मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malaviya) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे | वे भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया | पत्रकारिता ,वकालत , समाज सुधार , मातृभाषा तथा भारत माता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमे उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिए तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से उंचा कर सके |
कर्म ही उनका जीवन था | अनेक संस्थाओं के जनक और सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारू सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नही किया | उनकी ख्याति बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कारण है | भारत सरकार ने 24 दिसम्बर 2014 को मरणोपरांत भारत रत्न से अलंकृत किया | मृत्यु के लगभग 6 दशक बाद देश के सर्वोच्च नागरिक नागरिक पुरुस्कार देने की यह घटना अपने आप में अनोखी है |
मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) का जन्म प्रयाग में ,जिसे स्वतंत्र भारत में इलाहाबाद कहा जाता है 25 दिसम्बर 1861 को पंडित ब्रजनाथ और मुनादेवी के यहाँ हुआ था | वे अपने माता-पिता की कुल सात संतानों में से पांचवे पुत्र थे | मध्य भारत के मालवा प्रांत से प्रयाग में आ बसे इसलिए उनके पूर्वज मालवीय कहलाते थे | आगे चलकर यही जातिसूचक नाम उन्होंने भी अपना लिया | उनके पिता पंडित ब्रजनाथ जी संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे |
पांच वर्ष की आयु में उन्हें उनके माता-पिता ने संस्कृत भाषा के प्रारम्भिक शिक्षा लेने हेतु पंडित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती करा दिया जहा से उन्होंने प्राइमरी शिक्षा उत्तीर्ण की | उसके पश्चात वे एक अन्य विद्यालय में भेज दिए गये जिसे प्रयाग की विध्यावर्धिन्नी सभा संचालित करती थी | यहा से शिक्षा पुरी करने वे इलाहबाद के जिला स्कूल पढने गये | यही उन्होंने मकरंद के उपनाम से कविताये लिखनी आरम्भ की | उनकी कविताये पत्र-पत्रिकाओं में खूब छपती थी | लोगबाग बड़े चाव से पढ़ते थे |
1879 में उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज से , जो आजकल इलाहबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की |
हैरिसन स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें छात्रुवृति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा , जहा से उन्होंने 1884 में बी,ए. की उपाधि प्राप्त की | सात वर्ष के मदनमोहन (Madan Mohan Malaviya) को धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला के देवकीनंदन मालवीय माघ मेले में ले जाकर मुढे पर खड़ा कर व्याख्यान दिलवाते थे | शायद इसका ही परिणाम था कि कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में अंग्रेजी के प्रथम भाषण से ही प्रतिनिधियों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले मृदुभाषी मालवीय जी उस समय विद्धमान भारत देश के सर्वश्रेष्ठ हिंदी , संस्कृत और अंग्रेजी के व्याख्यान वाचस्प्तियो में इतने अधिक प्रसिद्ध हुए |
हिन्दू धर्मोपदेश ,मंत्रदीक्षा और सनातन धर्म प्रदीप ग्रंथो में उनके धार्मिक विचार आज भी उपलब्ध है जो परतंत्र भारत देश की विभिन्न समस्याओं पर बड़ी कौंसिल से लेकर असंख्य सभा सम्मेलनों में दिए गये हजारो व्याख्यानों के रूप में भावी पीढियों के उपयोगार्थ प्रेरणा और ज्ञान के अमित भंडार है | उनकी बड़ी कौंसिल से रोलेट बिल के विरोध में निरंतर साढ़े चार घंटे और अपराध निर्मोचन बिल पर पांच घंटे के भाषण निर्भयता और गम्भीरतापूर्वक दीर्घवक्तता के लिए आज भी स्मरणीय है | उनके उद्धरणों में हृदय को स्पर्श करके रुला देने की क्षमता थी परन्तु वे अविवेकपूर्ण कार्य के लिए श्रोताओं को उकसाते नही थे |
म्योर कॉलेज के मानसगुरु पंडित आदित्यराम भट्टाचार्य के साथ 1880 में स्थापित हिन्दू समाज में मालवीय जी भाग ले रहे थे कि उन्ही दिनों प्रयाग के वायसराय लार्ड रिपन का आगमन हुआ | रीपन जो स्थानीय स्वायत शासन स्थापित करने के कारण भारतवासियों में जितने लोकप्रिय थे उतने ही अंग्रेजो के कोपभाजन भी | इसी कारण प्रिंसिपल हैरिसन के कहने पर उनका स्वागत संघठित करके मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) ने प्रयागवासियों के हृदय में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया |
कालाकांकर के देशभक्त राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) ने उनके हिंदी अंग्रेजी समाचार पत्र “हिंदुस्तान” का 1887 से सम्पादन करके दो ढाई साल तक जनता को जगाया | उन्होंने कांग्रेस के ही एक अन्य नेता पंडित अयोध्यानाथ का उनके “इंडियन ओपिनियन” के सम्पादन में भी हाथ बंटाया और 1907 में साप्ताहिक “अभ्युदय” को निकालकर कुछ समय तक उसे भी सम्पादित किया | यही नही सरकार समर्थक समाचार पत्र पायोनियर के समकक्ष 1909 में दैनिक “लीडर” अखबार निकालकर लोकमत निर्माण का महान कार्य सम्पन्न किया तथा दुसरे वर्ष “मर्यादा” पत्रिका प्रकाशित की |
इसके बाद उन्होंने 1924 में दिल्ली आकर “हिन्दुस्तान टाइम्स” को सुव्यस्थित किया तथा सनातन धर्म को गति प्रदान हेतु लाहौर से “विश्वबंध” जैसे अग्रणी पत्र को प्रकाशित करवाया | हिंदी के उत्थान में मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) की भूमिका एतेहासिक है | भारतेंदु हरीशचंद्र के नेतृत्व में हिंदी गध्य के निर्माण में संलग्न मनीषियों में “मकरंद” तथा “झक्कड़ सिंह” के उपनाम से विद्याथी जीवन में रसात्मक काव्य रचना के लिए ख्यातिलब्ध मालवीय जी ने देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा को पश्चिमोत्तर प्रदेश एवं अवध के गर्वनर सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख 1898 में विविध प्रमाण प्रस्तुत करके कचहरियो में प्रवेश दिलाया |
हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन (काशी-1919) के सभापति पद से उन्होंने हिंदी उर्दू के प्रश्न को , धर्म का नही अपितु राष्ट्रीयता अक प्रश्न बतलाते हुए उद्घोष किया कि साहित्य और देश की उन्नति अपने देश की भाषा द्वारा ही हो सकती है | समस्त देश की प्रांतीय भाषाओं के विकास के साथ साथ हिंदी को अपनाने के आग्रह के साथ यह भविष्यवाणी भी की कि कोई दिन ऐसा भी आएगा कि जिस भांति अंग्रेजी विश्वभाषा हो रही है उसी भाँती हिंदी का भी सर्वत्र प्रचार होगा | इस प्रकार उन्होंने हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय रूप का लक्ष्य भी दिया |
बहुमुखी प्रतिभा के धनी महामना पंडित मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malaviya) का कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक था | सन 1861 में प्रयाग में उनका जन्म हुआ था | वे एक महान देशभक्त ,स्वतंत्रता सेनानी ,विधिवेत्ता ,संस्कृत वांग्मय और अंग्रेजी के विद्वान ,शिक्षाविद ,पत्रकार और प्रखर वक्ता थे | उस युग में 25 वर्ष की आयु में उनमे उतनी राष्ट्रीय चेतना थी कि उन्होंने 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दुसरे अधिवेशन में भाग लिया और उसे सम्बोधित किया | वे सन 1909 , 1918 , 1932 और 1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये |
सन 1931 में उन्होंने दुसरे गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधत्व भी किया | राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना पूर्ण योगदान देने के उद्देश्य से महामना ने 1909 में वकालत छोड़ दी यद्यपि उस समय वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पंडित मोती लाल नेहरु और सर सुंदर लाल जैसे प्रथम श्रेणी के वकीलों में गिने जाते थे लेकिन दस साल बाद उन्होंने चौरा-चौरी काण्ड के मृत्युदंड के सजायाफ्ता 156 बागी स्वतंत्रता सेनानियों की पैरवी की और उनमे से 150 को बरी करा लिया |
मालवीय (Madan Mohan Malaviya) द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय औपनिवेशिक भारत में शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा था | इसकी स्थापना के लिए मालवीय जी ने अथक प्रयास किये थे उन्होंने इसके लिए भ्रमण कर चंदा इकट्ठा किया था | महात्मा गांधी ने भी उनके इन प्रयासों की सराहना की थी |