भारत की राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष का कोई एक ही रास्ता या एक ही रूप नही था | जैसे गंगा गंगोत्री से एक क्षीण धारा के रूप में निकलती है और जैसे जैसे आगे बढती है वैसे वैसे आस-पास की सरिताओ को समेटती हुयी चली जाती है वैसी ही स्थिति स्वाधीनता आन्दोलन की थी | उदारवादी , उग्र राष्ट्रवादी , क्रांतिकारी और गांधी के तेजस्वी नेतृत्व में कार्य कर रहे अहिंसक आन्दोलनकारी सभी इस राष्ट्रीय आन्दोलन के अंग थे | इस राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रारम्भिक नेता उदारवादी ही थे | 1888-1905 काल के प्रमुख उदारवादी नेता थे ए.ओ.ह्युम , दादाभाई नौराजी , सुरेन्द्रनाथ बनर्जी , फिरोजशाह महता , बदरूद्दीन तैय्यब जी , गोपालकृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) |
गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) इनमे निश्चित रूप से सबसे अधिक प्रमुख थे | शासनतन्त्र के विरुद्ध युद्ध करते समय गोखले ने वैधानिक मार्ग को अपनाया | उनका विश्वास था कि ब्रिटिश सरकार को अपनी बात समझाकर शासनतन्त्र में सुधार और अंततोगत्वा स्वराज्य के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है | गोखले स्वभाव से ही मृदु थे अत: उनकी प्रवृति यह थी कि नरम तरीको से ही काम निकाल लिया जाए | राष्ट्रीय आन्दोलन के उदारवादी नेताओं को सामान्यत: आरामकुर्सी के राजनीतिज्ञ माना जाता है | वस्तुत: ऐसी बात नही थी और गोखले के संबध में तो ऐसी किसी बात की कल्पना ही नही की जा सकती | देश के प्रति अटूट निष्ठा ,तप-त्याग ,लगन और अनथक परिश्रम में वे राष्ट्रीय आन्दोलन के अन्य किसी नेता से पीछे नही थे |
गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) का जन्म 1866 में बम्बई प्रांत के कोल्हापुर जिले में हुआ था | जब उनकी आयु मात्र 13 वर्ष की थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया और उन्हें शिक्षा प्राप्ति के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ा | लेकिन उनमे दिल और दिमाग की अद्भुद योग्यताये थी और उन्होंने जीवन में बड़ी तेजी से उन्नति की | गोखले जी 18 वर्ष की आयु में स्नातक हुए और 20 वर्ष की आयु में पूना के अंग्रेजी स्कूल में अध्यापक हुए , जो आगे चलकर विख्यात फर्ग्युसन कॉलेज के रूप में विकसित हुआ | गोखले इस कॉलेज से 1902 ई. में प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुए | महादेव गोविन्द रानाडे गोखले की बुद्धिमता और कर्तव्य-परायणता से बहुत प्रभावित थे और गोखले ने अपना सार्वजनिक जीवन जस्टिस रानाडे के शिष्य के रूप में आरम्भ किया | गोखले ने अपने गुरु की भावना को यथार्थ रूप से ग्रहण किया और वे कभी भी रानाडे द्वारा निर्धारित मृदुता और मधुर तर्कसंगतता के रास्ते से नही हटे |
जस्टिस रानाडे ने गोखले (Gopal Krishna Gokhale) को बम्बई प्रदेश की मुख्य राजनितिक संस्था “सार्वजनिक सभा “का मंत्री बना दिया और शीघ्र ही वे अपने प्रांत के प्रमुख व्यक्तियों में गिने जाने लगे | वे इस संस्था के प्रमुख Quarterly Review के सम्पादक नियुक्त हुए | चार वर्ष तक वे समाज सुधार के संबध पत्रिका “सुधारक” के भी सम्पादक रहे | 22 वर्ष की अल्प आयु में ही गोखले बम्बई विधान परिषद के सदस्य मनोनीत किये गये | सरकार की भूमि राजस्व संबधी निति पर उन्होंने परिषद को बहुत ही प्रभावोत्पादक भाषण दिए | 1889 ई. में गोखले कांग्रेस के सदस्य बन गये और वे कई वर्षो तक बम्बई प्रदेश के मंत्री रहे |
सन 1892 के अधिनियम की कमियों पर उन्होंने तर्कपूर्ण ढंग से प्रकाश डाला | सन 1902 में उन्हें केन्द्रीय विधान परिषद का सदस्य चुना गया और जीवन के अंतिम समय तक वे उस पद पर आसीन रहे | परिषद में उनके बजट भाषण बहुत ही तर्क एवं तथ्यों से पूर्ण तथा आकर्षक होते थे | सन 1904 ई. में ब्रिटिश सरकार ने गोखले को C.I.F. का खिताब दिया | सन 1905 ई. में उन्होंने कांग्रेस के बनारस अधिवेशन के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया | केवल 39 वर्ष की आयु में इस गौरवपूर्ण पद पर पहुचने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे | इसके बाद गोखले अनेक वर्षो तक कांग्रेस के उदारवादी पक्ष के कर्णधार का कार्य करते रहे |
गोखले (Gopal Krishna Gokhale) ने विविध रूपों में देश की सेवा की | उन्होंने 1897 , 1905 , 1906, 1908, 1912, 1913 और 1914 में कुल मिलाकर 7 बार इंग्लैंड की यात्रा की | इनमे से कुछ यात्राये उन्होंने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में ब्रिटेन के समक्ष भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए की थी | 1897 में वे बेब्ली आयोग के समक्ष भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए इंग्लैंड गये थे | बेब्ली आयोग दो मुख्य प्रश्नों पर विचार के लिए नियुक्त किया गया | पहला , क्या भारत पर कोई ऐसा वित्तीय भार है जिसे न्याय की दृष्टि से इंग्लैंड को वहन करना चाहिये ? और दूसरा भारतीय वित्त की समीक्षा | 1905 में गोखले ने हाबहाउस विकेंद्रीकरण आयोग के समक्ष अपने विचार रखे |
1905 में गोखले (Gopal Krishna Gokhale) उस प्रतिनिधि मंडल के सदस्य होकर इंग्लैंड गये जो ब्रिटिश राजनीतिज्ञों को यह समझाने-बुझाने के लिए गया था कि बंग-भंग संबधी अधिनियम न बनाया जाये लेकिन विवेकपूर्ण आग्रह का ब्रिटिश नेताओं पर कोई प्रभाव नही पड़ा | गोखले ने 1909 के सुधारों का पहले तो स्वागत किया लेकिन बाद में सुधारों के व्यावहारिक रूप पर घोर निराशा प्रकट करते हुए उन्होंने नौकरशाही के कार्यो की कटु आलोचना की | सितम्बर 1912 में भारतीय लोक सेवाओं की विभिन्न समस्याओं तथा कार्यप्रणाली के संबध में जांच करने के लिए इस्लिंगटन की अध्यक्षता में के शाही आयोग नियुक्त किया गया था | श्री गोखले इस आयोग के सदस्य थे |
अपनी इंग्लैंड की यात्राओं में गोखले ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ब्रिटिश समिति तथा उसके पत्र इंडिया को सक्रिय बनाने में भी प्रसंशनीय कार्य किया | सर विलियम बैडरबर्न एक सहयोग से उन्होंने इस पत्र को भारतीय आकांशाओ का एक ओजस्वी एक यथार्थवादी प्रवक्ता बना दिया | सन 1910 था 1912 में गोखले ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल में नेटाल के करारबद्ध भारतीय श्रमिको की सहायता के लिए प्रस्ताव रखे | इन श्रमिको की स्थिति आज के बंधुआ श्रमिको से भी बदतर थी | 1912 में वे गांधीजी के निमन्त्रण पर दक्षिण अफ्रीका गये और वहा उन्हें गांधीजी के नेतृत्व में भारतीय सत्याग्रहीयो तथा दक्षिण अफ्रीका की सरकार के बीच समझौता कराने में सफलता मिली | उन्होंने गांधीजी को सूचित किया कि पंजीकरण के काले अधिनियम को रद्द कर दिया जाएगा और तीस पौंड के घूर्णित कर को समाप्त कर दिया जाएगा |
गोखले (Gopal Krishna Gokhale) को गांधीजी अपना राजनितिक गुरु मानते थे और गोखले के मन में गांधीजी के लिए गहरा स्नेह और सम्मान था | गांधीजी उन्हें पुण्यात्मा गोखले कहा करते थे | उनकी निर्दोष देशभक्ति और आकर्षक व्यक्तित्व का ब्रिटेन के नेताओं पर भारी प्रभाव पड़ा था | अपनी चारित्रिक श्रेष्टता , गम्भीर सत्यनिष्ठा और मातृभूमि की अनवरत सेवा से वे भारत तथा विदेशो में अनेक लोगो की प्रसंशा और सम्मान के पात्र बन गये थे | उनकी कर्तव्यनिष्ठा ने उन्हें भारी सम्मान दिलाया था लेकिन यह सब कुछ उनके स्वास्थ्य के मूल्य पर ही हो पाया था और 19 फरवरी 1915 की अल्पआयु में उनका देहावसान हो गया |