प्रमुख ने कहा, “हम अभी बदलाव के दौर में हैं और हम जो भी बदलाव कर रहे हैं उन्हें मजबूती देनी होगी। मेरे पूर्ववर्ती द्वारा तय की गई नीतियों और पहलों को हमें आगे ले जाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वह सभी एक तार्किक अंजाम तक पहुंचें।” जनरल नरवणे ने सियाचिन के मुद्दे पर कहा कि हमें इसे अपनी नजरों से हटने नहीं देना है क्योंकि चीन और पाकिस्तान मिल सकते हैं। हमें उस पर अपनी पकड़ बनाए रखनी है। पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने 1994 के एक संसदीय प्रस्ताव का संदर्भ दिया और कहा कि सेना आदेश का पालन करने को तैयार है। उन्होंने कहा, “जहां तक पीओके की बात है, इस पर कई साल पहले का एक संसदीय प्रस्ताव है कि पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है। अगर संसद चाहती है कि वह क्षेत्र भी हमसे संबंधित होना चाहिए, अगर हमें उस बारे में आदेश मिलता है, तो हम निश्चित रूप से इस पर कार्रवाई करेंगे।”