लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) को सादगी , इमानदारी ,कर्तव्यनिष्ठां और अद्भुद व्यक्तित्व के लिए आज भी याद किया जाता है | इनके जीवन से जुड़े स्मरण ना केवल हमे प्रेरित करते है बल्कि हमारे जीवन में नये उत्साह का संचार भी करते है | आज के दौर में जब राजनीती की चाल ,चरित्र और चेहरा पुरी तरह बदल गया है और जातिबल , धनबल और बाहुबल ही राजनीती की दिशा तय करने लगे है |ऐसे समय में लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) जैसे प्रधानमंत्री के आदर्श गुणों का स्मरण हमे गौरवान्वित करता है | आइये हम आपको भारत के उसी महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की जीवनी से आपको रूबरू करवाते है |
लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का प्रारम्भिक जीवन
छोटे कद के साधारण से दिखने वाले इस असाधारण प्रधानमंत्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय के रामनगर के साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था | शास्त्री जी के पूर्वज रामनगर में बरसों से जमींदारी का काम कर रहे थे | शास्त्री जी के पिताजी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक स्कूल अध्यापक थे जो बाद में अलाहाबाद के रेवेनुए ऑफिस में बाबू बन गये थे | शास्त्री जी की माँ रामदुलारी देवी मुंशी हजारी लाल की पुत्री थी जो मुगलसराय के रेलवे स्कूल में अंगरेजी अध्यापक और प्रधानाध्यापक थे | शास्त्री जी अपने माता पिता की दुसरी सन्तान और सबसे बड़े पुत्र थे | उनकी एक बड़ी बहन कैलाशी देवी थी |
अप्रैल 1906 में जब शास्त्री जी डेढ़ साल के भी नही हुए थे तब उनके पिता की प्लेग की वजह से मौत हो गयी थी | रामदुलारी देवी सु वक्त केवल 23 वर्ष की थी और गर्भवती थी | अब वो अपने दोनों बच्चो को साथ लेकर रामनगर से अपने पिता के घर मुगलसराय जाकर रहने लग गयी थी | जुलाई 1906 में रामदुलारी देवी ने तीसरी सन्तान सुन्दरी देवी नामक पुत्री को जन्म दिया | अब शास्त्री जी और उनकी दोनों बहने अपने ननिहाल में पल बढ़ रहे थे तभी 1908 में हजारीलाल की भी हहृदयाघात की वजह से मौत हो गयी जिससे सारा घर का भार शास्त्री जी के बड़े मामा दरबारी लाल पर आ गया जो उस वक्त घाजीपुर में क्लर्क थे |
शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) एक कायस्थ परिवार से थे जिस दौर में बच्चो को उर्दू की शिक्षा देने का रिवाज था लेकिन उस दौर में अंग्रेजी ने सरकारी भाषा उर्दू को बदल दिया था | इसी कारण चार साल की उम्र तक शास्त्री जी को एक मौलवी ने पढाया था | वो इतने मेधावी थे की उन्होंने दस साल की उम्र में ही छठी कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी | मुगल सराय में अच्छे हाई स्कूल ना होने के कारण वो अपने परिवार के साथ बनारस चले गये और हरीशचन्द्र हाई स्कूल में पढने लगे | आगे की पढाई उन्होंने काशी विद्यापीठ से की थी |
शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) बचपन की एक घटना बहुत प्रसिद्ध है जिससे पता चलता है कि वो मन के पक्के थे | बचपन में उन्हें स्कूल जाने के लिय गंगा नदी को नाव से पार करना पड़ता था | नदी पार करने के लिए उनको नौका चलाने वाले को किराया देना पड़ता था | एक दिन जब स्कूल जाने के लिए पर्याप्त पैसे नही थे तो नाविक ने बालक शास्त्री को नाव में चढने से मना कर दिया | तब भी बालक शास्त्री को विद्यालय जाने की इतनी लगन थी कि वो गंगा की बहती धारा में कूद गये और हाथ पैर मारते मारते वो बहती गंगा को पार कर गये | इस घटना से पता चलता है कि शास्त्री जी बचपन से कितने दृढ़ संकल्प थे |
युवा सत्याग्रही के रूप में लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri)
शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) के परिवार का स्वतंत्रता आन्दोलन से कोई नाता नही था लेकिन स्कूल में देशभक्ति का गजब वातावरण था जिसमे से सबसे ज्यादा उनको निश्कामेश्वर मिश्रा ने प्रभावित किया जिन्होंने शास्त्री को आर्थिक सहायता भी दी थी | मिश्रा जी के देशभक्ति रवैये से प्रभावित होकर शास्त्री जी को भी स्वतंत्रता आन्दोलन में रूचि होने लगी थी इसलिए उन्होंने इतिहास की पुस्तके पढना शुरू कर दिया जिसमे उन्होंने स्वामी विवेकानंद , बाल गंगाधर तिलक और गांधीजी जैसे महापुरुषों के बारे में पढ़ा |
जनवरी 1921 में जब वो 10 वी कक्षा में थे और उनके अंतिम परीक्षा को मात्र मात्र तीन महीने रह गयी थे तब उन्होंने गांधीजी और मदन मोहन मालवीय द्वारा आयोजित एक आम सभा में शामिल हुए| महात्मा गांधी ने विद्यार्थियों को सरकारी स्कूल छोडकर असहयोग आन्दोलन में शामिल होने को कहा था जिसके कारण अगले ही दिन उन्होंने स्कूल छोड़ दिया रु कांग्रेस पार्टी की स्थानीय शाखा में शामिल हो गये | उनके आंदोलनकरी नीतियों में शामिल होने की वजह से गिरफ्तार भी किया गया लेकिन जल्द ही रिहा कर दिया गया
अब कुछ महान आन्दोलन करियो की बदौलत उन्होंने फिर से पढाई में भाग लेना शूरू कर दिया और 1925 में विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की |विद्यापीठ में स्नातक उतीर्ण करने वाले छात्रों को शास्त्री कहा जाता है जो हमेशा के लिए उनके नाम के साथ जुड़ गया था | 1927 में लाल बहादुर शास्त्री का विवाह ललिता देवी से हुआ जिन्होंने जीवन भर उनकी हर परिस्तिथि में साथ दिया था | 1930 में शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था जिसकी वजह से उन्हें ढाई साल तक जेल में रहना पड़ा था |
1940 में उन्हें फिर से स्वतंत्रता आन्दोलन में सत्याग्रह में शामिल होने की वजह से एक साल की सजा हुयी थी | 1942 में जब महात्मा गांधी ने जब भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू किया था उस वक्त वो एक साल की जेल की सजा काटकर आये ही थे | एक सप्ताह तक वो जवाहरलाल नेहरु के घर आनन्द भवन से स्वन्तान्त्ता आन्दोलन में सक्रिय थे | कुछ सप्ताह बाद उन्हें फीर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और वो 1946 तक जेल में रहे थे | इस तरह शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने अपने जीवन में लगभग 9 साल जेल में गुजारे थे |
लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का राजनीतिक जीवन
शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने भारत की आजादी की जंग में तो सब कुछ न्योछावर कर दिया था लेकिन देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी ये विनम्र , संघर्षशील और निष्ठावान कार्यकर्ता बने रहे | स्वंतंत्रता के बाद शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के सचिव पद पर रहे | 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में इन्होने कांग्रेस महासचिव के रूप में सक्रिय भूमिका अदा की थी | 1952 में इन्हें देश का पहला रेल और संचार मंत्री बनाया गया | बाद में सुचना -प्रसारण ,वाणिज्य और उद्योग मंत्री भी रहे | जवाहरलाल नेहरु के निधन के बाद कांग्रेस पार्टी ने इन्हें उनका स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना गया और प्रधानमंत्री बनाया गया |
देश के दुसरे प्रधानमंत्री
9 जून 1964 को शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की | इन्होने सबको साथ लेकर चलने की निति बनाई और श्रीमती इंदिरा गांधी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया | ये अपने आरम्भिक काल में कोई सकारात्मक प्रभाव नही छोड़ पाए | इन्हें एक सीधा साधा और बहुत सीमा तक अनिर्णय का शिकार प्रधानमंत्री माना जाता था जो किसी भी राष्ट्रीय समस्या के समाधान हेतु कदम उठाने में झिझकता था | इनके कार्यकाल में पंजाबी सूबे की मांग को लेकर चल रहा सिख आन्दोलन उग्र हुआ | राजभाषा के रूप में हिंदी बनाम अंगरेजी के समस्या ने देशव्यापी आन्दोलन का रूप लिया |
1965 में देश के कई भागो में भयानक सुखा पड़ा | उस समय देश में ना तो पर्याप्त अन्न उपजता था और ना अन्न के सुरक्षित भंडार थे | भुखमरी की समस्या मुह उठाये खडी थी | ऐसे में भारत के संकटों से घिरा देख पाकिस्तान ने अचानक गुजरात के कच्छ के रण में हमला कर दिया | शास्त्री जी के प्रयासों से कुछ ही दिनों में दोनों देशो के बीच समझौता हो गया और एक सीमा आयोग बनाने का निर्णय किया गया | सितम्बर 1965 में पाकिस्तानी फ़ौज ने कश्मीर के छम्ब इलाके में अचानक आक्रमण कर दिया |
पाकिस्तानी सेना भारतीय इलाको में तेजी से बढती जा रही थी | शास्त्री जी ने भारतीय सेना को मुहतोड़ जवाब देने का आदेश दिया | अब क्या था , भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को रौंदना शुरू कर दिया | दो-तीन दिनों में ही हाजी पीर दर्रे पर तिरंगा फहराकर लाहौर के हवाई अड्डे को घेर लिया गया | चकलाला के हवाई अड्डे को न्स्तेनाबुद कर दिया गया | पाकिस्तान के 260 टैंक में से 245 को नष्ट कर दिया गया | पाकिस्तान के जनरल अयूब खान इस पराजय से घबरा गये और समझ गये कि यदि वो युद्ध में डटे रहे तो कुछ नही बचेगा |
तब उन्होंने अमेरिका और सोवियत संघ के माध्यम से मदद की गुहार लगायी | शास्त्री जी ने उस समय “जय जवान जय किसान ” के नारे का उद्घोष करते हुए एक छोटा सा भाषण दिया | सयुंक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर भारत पाक के मध्य युद्ध विराम हो गया | दोनों सेनाये जहा की तहा रुक गयी | सोवियत संघ के प्रधानमंत्री कोशिकिंग ने दोनों देशो के सदर को वार्ता के लिए ताशकंद बुलाया | 2 जनवरी 1966 को शास्त्री जी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ताशकंद गया |
3 से 10 जनवरी तक आठ दिनों तक चली बैठक के बाद दोनों देशो में समझौता हुआ जिसे ताशकंद समझौता कहते है | इसके अनुसार दोनों देशो की सेनाओं को युद्ध पूर्व पूर्व स्थान पर लौट जाना था | भारत को इस समझौते से बहुत कुछ खोना पड़ा था जो उसने बड़ी आर्थिक एवं सैनिक क्षति उठाकर प्राप्त किया था | इसकी देश में तीव्र प्रतिक्रिया होने वाली थी |
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु
ताशकंद समझौते के सदमे को शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) झेल नही पाए और 11 जनवरी 1966 की रात को पड़ा दिल का दौरा जानलेवा साबित हुआ | उनका शव भारत लाया गया ,देशवासियों ने सब भूल उनकी अप्रतिम विजय को याद रखा | इस युद्ध ने 1962 में भारत के खोये हुए आत्म सम्मान को वापस लौटा दिया | हालांकि शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) की आकस्मिक मृत्यु से कई सवाल खड़े हो गये थे | शास्त्री जी मौत पर भी विवाद छिड गया था क्योंकि कई भारतवासी उनकी मौत के लिए बाहरी ताकतों को जिम्मेदार मानते थे | कुक लोगो का तो ऐसा भी मानना था कि उनको जहर देकर हत्या कर दी गयी लेकिन पोस्टमार्टम ना हो पाने की वजह से कभी उनकी मौत की असली कारण का खुलासा नही हो पाया था |