स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे की जीवनी - Tatya Tope Biography in Hindi
स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे की जीवनी - Tatya Tope Biography in Hindi

देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम क प्रसिद्ध सेनानायक तात्या टोपे (Tatya Tope) का जन्म 1805 ईस्वी में पूना में हुआ था | उनके पिता का नाम पांडुरंग येवलेकर था | तात्या टोपे का पूरा नाम था रामचन्द्र पांडुरंग येवलेकर | उनके पिता पांडुरंग अन्ना साहब कहलाते थे और पेशवा बाजीराव द्वितीय के गृह विभाग का काम देखते थे | अंग्रेजो की कूटनीति के कारण जब पेशवा बाजीराव को पूना की गद्दी छोडकर कानपुर के निकट बिठुर में आकर बसना पड़ा तो उनके साथ पांडुरंग भी तात्या को लेकर बिठुर आ गये | उस समय तात्या की उम्र तीन वर्ष थी |
तात्या (Tatya Tope) की शिक्षा-दीक्षा पेशवा के दत्तक पुत्रो और मोरोपंत ताम्बे की पुत्री मनुबाई (झांसी के रानी लक्ष्मीबाई) के साथ हुयी | तात्या बड़ी तीव्र बुद्धि का साहसी व्यक्ति थे | बड़ा होने पर पेशवा ने उसे अपना मुंशी बना लिया | इस पद पर काम करते हुए उसने एक कर्मचारी का भ्रष्टाचार पकड़ा तो प्रसन्न होकर पेशवा ने उसे पुरुस्कार स्वरूप अपनी रत्नजडित टोपी देकर सम्मानित किया | तभी से वह तात्या टोपे के नाम से प्रसिद्ध हो गया | 1851 में जब पेशवा बाजीराव का देहांत हो गया तो अंग्रेजो ने उनके दत्तक पुत्र नाना साहब (घोड़ोपंत) को उनका उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और पेशवा को मिलनेवाली पेंशन भी बंद कर दी |
इसके बाद 1857 में विदेशियों के विरुद्ध जो युद्ध आरम्भ हुआ उसमे तात्या टोपे ने बड़ी वीरता का परिचय दिया | क्रान्तिकारियो ने कानपुर पर अधिकार कर लिया | तात्या (Tatya Tope) ने 20 हजार सैनिको की सेना का नेतृत्व करके कानपुर में अंग्रेज सेनापति विन्धम को तथा कैम्पवेल को परास्त करके भागने के लिए मजबूर किया | उस समय लोगो को ज्योतिषी , मौलवी , मदारी , साधू-सन्यासी आदि के वेश में भेजकर कमल ,पुष्प और रोटी के साथ संघर्ष का संदेश प्रसारित किया गया था |
कानपुर में अंग्रेजो को पराजित करने के बाद तात्या (Tatya Tope) ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर मध्य भारत का मोर्चा सम्भाला | यद्यपि बेतवा के युद्ध में उसे सफलता नही मिली किन्तु शीघ्र ही पुन: संघठित होकर वह झांसी की रानी के साथ ग्वालियर की ओर बढ़ा | उसने सिंधिया की सेना को पराजित किया और सिंधिया आगरा में अंग्रेजो की शरण में चला गया परन्तु ग्वालियर पर कब्जा करने में ह्यूरोज को सफलता मिल गयी |यही झांसी की रानी भी शहीद हो गयी | टोपे (Tatya Tope) अंग्रेजो के हाथ नही आया लेकिन 1859 में सिंधिया के सामंत मानसिंह ने विश्वासघात करके उसे पकडवा दिया और अंत में इस वीर मराठा देशभक्त को 18 अप्रैल 1859 को फांसी पर चढ़ा दिया गया |