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अभागा - लेखक - शोलोम आश

अभागा - लेखक - शोलोम आश

                                                   
बूड़ी जगते ही बच्चे का रोना सुना।
आंखें बंद किए-किए ही उसने अपनी पत्नी को पुकारा-“अरी गोल्डा! यह कम्बख्त चीख रहा है?”
गोल्डा ने कोई उत्तर नहीं दिया।
बूड़ी उठा और इधर-उधर घर में ढूँढ़ा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली | उसे कुछ ताज्जुब हुआ, किंतु उसने सोचा “ हो न हो नहाने गई होगी।” एक कपड़े का फोया बनाया और उसे बच्चे के मुंह में लगाकर वह कपड़े पहनने चल दिया।
कपड़े पहनते-पहनते वह हिसाब लगाने लगा-' “कल झोब्लिनर हाउस से जो मोमबत्तियां चुराकर लाया था, उनसे कितनी चांदी बन जाएगी?”
और यह सोचते ही वह ऊपर अटारी में उचककर पहुंच गया, लेकिन मोमबत्तियां गायब थीं! इधर-उधर चारों तरफ् उसने खखोड़ा, लेकिन वे मिली तो नहीं ही मिली!
जल्दी से उतरकर वह वहां पहुंचा, जहां उसकी पत्नी की चीजें रखी रहती थीं, किंतु वे भी ग़ायव थीं। अब उसकी समझ में आया कि गोल्डा भाग गई।
“लेकिन किसके साथ...?
श्लोयमा श्लोसर के साथ...या...हेयमिल गूब के साथ?
अच्छा भाग गई तो भाग जा! मर जा! परवा कौन करता है तेरी।”
दीवार पर थूक कर वह बड़बड़ाया, इस तरह से जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं रहा हो। फिर वहां से वह बच्चे के पास पहुंचा-“भाग गई अच्छा हुआ...तुम तो मजे में हो ?...हा-हा-हा....,” और उसे घूरा।
और वह फिर सोचने लगा-आखिर इस कम्बख़्त का क्या होगा अब? अगर मुझे पता लग जाय कि यह गई कहां, तो इसे वहीं उसके दरवाज़े पर पटक आऊं-कहकर-“ले यह तेरा है-सम्हाल इसे!
यकायक एक दुर्भावना उसके मन में उठी, जिसके कारण उसका मुख पीला पड़ गया, हाथ-पैर कांपने लगे और वह ओठ काटने लगा।
इसी हालत में वह बच्चे के पास पहुंचा, जिसने अपने फटे हुए चिथड़े गंदे कंबल और ओढ़ने को एक तरफ लतिया दिया था और अब खुला पड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था-उसकी सूरत देखकर उसे किसी की याद आ गई...क्या कोई पुराना परिचित ?...ठीक-ठीक याद नहीं आ रहा था उसे!
वह बच्चे के पास से हट आया और जल्दी से सिर पर हैट रखकर घर में ताला लगाकर वह बाहर चला गया।
किस तरफ जा रहा था ?-क्यों जा रहा था ?
यह कुछ उसे नहीं मालूम ।
अंधाधुंध वह चलता ही चला गया-लेकिन उसे चैन नहीं था...बच्चे का रोना उसके कानों को बेधे डालता था...वह जैसे उसे पुकार-पुकार कर बुला रहा था और उसने देखा वह वैसे ही अपनी नन्हीं-नन्हीं टांगें चला रहा है-सुबक-सुबक कर रो रहा है...?
“नहीं नहीं मुझे लोटना ही चाहिए-पर अगर उस सुसरी को इस वक्त कहीं पकड़ पाता तो.. गला घोंट देता गला-जीभ निकल पड़ी कम्बख़्त की।
सत्यानाश हो हत्यारिन का और यही मन में चीख़ते चिल्लाते वह एक नानबाई की दूकान में घुस गया; एक क्रीमरौल खरीदी, और घर लौट पड़ा । बच्चा जैसा का तैसा खुला पड़ा मुस्कुरा रहा था।
“मौत भी तो नहीं आती इस कम्बख्त कैसा मज़े में लेटा मुस्कुरा रहा है, अभागा कहीं का।”
और वह फिर घर से चल दिया, किंतु उसके कृदम आगे उठते ही न थे-उसको यही लगता था कि बच्चा रो रहा है...और बस उसका दिल जैसे क्षोभ के मारे ऐंठने लगता...
उसने कसकर दोनों हाथों की मुट्ठी भींचीं-जैसे झुंअलाकर कोई संकल्प किया। फिर घर लौट आया। इस बार तो बच्चा “मा म्या म्या ...” करके खूब ही रो रहा था।
“तेरी अम्मा? आह अभागे!...ढूंढ़ न जाकर अपनी उस दुलारी अम्मा को-उसे तो प्लेग ले गया प्लेग!”
फिर उसने बच्चे को गोद में उठा लिया। बच्चा उसकी छाती से चिपटने लगा और अपने नन्हें पतले ओठों से मां का दूध दूंढ़ने लगा।
“आग लगे उस पापिन में ?”-वह बच्चे के कोमल गालों और सुकुमार शरीर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बलबलाया,--“'मुन्ना मेरा रोता नहीं!
मेरा श्लोआईमाले कैसा-चुप जा-चुप न! बड़ा अच्छा मुन्ना है मेरा!”
बच्चे ने अपने ओंठ और भी व्यग्रता के साथ दूध की खोज में चलाने शुरू कर दिए हाथ भी इधर-उधर चलाने लगा। और अपना सिर भी हिलाया जैसे बस बोलना ही चाहता हो।
बच्चे को उसने अपनी छाती से और कसकर चिपटा लिया और दूध की तलाश करने लगा। कुछ थोड़ा सा उसे स्टोव में रखा दिखाई दिया, लेकिन वह बहुत ही कम था।
उसने क्रीमरौल को उसमें भिगोया और चंम्मच से लेकर धीरे धीरे उसे चुसाने लगा, साथ ही बड़े प्यार से बातें भी करता जाता था-“बेटा हमारा-खालो-खालो न मुन्ना, कैसा राजा हां, हमारा-राजा बेटा-राजा बेटा-तेरी अम्मा बड़ी कम्बख़्त है-तुझे अकेला छोड़कर चली गई है-पाप पड़ेगा उस पर-नरक में गिरेगी हरामज़ादी।
कुतिया भी तो अपने पिल्ले को इस तरह से छोड़ कर नहीं भागती-वह कुतिया से भी गई बीती है-रोते नहीं हैं-मैं कुसम खाकर कहता हूं-तुझे कभी नहीं छोड़ेंगा-कभी नहीं ।”
जब बच्चा चुप हो गया, तब उसे कपड़ों में लपेट कर वह बाहर सड़क पर आया।
और उसके सड़क पर आते ही बाज़ार में हलचल मच गई; बूड़ी कुलक के पास बच्चा !...क्रैडनिक अपनी जगह से ही चिल्लाया, “बाह भाई कुलक! यह पिल्ला कहां पाया तुमने?”
बाहें फैलाकर क्रैडनिक की बीबी उठी और कुलक की तरफ भागी।
खुशी के मारे उसने अपने आंचल से कई बार बच्चे का मुंह पोंछा, खिलखिलाई, और बड़े प्यार से उसका गोरा-गोरा गठा हुआ बदन थपथपाने लगी।
“तुम्हारा ही लड़का है यह कुलक? अच्छा-मैंने तो कभी नहीं सोचा कि तुम्हारे भी लड़का हो सकता है? देखो न कैसी छोटी छोटी आंखें...लगता है न, बिल्कुल मैरीना की तरह!...
नाक तो बिल्कुल वैसी ही है!...हीरा है
हीरा...लाओ मुझे दो गोदी में!” कहकर उसने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और उलाने लगी-“वाह-वाह-शैतान हो मुन्नू तुम बहुत?”
चोरों का सरदार वृद्ध क्रैडनिक धीरे धीरे उठा और बच्चे के पास पहुंचा; उसे अच्छी तरह देखभाल कर कुलक की पीठ पर हाथ मारा और बोला-“कैसा मजे का गोलमटोल गुदगुदा बच्चा है!...सफा चढ़ जाएगा छत पर...इसकी मां कौन है?”
“आग लगे उसमें! वे चांदीवाली मोमबत्तियां लेकर रात भाग गई!”
“और इस पिल्ले को तुम्हारे पास छोड़ गई?” “हां!?
“यह तो बहुत बुरी बात है-बहुत ही बुरी /” कहकर बूढ़े क्रैडनिक ने अपना सिर खुजलाया। इतने में उसका लड़का आया और कुलक से बोला-“वाह भाई ठीक! अब मैं समझ गया कि वह चोरी का पेशा छोड़कर तुम्हें नर्स बनना ही पड़ेगा-खूब मज़ा चखाया उसने तुझे!”
“अच्छा अच्छा, चल अपना दिमाग़ मत खपा यहां-भगवान सबको देता है और फिर कुलक कुलक है!”
कुलक ने कहा और बच्चे को क्रैडनिक की गोद से लेकर शहर से बाहर चला ।
उसे लगा जैसे सड़क पर लोग उसकी ओर देख-देख कर उंगली उठा रहे थे-हंस रहे थे।
शहर से ही लगा हुआ एक जंगल है। वहां पहुंच कर कुलक एक पत्थर पर बैठ गया।
चारों तरफ न आदमी था और न आदमजात । पेड़ों की पत्तियां मरमर करके जैसे मातम मना रही थीं; उनकी साथिन पीली मरी हुई पत्तियां उनसे अलग हो-होकर भूमि पर जो गिर रही थीं। दूरस्थ किसी झरने की कलकल ध्वनि भी धीमी-धीमी सुनाई पड़ रही थी।
बूड़ी ने अपने पास ही पत्थर पर बच्चे को लिटा दिया-जैसे पटक दिया हो! बच्चा अपना अंगूठा चूसता हुआ चुपचाप लेटा ही रहा-जैसे समाधि में लीन हो रहा हो। कुलक की समझ में जरा भी नहीं आता था कि इस बच्चे का वह करे भी तो क्या!
पलक मारने भर की देर के लिए उसने सोचा “इसे छोड़ ही न दूं”-परंतु दूसरे ही क्षण उसके अंदर का पिता जाग उठा-उसका प्यार जाग उठा-उसकी ममता जाग उठी-मोह माया जाग उठी !--“यह बेचारा गरीब मेरा बेटा”-और उसने बच्चे को फिर गोद में उठा लिया। खूब कसकर छाती से चिपकाया और गौर से उसकी मनुहार देखने लगा। उसने अनुभव किया कि वह अपना ही प्रतिबिंब उसमें देख रहा धा-और खुशी की एक लहर-सी उसकी रग-रग में दौड़ गई-अपनेपन की सुखद भावना से वह फूला न समाया।
“छोटे कुलक से तुम! वाह मेरे बेटे कुलक!” वह बच्चे से जोर से बोला-“बस अब ठीक है-मैं दावे के साथ कहता हूं तुम बड़े बढ़िया आदमी होगे। तुम दीवार पर चढ़ोगे, छज्जों पर पहुंचोगे, और रोशनदानों में से कूद कर कमरों में जाकर ताले तोड़ोगे और क्रोम चुरा लाओगे-वाह बेटे बड़े होशियार हो तुम !
फिर तुम्हारे भी बच्चे होंगे और उनकी मां उन्हें छोड़ जाएगी, लेकिन तब क्या तुम उस बच्चे के लिए दर-दर भीख मांगते घूमोगे?
तुम
कौन हो-कौन हो तुम? कुलक? कुलक मेरी ही तरह तुम मैं-मैं!”
फिर उसने बच्चे को ज़मीन पर लिया दिया और खुद एक पेड़ के पीछे छिप गया, और देखने लगा कि वह करता क्या है : उसने अपने हाथ-पैर चलाने शुरू किए, हाथ मुंह में ठूंस कर चूसने लगा, और किलकारियां भरने लगा, जैसे खेल रहा हो, फिर “मा-माम्मा म्मान्मा!?
बूड़ी दूसरे पेड़ की आड़ में छिपा और दूर और दूर वह चलता ही चला गया, लेकिन उसका रोना बराबर सुनाई पड़ता ही रहा-जब वह उसकी आंखों से बिल्कुल ही ओझल हो गया, तब वह जोर से भागने लगा।
वह बेतहाशा भागता चला जा रहा था, किंतु उसी गति से बच्चे के रोने की आवाज भी उसके पीछे-पीछे दौड़ती चली आ रही थी-“अरे कहीं नदी में लुढ़क कर न गिर गया हो”-उसने यकायक सोचा। उसके दिल में एक भयानक पीड़ा उठी-एक कसक ! एक ऐंठन! सिर घूम गया! एकदम
रुका। चारों ओर देखा। लौट पड़ा । फिर वहां पहुंच गया। बच्चा खूब फूट-फूट कर रो रहा था। उसने फौरन उसे उठा कर छाती से चिपका लिया।
जंगल के सहारे जो छोटी-छोटी झोपड़ियां हैं, उन्हीं में वह जा पहुंचा और अपने कलेजे के टुकड़े उस बच्चे के लिए दर-दर भीख मांगने लगा-“इस अनाथ के लिए दूध-भूखा मरा जा रहा है-दूध जरा-सा दूध!
बड़ा भला होगा-भगवान भला करेगा तुम्हारा-इस दुधमुंहे बिना मां के लाल के लिए जरा-सा दूध...दूध दूध...दूध !”

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