सरदार वल्लभभाई पटेल VallabhBhai Patel भारत के महान नेता और वक्ता थे जो भारत की आजादी में सक्रिय रूप से शामिल थे | वर्तमान भारत का जो स्वरुप आज आप देख रहे है उसको एकीकृत करने का श्रेय भी सरदार वल्लभभाई पटेल को जाता है जो उन्होंने भारत का प्रथम गृहमंत्री बनने के बाद किया था | सरदार वल्लभभाई पटेल VallabhBhai Patel को लौहपुरुष के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि वो जिस काम को करने की ठान लेते थे उसे पूरा करके ही दम लेते थे | जिस तरह लोहा कभी झुकता और मुड़ता नही है उसी तरह सरदार वल्लभभाई पटेल भी अपने संकल्पों से कभी नही हटे थे |
वारडोली में सत्याग्रह के दौरान उन्होंने किसानो को एकीकृत कर उनका हक दिलाने की बात कही थी तब से किसानो ने उन्हें अपना “सरदार” मान लिया और उनको सरदार कहकर पुकारा जाने लगा था | वैसे तो सरदार सिक्खों के लिए प्रयुक्त होता है लेकिन नेतृत्व की क्षमता के कारण उन्हें सरदार कहा जाने लगा था | आधुनिक भारत में सरदार वल्लभभाई पटेल VallabhBhai Patel का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है | आइये आपको सरदार वल्लभभाई पटेल VallabhBhai Patel की जीवनी के बारे में विस्तार से बताते है |
सरदार का प्रारभिक जीवन | Early Life of Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi
VallabhBhai Patel वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के बोरसद तहसील के करमसद नामक गाँव में हुआ था | उनके पिता का नाम झबेरभाई और माता का नाम लाड़बाई था | उनके माता पिता कृषक थे और खेती से ही अपनी जीविका चलते थे | वल्लभभाई पटेल एक पिताजी ने 1857 की क्रांति में हिस्सा लिया था जो जेल भी गये थे | वल्लभभाई पटेल के चार भाई सोमाभाई .नरसिंहभाई , विट्ठलभाई और काशीभाई तथा एक बहन डालीबेन थी | वल्लभभाई के अलावा उनके भाई विट्ठलभाई भी स्वतंत्रता संग्राम एम् सक्रिय रहे थे |
VallabhBhai Patel वल्लभभाई पटेल बचपन से ही बहुत बहादुर थे | एक बार उनके बगल में फोड़ा हो गया तो वैध जी ने गर्म लोहे से फोड़ा दाग देने को कहा | उनके परिवार के लोग तो फोड़ा दागने की बात से डर गये थे लेकिन वल्लभभाई पटेल ने खुद लोहे से अपने फोड़े को दाग दिया और बिलकुल भी नही डरे | इसके अलावा एक बार पुस्तके खरीदने के लिए उनके शिक्षक उनसे पुस्तके खरीदने के लिए सभी छात्रों को बाध्य करते थे तो वल्लभभाई पटेल ने स्कूल में हड़ताल करवा दी और पुस्तको का व्यापार बंद करवा दिया था |
सरदार पटेल की प्राथमिक शिक्षा उनके गाँव में ही हुयी थी और मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने 1897 में नडियाद से पुरी की थी | सरदार पटेल के पिताजी उनको पढ़ाने में बड़ी रूचि रखते थे क्योंकि वो अपने पुत्र को इतना काबिल बनाना चाहते थे कि उनको भविष्य में खेती ना करनी पड़े | सरदार पटेल बचपन में खेतो में काम करने के साथ साथ पढ़ाई भी करते थे | वो मैट्रिक परीक्षा में एक बार अनुतीर्ण भी हो गये थे लेकिन उन्होंने कभी हार नही मानी और आगे बढ़ते रहे |
मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनकी इच्छा उच्च शिक्षा प्राप्त करने की थी लेकिन वो परिवार पर बोझ नही बनना चाहते थे इसलिए उन्होंने मुख्तारी की प्रक्टिस करना शुरू कर दिया | मुख्तारी में उन्होंने अपनी बुद्धिमता से कई कठिन मामले सुलझाये थे जिससे उनकी आमदनी शुरू हो गयी थे | अब उनके पास इतने पैसे इकट्ठे हो गये थे कि वो विदेश जाकर बैरिस्टर की पढाई कर सके | जब वो जाने की पुरी तैयारी कर चुके थे तब अंतिम मौके पर उनके बड़े भाई विट्ठलभाई ने विदेश जाने की बात रखी |
सरदार ने अपने खुद के खर्चे पर अपने बड़े भाई को विलायत भेजा और 1908 में विट्ठलभाई बैरिस्टर की पढाई कर वापस लौटे | 1909 में सरदार पटेल के साथ एक दुखद घटना हुयी जब एक मुकदमे की शुरुवात में उनको उनकी पत्नी की मृत्यु का तार मिला था लेकिन उन्हों मुकदमा पूरा कर जीतने के बाद ही घर गये थे | उनकी पत्नी झबेर खान अपने पीछे एक पांच वर्ष की पुत्री मणिबेन और चार वर्ष का पुत्र डाहुयाभाई छोडकर गयी थी | अपनी पत्नी की मौत का गम भुलाने के बाद 1910 में सरदार पटेल स्वयं बैरिस्टर की पढाई के लिए रवाना हुए |
सरदार पटेल की बैरिस्टर बनना
सरदार पटेल की बचपन से ही अंग्रेजी मनोवृति थी कि बैरिस्टर बनकर वो भी आराम से जीवन बिताएंगे | उस समय उनका उद्देश्य केवल बैरिस्टर बनकर धन कमाना था और उसके अलावा उनके जीवन का कोई संकल्प नही थे | जब विलायत जाने के लिए रवाना हुए थे तब विलायती पौशाक पहनकर उनमे विदेशी भावना जागृत हो गयी थी | अब लन्दन में दिन रात बैरिस्टरी की पढाई में लगे रहते थे फलस्वरूप प्रथम श्रेणी में उन्होंने बैरिस्टर की पढाई पुरी कर ली थी |
जब 1913 में सरदार पटेल VallabhBhai Patel बैरिस्टर बनकर वापस भारत लौटे तो उनके गाँव के लोग दंग रह गये क्योंकि एक किसान के लडके ने विदेश से पढाई की थी | अब सरदार पटेल ने अहमदाबाद में वकालात शुरू कर दी और कुछ ही महीनों में वो अहमदाबाद के जाने माने बैरिस्टरो में से एक गिने जाने लगे | अब धीर धीर उनकी ख्याति दुसरे शहरों में भी फ़ैल गयी और उन्होंने अपनी फीस भी बढ़ा दी | अब केवल उनकी आमदनी से उनका पूरा परिवार चलता था |
1914 से 1920 तक उन्होंने पूर्णरूपेण अपने आप को कोर्ट में लगाया हुआ था और वो उस समय तक राजनीति से दूर ही रहते थे | 1921 में जब गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया तो सभी वकील उसमे शामिल हुए थे | अब इन वकीलों में वल्लभभाई पटेल के साथ साथ मोतीलाल नेहरु , तेज बहादुर , राजेन्द्र प्रसाद और मावलंकर जैसे जाने माने वकीलों ने भी भाग लिया था | इससे पहले सरदार पटेल कभी गांधीजी के आन्दोलन में भाग नही लिया करते थे और वो गांधीजी के आन्दोलन को पागलपन कहा करते थे |
विदेश से लौटने के बाद जब उन्होंने जब स्वदेशी आन्दोलन में विदेशी कपड़ो का त्याग किया तब उनके मन में गांधीजी के प्रति भावना जागृत हुयी थी | गुजरात सभा में गांधीजी के भाषण से उस समय सरदार पटेल बहुत प्रभावित हुए | जब 1917 में गुजरात सभा हुयी थी तब देश के सभी नेताओ को गांधीजी ने गुजराती भाषा में भाषण देने को कहा था और जो गुजराती नही बोल पाते थे उनके लिए अनुवादक रखा गया था | इस तरह पहली बार अंग्रेजी भाषा का विरोध किया गया था | सरदार पटेल उनके इस वक्तव्य से बहुत प्रभावित हुए और तब से उनके साथ जुड़ गये |
वल्लभभाई पटेल की सामजिक जागरूकता
VallabhBhai Patel वल्लभभाई पटेल ने 1917 में अहमदाबाद नगरपालिका का चुनाव लड़ा और उसमे विजयी होकर चैयरमैन बने | उसी वर्ष अहमदाबाद में प्लेग फ़ैल गया और कई लोगो की म्रत्यु हो गयी थी | ऐसी कठिन घड़ी में वल्लभभाई पटेल ने विवेक से काम लेते हुए अहमदाबाद के नागरिको को जंगल में जाने का निर्देश दिया ताकि वो प्लेग पर नियत्रण पा सके | जब प्लेग पर नियन्त्रण पा लिया था तभी इन्फ्लूएंजा शहर में फ़ैल गया और फिर वल्लभभाई पटेल ने अपने शहर को इन बीमरियों से निजात दिलाई और चिकित्सा व्यवस्था को सुदृढ़ किया था |
जब सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हुआ तब वल्लभभाई की पहली बार गांधीजी से मुलाकात हुयी थी | उस समय उनको सत्याग्रह और अहिंसा जैसे विषयों में रूचि नही थी क्योंकि वो समाज सेवा को ही अपना धर्म समझते थे | खेडा सत्याग्रह में गांधीजी ने स्वयंसेवकों की माग की तब वल्लभभाई पटेल ने अपना ना भी लिखवाया | तब से उन्होंने गांधीजी के साथ साथ सत्याग्रह की कमान सम्भाली थी | धीरे धीरे सरदार वल्लभभाई पटेल गांधीजी को अपना गुरु मानने लग गये थे जबकि उन दोनों की आयु में मात्र पांच वर्ष का अंतर था |
गांधीजी का उनके जीवन पर इतना प्रभाव पड़ा कि उनका रहन सहन और खान-पान ही बदल गया | अब वो भी गांधीजी की तरह धोती-कुर्ता पहनकर गांधीजी के आंदोलनों में शामिल होने लगे थे | 1918 में वर्षा की कमी के कारण गुजरात के खेडा जिले में फसले बर्बाद हो गयी | अब किसानो ने सरकार से लगान माफी की मांग की लेकिन उस समय सरकार ने मना कर दिया | अब किसानो के हक के लिए गांधीजी और सरदार वल्लभभाई पटेल खेडा पहुचे और पुरे गाव में पैदल घूमकर अंग्रेजो का विरोध करने का आह्वान किया |
खेड़ा सत्याग्रह से गांधीजी और सरदार पटेल में नजदीकिया भी बढी और एक दुसरे को समझने लगे | इस तरह चम्पारण और खेडा के विद्रोहों से पुरे देश की नजर गांधीजी के साथ साथ वल्लभभाई पटेल पर भी पड़ी | अंत में किसानो की जीत हुयी और सरकार को लगान में छुट दी गयी | गांधीजी ने इसकी सफलता का श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल को दिया था |
बारडोली का विद्रोह और गिरफ्तारी
1928 में अंग्रेजो ने गुजरात की बारडोली गाँव में 30 प्रतिशत लगान बढ़ा दिया था और उन्होंने स्थानीय नेताओ और सरकार से लगान कम करने की मांग की लेकिन कोई फायदा नही हुआ | जब बारडोली के किसान वल्लभभाई पटेल के पास पहुचे तो तुंरत वारडोली पहुचे | वारडोली में उन्होंने करवसूली के विरोध में सत्याग्रह की घोषणा कर दी और धीरे धीरे पडौसी क्षेत्रो में भी फ़ैल गया | सरकार ने विद्रोह दमन करने की भरसक कोशिश की लेकिन आन्दोलन बिलकुल नही रुका |
वारडोली के लोगो ने पुरे देश में जनसभाए कर धन संग्रह किया और पीडितो में धन वितरित किया | सरदार पटेल ने संघतन को बिलकुल नही टूटने दिया और अंततः एक बार फिर अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा | सरदार वल्लभभाई पटेल की कोशिशो से किसानो को नीलाम हुयी जमीन वापस मिली और सत्याग्रही बन्दियो को मुक्त करने के साथ साथ लगान में भी कमी की गयी | सरदार वल्लभभाई पटेल की इस जीत को “वारडोली विजय दिवस” के रूप में मनाया गया |
वारडोली सत्याग्रह में विजय पाने के बाद वो गांधीजी के नमक सत्यग्रह की तैयारी कर रहे थे तो अंग्रेज सरकार से नमक दांडी कुच करने के पांच दिन पहले ही सरदार पटेल को गिरफ्तार कर लिया | उन्हें तीन महीने तक नजरबंद कर लिया गया और 500 रूपये जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया |उसके बाद उनके जेल जाने का सिलसिला शुरू हो गया और हर छ: महीनों में जेल जाते रहे | जेल से रिहा होने के बाद वो कांग्रेस के साथ शामिल होकर अंग्रेज सरकार का विद्रोह करने लगे |
सरदार वल्लभभाई पटेल राजनीती में | Political Career of Vallabhbhai Patel in Hindi
1929 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल VallabhBhai Patel का नाम आया लेकिन गांधीजी की पहल पर जवाहरलाल नेहरु को अध्यक्ष चुना गया | इससे पहले जवाहरलाल नेहरु के पिता मोतीलाल नेहरु कांग्रेस के अध्यक्ष थे | 1942 में गांधीजी ने “अंग्रेजो भारत छोड़ो ” और “करो या मरो ” का नारा दिया | इस क्रांति में सभी नेता जेल में बंद हो गये थे और सरदार पटेल भी तीन वर्षो तक जेल में रहे | इस दौरान मुस्लिम लीग ने साम्प्रदायिता के बीज देश में बो दिए थे | मुस्लिम लीग के जिन्ना एक अलग राष्ट्र की मांग करने लगे थे |
अब अंग्रेजो ने अंतत भारत छोड़ने का फैसला कर लिया था और 1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया | उसमे विभाजन की बात को सबसे पहले वल्लभभाई पटेल ने स्वीकार किया था क्योंकि वो देश में दंगो से ओर लोगो की मौत नही देखना चाहते थे | 2 जून 1947 को भारत-पाक विभाजन का दिन 15 अगस्त 1947 घोषित किया गया | अब 15 अगस्त को भारत आजाद हो गया और जवाहरलाल नेहरु प्रधानमंत्री तथा सरदार वल्लभभाई पटेल गृहमंत्री बने |
अब भारत-पाकिस्तान तो अलग हो गये थे लेकिन भारत में अभी भी 565 रियासते रह गयी थी जिनको किसी भी राष्ट्र में मिलने की आजादी दी गयी थी | सरदार वल्लभभाई पतले के प्रयासों से 562 रियासतों को तो भारत में मिला लिया गया था लेकिन तीन रियासते अभी भी स्वतंत्र थी | गुजरात के जूनागढ़ रियासत पहले पाकिस्तान में मिल गयी थी क्योंकि वहा का नवाब मुस्लिम था लेकिन सरदार ने सेना भेजकर उसको अपने कब्जे में ले लिया |
उसके बाद हैदराबाद का निजाम भी अपना स्वतंत्र राष्ट्र चाहता था तो सरदार ने वहा पर भी अपनी सेनाए भेज दी और मजबूरन हैदराबाद को भी भारत में विलय होना पड़ा | अब जम्मू कश्मीर रह गया थे और जम्मू कश्मीर पर आजादी के तुंरत बाद घुसपैठियो ने हमला कर दिया था | उस समय जम्मू कश्मीर के राजा हरी सिंह ने जम्मू कश्मीर को स्वंतत्र रखा था लेकिन उनके पास सेना नही थी इसलिए उन्होंने भारत सरकार से मदद माँगी |
भारत सरकार ने मदद करने के लिए एक ही शर्त रखी कि जम्मू कश्मीर भारत में विलय हो जाए | महाराजा हरिसिंह को सरदार वल्लभभाई पटेल की बात माननी पड़ी और भारत में विलय होने वाले दस्तावेजो पर हस्ताक्षर कर दिए | अब सरदार पटेल ने अपनी सेना जम्मू कश्मीर भेजकर जम्मू कश्मीर से घुसपैथियो को खदेड़ दिया और जम्मू कश्मीर पर अपना कब्जा कर लिया | इस तरह उन्होंने पुरे भारत को एकीकृत कर अखंड भारत का निर्माण किया था |
सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु | Vallabhbhai Patel Death
आजादी के कुछ दिनों बाद 1948 में नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी | सरदार वल्लभभाई पटेल VallabhBhai Patel बहुत दुखी हुए क्योंकि गृहमंत्री होने के नाते उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उन पर थी | उन्होंने विचलित होकर जवाहरलाल नेहरु को त्यागपत्र की पेशकश की लेकिन जवाहरलाल नेहरु ने इस कठिन घड़ी में साथ छोड़ने से मना कर दिया | 1950 तक सरदार वल्लभभाई पटेल की हालत बहुत नाजुक हो गयी थी और 15 दिसम्बर 1950 को हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गयी | उनकी अंतिम यात्रा में 10 लाख से भी ज्यादा लोग इकट्ठे हुए थे | इस तरह एक लौहपुरुष मिटटी में विलीन हो गया |