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जानिए कैसे करनी चाहिए देवों की पूजा-अर्चना

जानिए कैसे करनी चाहिए देवों की पूजा-अर्चना

                                                      
पूजा का अर्थ है समर्पण। समर्पण का नाम ही आस्था है। आस्तिकता कर्मकांड में नहीं है। भगवान के प्रति समर्पण और भाव में है। अक्सर लोग, कर्मकांड और पूजा विधान को एकही मान लेते हैं। भगवान की भक्ति के लिए मन, वचन और कर्म की प्रधानता चाहिए। भक्ति के तत्व दस हैैं। इसमें वही सभी तत्व हैं जो धर्म में हैं। दशो महाविद्या की सार भी धर्म में ही है। धर्म में ही जीवन की कुंजी है। धर्म में ही जीवन को जीने का मर्म छिपा है। बहुभाषी और बहुदेवतावादी समाज में अक्सर यह प्रश्न रहता है कि हम किसकी आराधना करें और कितनी देर करें। कर्मकांड पर जाएं तो लंबे-चौड़े विधान हैं। लेकिन सनातन व्यवस्था में ध्यान को महत्व दिया गया है, कर्म को महत्व दिया गया है, भाव को महत्व दिया गया है। वाणी यदि दूषित हो तो राम-राम जपने का लाभ नहीं। कर्म यदि दूसरे को पीड़ा पहुंचाने वाले हों तो घंटों पूजा में बैठने का कोई अर्थ नहीं। गोस्वामी तुलसीदास ने परहित को ही धर्म की संज्ञा कहा है। 
आज के आपाधापी और व्यस्तता भरे जीवन में बहुत से लोगों को यही कहते सुना जाता है कि पूजा में समय बहुत लग जाता है। कई लोगों के विधान टूट जाते हैं, संकल्प पूरे नहीं होते। मन में एक पीड़ा होती है कि हम आज यह नहीं कर पाए-वह नहीं कर पाए? महिलाओं को तो इस स्थिति का अधिक ही सामना करना पड़ता है। कामकाजी महिलाएं और भी परेशानियां उठाती हैं। घर की बुजुर्ग महिलाओं का तो पूजा-पाठ हो भी जाता है, लेकिन घर और दफ्तर संभालती महिलाएं क्या करें? कमोवेश, यही हाल पुरुषों का भी है। सुलभता के लिए हम संक्षिप्त पूजा विधान दे रहे हैं--
पहले करें गुरू वंदन फिर करें देव पूजा 
  •  गणपति
  •  भगवान शंकर
  •  दुर्गा
  •  भगवान राम
  •  भगवान श्रीकृष्ण
  •  हनुमान जी
  •  भैरव आराधना
  •  नवग्रह पूजा
  •  क्षमा प्रार्थना
  •  शांति मंत्र 
इष्ट देव: हर व्यक्ति की राशि में कोई न कोई इष्ट देव होता है, इसलिए हमको उन्हीं इष्ट की पूजा करनी प्रमुखता से करनी चाहिए। 
पूजा स्थान: पूजा स्थान पर एक देव की एक ही प्रतिमा होनी चाहिए। 
फलित: जिस तिथि का आपका जन्म है, उसी तिथि के मुताबिक हमको पूजा करनी चाहिए। उदाहरण के लिए यदि आपका त्र्योदशी को हुआ है तो आपको भगवान शंकर की पूजा अधिक फल देगी। यदि आपका अष्टमी या नवमी को हुआ है तो आपके लिए महागौरी और लक्ष्मी जी की पूजा कल्याणकारी होगी। चतुर्थी तिथि पर भगवान गणपति और पूर्णिमा या एकादशी के जन्म पर भगवान विष्णु की पूजा सार्थक रहेगी। सप्तमी के दिन पैदा होने वाले जातकों के लिए सात बार जाप करना फल प्रदान करेगा। काली जी की पूजा उनको फल प्रदान करेगी। 
सरल उपासना
भगवान गणपति
देवों के अग्रणी देव गणपति ऋद्धि-सिद्धि के देव हैं। देव पूजा में उनका अग्रणी स्थान है। गणपति की पूजा के लिए आप गणेश चालीसा या केवल पांच बार ऊं गणपतये नम: या गं गणपति नम: का जाप कर सकते हैं। गणपति मोदक प्रिय हैं। समय मिले तो प्रतिदिन अन्यथा बुधवार को मोदक का भोग लगा सकते हैं। इसके अतिरिक्त कोढियों को दान देने, दीन-दुखियों की मदद करने और चंद्रमा को अघ्र्य देने से भी गणपति प्रसन्न होते हैं। 
ऊं गं गणपतये नम:
भगवान शंकर

भगवान शंकर की पूजा सर्वाधिक सरल है। शंकर जी को जिस रूप में आप पूजना चाहें, पूज सकते हैं। वह रुद्र हैं। गृहस्थ लोगों के लिए गौरीशंकर की पूजा ïिवशेष फल प्रदान करती है। सोमवार का व्रत, त्रयोदशी का फल भी कारक रहता है। शंकर जी प्रतिदिन ग्यारह बार जल की धारा अर्पण करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। मंदिर में ग्यारह लोटे जल और काले तिलों के समर्पण करने से वह विपरीत ग्रहों की चाल बदल देते हैं। एक माला ऊं नम: शिवाय की जपने से ही सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। व्रत इतना सरल है कि तीसरे प्रहर आप व्रत का परायण कर सकते हैं। शंकर को भजो, सारे काम पूरे। चाहे पांच, सात या ग्यारह बार ऊं नम: कहो या बोलचाल में या माला लेकर। शंकर जी की पूजा के लिए आवश्यक नही कि आप धुनी जमाकर बैठें। पवित्रावस्था के किसी भी क्षण आप उनका ध्यान, मनन और अर्चन कर सकते हैं। महामृत्युंजय मंत्र तीन और सात बार पढऩे से ही सारे कष्टï मिट जाते हैं। गृहस्थवानों के लिए शिव परिवार की पूजा ही संपूर्ण है।
ऊं नम: शिवाय
महामृत्युंजय मंत्र
शिव चालीसा

दुर्गा जी
जो जातक देवी उपासक हैं, उनको अकेले देवी की आराधना नहीं करनी चाहिए। उनके लिए आवश्यक है कि वह पहले गणपति, शंकर और तदुपरांत दुर्गा जी की आराधना करें। दुर्गा जी के बाद भैरव और हनुमान जी की पूजा करें। यदि दुर्गा के पार्वती स्वरूप की पूजा करते हैं तो उसमें समस्त देवियों की पूजा अपने आप ही निहित हो जाती है। इसके लिए अच्छा यह होगा कि आप शिव परिवार की आराधना करें। समस्त पूजा का लाभ। देवी पूजा केविधान सख्त हैं। इसमें त्रुटि नहीं होनी चाहिए। मंत्रों का उच्चारण भी शुद्ध होना चाहिए। मां भगवती के रौद्र रूप से अधिक गौरी, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा श्रेयस्कर है। लक्ष्मी जी की पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए। गौरी की पूजा शंकर जी केसाथ और लक्ष्मी जी की पूजा भगवान विष्णु के साथ करनी चाहिए। काली जी की पूजा भी भगवान शंकर के रुद्रावतार के साथ करनी चाहिए। अज्ञानता से तंत्र विद्या न करें। दुर्गा जी को प्रसन्न करने के लिए आप कर सकते हैं--
-श्री दुर्गा चालीसा
-देवी कवच, अर्गलास्तोत्रम, कीलक, देवी सूक्तम और सिद्ध कुंजिका स्तोत्र।
-अकेले देवी सूक्तम, दुर्गा चालीसा और सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम का पाठ भी आप कर सकते हैं।
-समयाभाव में आप केवल सात बार या तीन बार ऊं ऐं ह्रïीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे का जाप कर लें। दुर्गा पूजा संपूर्ण। 
-करोतु सा न शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राणी भिहन्तु चापदा। 
 
भगवान विष्णु, श्रीराम और श्रीकृष्ण
यदि आप भगवान विष्णु के उपासक हैं तो आपके लिए भगवान राम और श्रीकृष्ण की अलग-अलग आराधना करने की आवश्यकता नहीं है। भगवान विष्णु की पूजा के लिए पूर्णिमा का व्रत विशेष फलकारी है। श्री गोविंदाय नम: माधवाय नम: केशवाय नम: का ग्यारह बार या एक माला का जाप कर सकते हैं। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: को पांच या ग्यारह बार पढ़ लें। भगवान विष्णु के साथ ही यदि आप राम और श्रीकृष्ण की भी पूजा करना चाहते हैं तो सुंदरकांड की पांचवी चौपाई पढ़ें या कहेऊ तात अस मोर प्रनामा, सब प्रकार प्रभु पूरन कामा, दीनदयाल विरदु समभारी, हरेऊ नाथ मम संकट भारी पढ़ लें। इसके अतिरिक्त विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी आपके मनोरथ पूर्ण करेगा। भगवान विष्णु जी की पूजा से पहले गणपति का ध्यान अवश्य करें।

लड्डू गोपाल
यदि गृह मंदिर में लड्डू गोपाल या बांसुरी बजाते श्रीगोपाल की प्रतिमा विराजमान है तो आपको समस्त नियमों का पालन करना होगा। मुख्य नियम इस प्रकार हैं
-प्रतिदिन भगवान को स्नान कराना चाहिए।
-उनको मिश्री या माखन का भोग लगाना होगा।
-जिस पूजा में लड्डू गोपाल होंगे, वह कमरा बंद नहीं होगा।
-आप यदि बाहर जा रहे हैं और घर में कोई दूसरा पूजा-पाठ करने वाला नहीं है तो आपका दायित्व है कि आप भगवान का सिंहासन अपने साथ ले जाएं। या उनको घर का स्वामी बना दें और घर की चाभी उनको सौंप दें। इसके बाद, आप बाहर जा सकते हैं और ठाकुर जी को ले जाने की आवश्यकता नहीं है। 
-भगवान का प्रतिदिन स्नान, श्रृंगार, पूजन, अर्चन, भोग और शयन कराना चाहिए। 
-तामसिक पदार्थों का त्याग करना चाहिए। 
-मोर का पंख और श्रीमदगीता पूजा स्थल पर अवश्य होनी चाहिए। 
-यही नियम समस्त पीतल के श्रीविग्रहों के लिए है। इनका भी प्रतिदिन स्नान, भोग, आरती और शयन करना चाहिए।

श्री हनुमान
हनुमान जी की पूजा के नियम कठिन हैं। इसलिए भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्रावतार के रूप में उनकी पूजा करना श्रेयस्कर है। या गुरू के रूप में। बाला जी और प्रेतराज सरकार की पूजा करने वालों के लिए प्रतिदिन महावीर सिंदूर लगाना अच्छे फल प्रदान करता है। हनुमान जी की पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए। पहले भगवान राम का माता जानकी सहित स्तवन करना चाहिए। 
इनकी पूजा की सरल विधि इस प्रकार है--
-हनुमान चालीसा
(यह संपूर्ण पूजा है)
-सुंदरकांड का मंगलाचरण
-संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरे हनुमत बलबीरा
-जय-जय-जय हनुमान गुसाई, कृपा करो गुरू देव की नाई
(इन दोनों चौपाइयों का पांच बार जाप कर लें। चौबीस घंटे में यदि ग्यारह बार हनुमान चालीसा का पाठ कर लें तो सारे मनोरथ पूर्ण।
-हनुमान जी की पूजा में स्वच्छता और ब्रह्मïचर्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 
-प्रति मंगलवार को प्रशाद और बंदरों चने या केले खिलाने चाहिए। 
-रात में बजरंगबाण का पाठ करके शयन करें तो श्रेयस्कर। 
पूजा क्रम
1. गणपति, 2. शंकर 3. विष्णु, राम या कृष्ण 4. दुर्गा 5. हनुमान (इसके बाद श्रद्धानुसार भैरव और साईंनाथ की पूजा करनी चाहिए। )
आरती
आरती अलग-अलग करने की आवश्यकता नहीं है। आप गणपति के बाद ऊं जय जगदीश हरे की आरती कर लें। यह समस्त देवों की आरती है। 
-जो साधक इष्ट देव के आधार पर केवल एक ही देव की पूजा करते हों, उनके लिए भी पहले गणपति की आरती अनिवार्य है।

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