एक बार की बात है. मछलियों का एक व्यापारी नदी के करीब ही अपने आलीशान बंगले में रहता था. उसके दो बड़े प्यारे, लेकिन बहुत ही नटखट बेटे थे.
एक बार उसने घाट पर बेकार पड़ी अपनी कुछ नावों को पेंट कराने का सोचा. अगले दिन सुबह-सुबह बाज़ार से एक पेंटर बुलवाया गया. व्यापारी ने उसे नावें दिखायीं, और काम समझा कर अपने धंधे पर निकल गया.
जब वो दोपहर को लौटा तो घर के बाहर लगी भीड़ देख कर घबरा गया. उसके दोनों बेटे काफी देर से गायब थे और बहुत खोजने पर भी नहीं मिल रह थे. रो-रो कर बच्चों की माँ की हालत भी खराब हो गयी थी. तभी व्यापारी को पेंटर का ख़याल आया. वह उस स्थान पर गया जहाँ वो नावें पेंट कर रहा था. पेंटर अपना काम पूरा कर के जा चुका था.
व्यापारी ने देखा की उसने जितनी नावें पेंट करने को दी थीं उसमे से एक नाव गायब थी.
व्यापारी के दिल की धडकनें तेज हो गयीं, वह समझ गया कि उसके दोनों बेटे ही नाव लेकर नदी में चले गए हैं. उसने फौरन कुछ नाविकों और गोताखोरों को इकठ्ठा किया और अपने बच्चों को खोजने के लिए नाव पर सवार हो गया.
अभी वो कुछ ही दूर गया था कि उसे दूर से एक नाव आती हुई दिखाई दी. थोडा करीब आने पर साफ़ हो गया कि ये उसी की नाव थी और उसमे बैठे उसके दोनों बेटे सुरक्षित थे. व्यापारी ने गहरी सांस ली और तेजी से अपनी नाव उनकी तरफ ले गया.
अपने पिता को देख बच्चे डर गए क्योंकि उन्हें पता था कि बिना किसी से पूछे उन्हें नाव ले जाने की अनुमति नहीं थी. डरते-डरते वे अपने पिता के करीब आए. पर पिता ने उन्हें डांटने की बजाय गले से लगा लिया.
किनारे पर बच्चों की माँ और अडोस-पड़ोस के बहुत से लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे. बच्चे नाव से उतरते ही माँ से लिपट गए.
सभी के जाने के बाद व्यापारी बच्चों की नाव के करीब आया और गौर से उसे देखने लगा.
इसके बाद उसने फ़ौरन एक आदमी को पेंटर को लाने के लिए भेजा. जब रास्ते में पेंटर को इस घटना का पता चला तो वो काफी सहम गया, उसे लगा हो न हो बच्चों के नदी में जाने का इल्जाम उसी पर लगाया जाएगा और उसे इसकी सजा मिलेगी.
पेंटर डरते-डरते व्यापारी के सामने पहुंचा.
उसे देखते ही व्यापारी ने प्रश्न किया, “तुमने आज क्या-क्या काम किया?”
“जी, अपने जो नावें दिखायीं थीं मैंने बस उन्हें रंगने का काम किया.”, पेंटर थोड़ा हिचकते हुए बोला.
“तुम्हारी मजदूरी कितनी हुई?”, व्यापारी ने पूछा.
“जी, पांच सौ रूपये”, पेंटर ने उत्तर दिया.
व्यापारी अपनी कुर्सी से उठा और उसे गले लगाते हुए बोला, “नहीं तुम्हारी मजदूरी पांच सौ रुपये नहीं बल्कि पचास हजार रूपये हुई.”
और ऐसा कहते हुए उसने पेंटर के हाथ पर पांच सौ रुपये की गड्डी रख दी.
पेंटर और वहां मौजूद सभी लोग हैरत से व्यापारी को देखने लगे. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर व्यापारी ऐसा विचित्र व्यवहार क्यों कर रहा है.
इससे पहले कि कोइ कुछ पूछता व्यापारी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा –
“आप लोग सोच रहे होंगे मैं ऐसा विचित्र व्यवहार क्यों कर रहा हूँ और पांच सौ रुपये के काम के पचास हज़ार रूपये क्यों दे रहा हूँ…
ऐसा इसलिए क्योंकि आज इस पेंटर की वजह से मेरे दोनों बेटों की जान बच गई… दरअसल, वे जिस नाव को लेकर नदी में गए थे उसमे एक छोटा सा छेद था, मगर नाव को पेंट करते वक़्त इनकी नज़र उस छेद पर पड़ी और इन्होने बिना किसी से पूछे अपने आप उस छेद को भर दिया, जबकि ये न इनका काम था और ना ही इन्होने इसके कोई पैसे मांगे. अगर इन्होने निःस्वार्थ भाव से ये जरा सा काम नहीं किया होता तो शायद आज मैं अपने दोनों बेटों को खो चुका होता. मैं अब जीवन भर के लिए इनका ऋणी हो गया हूँ और ये छोटी सी रकम इनकी अच्छाई के सामने एक मामूली सा तोहफा है.”
ऐसा कहते हुए व्यापारी ने अपनी बात पूरी की और वहां उपस्थित सभी लोग पेंटर के सम्मान में तालियाँ बजाने लगे.
दोस्तों, वे कोई बहुत बड़ी चीजें नहीं होतीं जो एक आम इंसान को महान बनाती हैं बल्कि वे छोटी-छोटी चीजें होती नहीं जो हमें महानता तक ले जाती हैं. आज की इस दुनिया में जब ज्यादातर लोग सिर्फ अपना फायदा देख कर काम करते हैं, पेंटर का एक छोटा सा निःस्वार्थ काम कितना महान बन गया.
अतः इस कहानी से सीख लेते हुए हमें नेक कम करने के छोटे से छोटे अवसर को भी गंवाना नहीं चाहिए और खुद से ऊपर उठ कर इस दुनिया को संवारने का प्रयास करना चाहिए.