भगत सिंह Bhagat Singh एक क्रांतिकारी समाजवादी थे जो भारत की भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में बहुत प्रभावशाली रहे | भगत सिंह का जन्म पंजाबी सिख परिवार में हुआ जो राजीनीति में सक्रिय परिवार था | उन्होंने बचपन से ही अपना जीवन भारत की स्वंतंत्रता में समर्पित कर दिया | Bhagat Singh कई क्रांतिकारी आन्दोलन में शामिल हुए और कई बार गिरफ्तार भी हुए | Bhagat Singh भगत सिंह को ब्रिटिश अफसर की हत्या के आरोप में 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ा दिया |
Early life of Bhagat Singh भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन
Bhagat Singh भगत सिंह का जन्म 1907 में वर्तमान पाकिस्तान के Lyallpur जिले [फैसलाबाद] के बंगा गाँव में हुआ | उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विध्यावती था | सयोंग से उनके जन्म पर उनके पिता और दो चाचा अजित सिंह और स्वर्ण सिंह जेल से रिहा हुए थे | Bhagat Singh का परिवार सिख था , जिसमे अधिकांश भारत के स्वंतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय थे और दुसरे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में थे | Bhagat Singh का पैतृक गाँव भारत के पंजाब राज्य के नवांशहर जिले [वर्तमान में इसका नाम शहीद भगत सिंह नगर कर दिया ] के बंगा कस्बे के निकट खत्करकला गाँव से थे |
Bhagat Singh का परिवार शुरू से राजनीति में सक्रिय था | उनके दादाजी अर्जुन सिंह स्वामी दयानंद सरस्वती के हिन्दू सुधारवादी आंदोलन , आर्य समाज का अनुगमन कर कर रहे थे जिसका भगत सिंह Bhagat Singh पर काफी प्रभाव था | उनके पिता और चाचा करतार सिंह और हर दयाल द्वारा चलायी जा रही ग़दर पार्टी के सदस्य थे | अजित सिंह को अदालत में सुनवाई में देरी के चलते देश निकाला मिला हुआ था जबकि स्वर्ण सिंह की 1910 में जेल से निकलने के बाद लाहोर में उनके घर पर म्रत्यु हो गयी |
अपनी उम्र के सिखों की तरह Bhagat Singh भगत सिंह ने लाहोर के खालसा हाई स्कूल नही गये | उसके दादाजी ने स्कूल में दाखिले के लिए अंग्रेज सरकार की निष्ठा स्वीकार नही की थी | भगत सिंह का दाखिला उसकी बजाय एक आर्य संस्थान , Anglo-Vedic High School में किया गया | 1919 में Bhagat Singh जब केवल 12 वर्ष के थे तो जलियांवाला बाग नरसंहार वाली जगह पर घुमा करते थे जहा पर हजारो निर्दोष लोगो की बेरहमी से गोलिया मारकर हत्या कर दी गयी थी | जब वो 14 वर्ष के थे तो गाँव के उन लोगो में शामिल थे जिन्होंने 20 फरवरी 1921 ने गुरद्वारा नानक साहिब पर निर्दोष लोगो की हत्या के विरोध में बड़ी सख्या में प्रदर्शनकारियों का स्वागत किया |
जब Bhagat Singh भगत सिंह गांधीजी के अहिंसा के सिधान्तो से निराश हो गये थे यब उन्हें असहयोग आन्दोलन के लिए बुलाया गया | गांधीजी के फैसले का अनुसरण करते हुए कुछ गाँव वालो ने पुलिसकर्मियों की हिंसक हत्या कर दी जिन्होंने 1922 में चौरा चौरी कांड में तीन ग्रामीणों की हत्या कर दी थी | Bhagat Singh भगत सिंह युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गये और अंग्रेज सरकार को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने के लिए वकालत करने के लिए शुरू किया |
Bhagat Singh Admission in college and joined Hindustan Republic Association
1923 में भगत सिंह Bhagat Singh ने लाहोर के नेशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया जहा पर उन्होंने पाठ्योतर गतिविधियों जैसे सामजिक नाटको में भाग लेना शुर कर दिया | 1923 में पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता जीती जिसमे उन्होंने पंजाब की समस्याओ के बारे में लिखा था | Giuseppe Mazzini के Young Italy movement से प्रेरित होकर Bhagat Singh ने 1926 में भारतीय राष्ट्रवादी युवा संगठन “नौजवान भारत सभा ” की स्थापना की |वो Hindustan Republican Association में भी शामिल हो गये जिसमे चंद्रशेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक़उल्ला खान जैसे प्रमुख नेता थे | इसके एक साल बाद शादी के लिए मना करते हुए वो कानपुर भाग गये और एक पत्र छोड़ गये जिसमे लिखा था ” मेरा जीवन देश की स्वंतंत्रता के महान काम के लिए समर्पित है इसलिए कोई आराम और सांसारिक इच्छा अब मुझे लुभा नही सकती , मेरी दुल्हन अब मौत ही बन सकती है ”
पुलिस ने अक्टूबर 1926 में लाहोर बम विस्फोट में शामिल होने का बहाना करके युवाओ पर प्रभाव डालने के आरोप में भगत सिंह Bhagat Singh को मई 1927 में गिरफ्तार कर लिया | Bhagat Singh की गिरफ्तारी के पांच सप्ताह बाद 60000 रूपये की जमानत पर उन्हें रिहा कर दिया गया |Bhagat Singh ने अमृतसर में प्रकाशित होने वाले उर्दू और पंजाबी समाचार पत्रों के लिए लेखक और सम्पादक का काम किया | ब्रिटिश सरकार की धज्जिया उड़ाने के लिए उन्होंने नौजवान भारत सभा द्वारा प्रकाशित कम कीमत के पर्चे छपवाने में भी योगदान किया | इसके अलावा उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी की पत्रिका और वीर अर्जुन समाचार पत्र के लिए भी लेखन का काम किया | Bhagat Singh अपने लेखो में अक्सर अपना उपनाम बलवंत , रंजित और विद्रोही लिखते थे |
Lala Lajpat Rai’s death and killing of Saunders लाला लाजपत राय की मौत और सॉन्डर्स की हत्या
1928 में अंग्रेज सरकार ने भारत के राजनितिक स्थिथि की रिपोर्ट के लिए साइमन कमीशन स्थापित किया | कुछ राजनितिक दलों ने इस कमीशन का बहिष्कार किया क्योंकि इस कमीशन का एक भी सदस्य भारतीय नही था और पुरे देश में विरोध शुरू हो गया | जब कमीशन ने 30 अक्टूबर 1928 को लाहोर का दौरा किया तब लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक विरोध जुलुस निकाला गया | पुलिस के भीड़ को तितर बितर करने के प्रयास में हिंसा शुरू हो गयी |
पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट ने विद्रोहियों के खिलाफ लाठी चार्ज करने का आदेश दिया और खुद ने लाला लाजपत राय पर हमला किया | लाठी चार्ज से लाला लाजपतराय घायल हो गये और 17 नवम्बर 1928 को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी | डॉक्टरों ने सोचा कि उनकी मौत भारी चोटों की वजह से हुयी है | जब ये मामला ग्रेट ब्रिटेन की संसद में उठा तो अंग्रेज सरकार ने लाला लाजपत राय की मौत में उनकी कोई भी भूमिका होने से मना कर दिया |
Bhagat Singh भगत सिंह Hindustan Republican Association का मुख्य दस्य था जिसने 1928 में इसका नाम Hindustan Socialist Republican Association कर दिया | HSRA ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की कसम खाई | Bhagat Singh भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथियो शिवराम राजगुरु , सुखदेव थापर और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर स्कॉट को मारने की योजना बनाई | पहचानने में गलती होने के कारण साजिशकर्ताओ ने सहायक पुलिस अधीक्षक John P. Saunders को मार दिया जब वो 17 दिसम्बर 1928 को लाहोर के जिला पुलिस मुख्यालय से रवाना हो रहा था | नेताओ , कार्यकर्ताओ , अखबारों और लोगो ने लाला लाजपत राय के साथ जो घटना हुयी उसे असहयोग आन्दोलन की बजाय हिंसा बेहतर बताया |
Bhagat Singh Escape From Lahore लाहोर से बच कर भाग जाना
सौन्डर्स को मारने के बाद वो दल D.A.V. College के प्रवेश द्वार से भाग गया | एक हेड कांस्टेबल चनन सिंह उनका पीछा कर रहे थे वो जवाबी गोलियों में घायल हो गये | उसके बाद वो साइकलो पर बैठकर योजना के अनुसार सुरक्षित घरो में भाग गये |पुलिस ने इन्हें पकड़ने के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया जिसमे उन्होंने शहर में हर आने जाने वाले को रोक दिया | पुलिस लाहोर छोडकर जाने वाले हर नौजवान पर निगाह रखे हुए थे | वो सब अगले दो दिनों तक छुपे रहे | 19 दिसम्बर 1928 को सुखदेव ने दुर्गा भाभी को मदद के लिए बुलाया जो HSRA के सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी थी और वो सहायता करने के लिए राजी हो गयी | उन्होंने अगली सुबह लाहोर से भटिंडा जाने वाली रेल से भागने की योजना बनाई |
भगत सिंह और राजगुरु अगली सुबह भरी हुयी रिवोल्वर हाथ में लिए हुए घरो से निकले | विदेशी पोशाक पहने और देवी के बच्चे को हाथ में लिए भगत सिंह Bhagat Singh और दुर्गा देवी युवा दम्पति के रूप में निकले जबकि राजगुरु नौकर बनकर उनका सामन उठाये चल रहा था | सिख होने के बावजूद अपनी पहचान छुपाने के लिए उन्होंने अपनी दाढी मुंडवायी और बाल कटवाए | स्टेशन पर पहुचने पर Bhagat Singh भगत सिंह टिकिट खरीदते वक़्त अपनी पहचान छुपाने में कामयाब रहे और तीनो कानपुर जाने वाली रेल में सवार हो गये |इसके बाद जब से वो लखनऊ की रेल में सवार हुए पुलिस हावड़ा रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की छानबीन कर रही थी | राजगुरु वहा से अलग होकर बनारस ले लिए रवाना हो गये जबकि भगत सिंह और दुर्गा देवी बच्चे सहित हावड़ा चले गये | हालात सही होने पर कुछ दिनों बाद Bhagat Singh फिर लाहौर लौट गये |
1929 Assembly Bomb Blast by Bhagat Singh असेंबली में बम विस्फोट
कुछ दिनों तक Bhagat Singh भगत सिंह विद्रोह के लिए नाटको का सहारा लेना शुरू कर दिया जिसमे वो काकोरी कांड में मारे गये राम प्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी विचारो को दिखाते थे | 1929 में उन्होंने HSRA से एक बड़े पैमाने पर प्रचार पाने के लिए नाटक करने का प्रस्ताव रखा | एक फ़्रांसिसी कट्टरवादी Auguste Vaillant [जिसने पेरिस के Chamber of Deputies पर बम फेखा था] से प्रभावित होकर , Bhagat Singh भगत सिंह ने भी Central Legislative Assembly में एक बम विस्फोट करने की योजना बनाई |
इस बम विस्फोट करने का मुद्दा सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, और व्यापार विवाद अधिनियम था जो Assembly द्वारा वाइसराय ने स्पेशल पॉवर प्रयोग करते हुए खारिज कर दी | उनका वास्तविक इरादा इस बन विस्फोट के जरिये खुद को गिरफ्तार करवाकर लोगो के सामने विद्रोह का प्रसार करना था | HSRA के नेताओ ने Bhagat Singh भगत सिंह की इस योजना में भाग लेने का विरोध किया क्योंकि पहले ही सौन्डर्स हत्याकांड में उनकी भागेदारी के कारण उनको सीधा फांसी होगी | फिर भी Bhagat Singh भगत सिंह को इस काम के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार घोषित किया गया |
8 अप्रैल 1929 को Bhagat Singh भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर public gallery से Assembly chamber में दो बम फेंके जब Session चल रहा था | इस बम विस्फोट को ऐसे तैयार किया गया कि किसी की मौत ना हो लेकिन कुछ सदस्य घायल हो गये | बम विस्फोट से Assembly में धुआ फ़ैल गया जिससे Bhagat Singh भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त आसानी से भाग सकते थे | इसकी बजाय उन्होंने जोर जोर से “इन्कलाब जिंदाबाद ” के नारे लगाते गये और leaflets फेंकते गये | उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली की अलग अलग जेलों में रखते गये |
अब अदालत में उनकी पेशिया चलाना शुरू हो गयी और जून के पहले महीने की सुनवाई में उन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई क्योंकि बम धमाको से किसी की मौत नही हुयी थी | बटुकेश्वर दत्त की वकालात असफ अली ने की जबकि भगत सिंह ने कोई वकील नही रखा और अपनी वकालात खुद की | पेशियों में गवाही की सटीकता के खिलाफ संदेह हुआ | एक गवाह ने बताया कि जब Bhagat Singh भगत सिंह गिरफ्तार हुए तब उनके पास से पिस्तौल बरामद हुयी | कुछ गवाहों बताया कि भगत सिंह ने दो -तीन गोलिया चलाई थी जबकि जिस पुलिस हवलदार ने उसे गिरफ्तार किया उसने बयान दिया कि बन्दुक नीचे की ओर झुकी हुयी थी जब उसने उससे पिस्तौल छीनी और भगत सिंह उससे खेल रहे थे |भारतीय कानून के वकील का मानना था कि अभियोजन पक्ष के गवाह को सिखाया गया है और ये सभी बाते गलत है क्योंकि भगत सिंह ने पिस्तौल अपनी तरफ कर रखी थी | Bhagat Singh भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी |
Further trial and execution of Bhagat Singh गहन पूछताछ और फाँसी
इसके बाद HSRA ने लाहौर और सहारनपुर की दो कारखानों में बम विस्फोट किया | 15 अप्रैल 1929 में लाहोर बम विस्फोट के दोषियों का पुलिस ने पता लगा लिया जिसमे HSRA के दुसरे सदस्य सुखदेव , किशोरीलाल और जय गोपाल को गिरफ्तार कर लिया गया | सहारनपुर कारखाने पर भी छापा मारने पर कुछ साजिशकर्ता मुखबिर बन गये और उनकी मदद से पुलिस ने सौडेर्स के हत्यारों का पता लगा लिया | Bhagat Singh भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु समेत 21 अन्य लोगो पर सौन्डर्स की हत्या का आरोप लगाया गया |
जेल में रहते हुए Bhagat Singh भगत सिंह को पता चला कि अधिकारी कैदियों का सत्कार में दोहरी निति अपना रहे थे |विदेशी अपराधियों को भारतीय कैदियों से अच्छा बर्ताव कर रहे थे | इसके विरोध में Bhagat Singh ने अपने कैदी साथियो के साथ मिलकर भूख हड़ताल शुरू कर दी| ये हड़ताल एक महीने तक चली और अंग्रेजो ने अंत में उनकी हालते देखते हुए उनकी बाते स्वीकार कर ली |
Bhagat Singh भगत सिंह और दुसरे क्रांतिकारियों को Assembly bombing और Saunders murder का दोषी पाया गया और 24 मार्च 1931 को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया | कोई मजिस्ट्रेट उनकी फांसी की निगरानी के लिए तैयार नही हुआ था औरर जज को ही ये काम करना पड़ा । इस काम को 11 घंटे पहले ही अंजाम दे दिया गया और 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को उनके दो साथियो राजगुरु और सुखदेव के साथ शाम 7:30 पर फांसी पर लटका दिया गया | फांसी पर जाते वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान थी और अंतिम समय तक “ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” चिल्लाते रहे | जेल अधिकारियो ने जेल के पीछे की दीवार में छेद कर उन तीनो के शरीर को गुप्त रूप से अँधेरे में एक गाँव में ले जाकर उनका अंतिम संस्कार किया और उनकी अस्थिया सतलज नदी में बहा दी गयी |इस फांसी की घटना अखबारों में फ़ैल गयी और गांधीजी को युवाओ ने काले झंडे दिखाए |
तो मित्रो अगर भगत सिंह को अगर आप अपना आदर्श मानते है तो आप भगत सिंह की इस जीवनी Bhagat Singh Biography In Hindi पर अपने विचार जरुर यक्त करे |