विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar ) का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगुर गाँव में एक मराठी परिवार में हुआ था | उनके पिता का नाम दामोदर सावरकर और माता का नाम राधाबाई सावरकर था | विनायक दामोदर सावरकर के दो भाई गणेश और नारायण थे और एक बहन जिसका नाम मैना था | बचपन से ही उनके मन में कट्टर हिंदुत्व की भावना थी जिसके चलते केवल 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दंगो के दौरान अपने साथियो के साथ मिलकर अपने गाँव की मस्जिद पर धावा बोल दिया था |
अपने माता पिता की मौत के बाद उनके सबसे बड़े भाई गणेश ने परिवार की जिम्मेदारी सम्भाली | गणेश को बाबाराव कहकर पुकारते थे जो बचपन से विनायक का बहुत ध्यान रखते थे | इसी दौरान विनायक (Vinayak Damodar Savarkar ) ने अपने साथियो के साथ मिलकर एक युवा दल “मित्र मेला” बनाया जिसमे इस दल को वो क्रांतिकारी और देशप्रेम की भावना जगाते थे | इस तरह बचपन से ही उनमे नेतृत्व की भावना विकसित हो गयी थी | 1901 में विनायक सावरकर का विवाह यमुनाबाई से हो गया जिसके पिताजी रामचन्द्र त्रिंबक चिपलूनकर ने उनको यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने में सहयोग किया था | 1902 में उन्होंने पुणे के Fergusson College में दाखिला ले लिया था |
युवावस्था में वो नई पीढ़ी के नेताओं बाल गंगाधर तिलक ,बिपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपत राय से बहुत प्रेरित थे | लाल-बाल-पाल उस समय अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने के लिए स्वदेशी आन्दोलन की शुरुवात में लगे हुए थे | 1905 में जब स्वदेशी आन्दोलन शुरू हुआ तो विनायक सावरकर ने भी विदेशी भोजन और कपड़ो की होली जलाई थी | अपने साथी छात्रों के साथ मिलकर विनायक दामोदर ने एक राजनितिक दल “अभिनव भारत ” का निर्माण किया | विनायक (Vinayak Damodar Savarkar ) के इन्ही विद्रोही क्रियाकलापों के कारण उनको कॉलेज से निकाल दिया गया लेकिन BA की परीक्षा में बैठने दिया था |
BA की डिग्री प्राप्त करने के बाद राष्ट्रवादी कार्यकर्ता श्यामजी कृष्ण वर्मा ने कानून की पढाई के लिए इंग्लॅण्ड जाने में उनकी सहायता की | अब विनायक पढाई के लिए इंग्लॅण्ड चले गये और उधर लाल-पाल-बाल ने मिलकर कांग्रेस से अलग होकर गरम दल का निर्माण कर दिया था | गरम दल के नेताओ का ये मानना था कि अंग्रेजो के साथ नरमी बरतने से आजादी नही मिलने वाली है और इसके लिए हिंसक विद्रोह करने की आवश्यकता है | तिलक को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जेल भेज दिया गया |
वीर सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधिया Vinayak Damodar Savarkar Activities at India House
लन्दन ने Vinayak Damodar Savarkar विनायक ने Gray’s Inn law college में दाखिला लेने के बाद India House में रहना शुरू कर दिया था | इंडिया हाउस उस समय राजनितिक गतिविधियों का केंद्र था जिसे पंडित श्यामजी चला रहे थे | सावरकर ने Free India Society का निर्माण किया जिससे वो अपने साथी भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने को प्रेरित करते थे | सावरकर ने 1857 की क्रांति पर आधारित किताबे पढी और “The History of the War of Indian Independence” नामक किताब लिखी | उन्होंने 1857 की क्रांति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजो को जड़ से उखाड़ा जा सकता है |
Vinayak Damodar Savarkar सावरकर की इस किताब को ब्रिटिश साम्राज्य में प्रतिबंधित कर दिया लेकिन एक भारतीय क्रांतिकारी महिला मैडम कामा ने इस किताब को नीदरलैंड, फ़्रांस और जर्मनी में प्रकाशित किया | वहा से ये किताब कई भारतीयों के पास पहुची और ये किताब बहुत लोकप्रिय रही | सावरकर अब क्रांतिकारी तरीको का अध्ययन कर रहे थे कि किस तरह बम का निर्माण किया जाए और गुप्त तरीके से किताबो में पिस्तौले रखकर भारत भिजवाई | सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई और इसे फ़ैलाने को कहा | 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदन लाल धिंगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी | धींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी |
सावरकर ने धींगरा के बारे में लेख लिखा जिसमे उन्होंने धींगरा का राजनीतिक और कानूनी सहयोग भी दिया | अब भारतीयों की एक बैठक बुलाई गयी जिसमे सावरकर ने धींगरा में पक्ष में अपनी बात कही जिससे काफी वाद विवाद हो गया | अब अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबंधित परीक्षण कर धींगरा को मौत की सजा सुना दी जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भडक गये | Vinayak Damodar Savarkar सावरकर ने अंग्रेज अफसरों को गलत फैसला देने के लिए विरोध किया | सावरकर ने धींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रांतिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था |
उधर भारत में उनके भाई गणेश सावरकर 1909 में पारित हुए मोर्ले-मिन्टो सुधार के विरोध में विद्रोह कर रहे थे | अब Vinayak Damodar Savarkar विनायक सावरकर को अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फंसा दिया | अब सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया | अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया | जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखकर भेजी | उसने अपने मित्र को भारत जाने वाले जहाजो पर ध्यान रखने को कहा ताकि बाहर निकलते ही वो भारत जा सके |
8 जुलाई 1910 को फ्रांस के बन्दरगाह पर भारत जाने वाला जहाज रुका था और उधर सावरकर पेशाब का बहाना कर वाशरूम में चले गये | अब वाशरूम में एक रोशनदान खिड़की होती है जिससे बाहर निकला जा सकता है | सावरकर ने वाशरूम को अंदर से बंद कर उस रोशनदान खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए बाहर किनारे पर पहुचे | अब वो अपने मित्र का इंतजार कर रहे थे जो उनको कार में लेने आ रहा था लेकिन उनके मित्र को आने में देरी हो गयी और उधर जहाज में अलार्म बज गया | अब सावरकर को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया | Veer Savarkar सावरकर की गिरफ्तारी से फ्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया कि अगर वो समय पर सावरकर को नही पकड़ते तो सावरकर को ब्रिटिश सरकार कभी नही पकड़ पाती | ये केस विवादों के कारण बहुत लम्बा चला और 1911 में इसका नतीजा आया | ब्रिटिश सरकार के साथ विवाद के कारण फ्रेच सरकार ने सावरकर को इंडियन आर्मी को सौपने का फैसला किया |
वीर सावरकर को काले पानी की सजा Veer Savarkar as Prisoner in Cellular Jail in Andaman
अब फेंच सरकार के फैसले पर सावरकर को बॉम्बे लाया गया और उन्हें पुणे की सेंट्रल जेल में रखा गया | जांच पुरी होने के बाद Veer Savarkar सावरकर पर अंग्रेज अफसर को मारने की हत्या की साजिश और भारत में क्रांति की पुस्तके भेजने के दो अभियोगों में 25-25 वर्ष मतलब कुल मिलाकर 50 वर्ष की सजा सुनाई गयी और उन्हें 4 जुलाई 1911 को अंडमान-निकोबार की कुख्यात सेल्लुलर जेल में भेज दिया गया | सेल्लुलेर जेल को उस समय भारतीय काले पानी की सजा कहते थे क्योंकि उस जेल से भाग पाना असंभव था | वो जेल चारो ओर से समुद्र से गिरी हुयी थी ओर अगर कोई भाग भी जाए तो वो भारत तक किसी भी हालत में नही पहुच सकता था |
अब Veer Savarkar सावरकर को भी उसी जेल में दुसरे क्रांतिकारीयो के साथ यातनाये सहनी पड़ी थी | उस समय Veer Savarkar सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर भी उसी जेल में थे लेकिन उस जेल के नियम इतने क्रूर थे कि वो अपने भाई से 2 वर्ष तक नही मिल सके | जब सावरकर अपने भाई से मिले तो उनसे मिलकर सावरकर को थोड़ी बहुत राहत मिली जिससे वो इस कठोर वातावरण में संघर्ष कर सके | उस जेल में कैदियों को रोज सुबह पांच बजे उठा दिया जाता था उसके बाद उनको पेड़ काटने , लकडिया चीरने और कोल्हू के बैल की तरह तेल निकलवाने का काम कराया जाता था | उस जेल में एक दुसरे से बात करने पर भी पाबंदी थी और दोषी को ओर कठोर यातनाये दी जाती थी |
कैदियों को लगातार दुराचार और यातना सहन करना पड़ता था | बाहरी दुनिया और घर में सम्पर्क करना भी प्रतिबंधित था और उनको वर्ष में केवल एक बार पत्र भेजने की अनुमति थी | इन दिनों में सावरकर ने अपने आप को पारिस्थितियो में ढाला और अपने दैनिक काम करते रहे | अब उस जेल में उन्होंने एक अल्पविकसित जेल पुस्तकालय चलाने की अनुमति मांगी जिसे मान लिया गया | सावरकर अपने कुछ दोषी साथियो को पढ़ाने लिखाने भी लगे थे क्योंकि उन्होंने जेल के अफसरों से अच्छा सम्पर्क बना लिया था |
जेल में रहते हुए 1911 से उन्होंने जेल से रिहा होने तक कई दया याचिकाये लिखी थी | उन्होंने 1911,1913, 1914,1917,1918 1920 तक कई दया याचिकाए लिखी लेकिन हर बार उनकी दया याचिकाए खारिज कर दी गयी थी | 1920 में कांग्रेस और अन्य नेताओं महात्मा गांधी ,वल्लभभाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर बिना शर्त उनकी रिहाई कर दी गयी | Veer Savarkar सावरकर ने फिर से ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने के वक्तव्य पर हस्ताक्षर करवा दिए |
हिन्दू महासभा के अध्यक्ष के रूप में Veer Savarkar as Leader of the Hindu Mahasabha
अब जेल से रिहा होने के बाद 6 जनवरी 1924 को सावरकर ने हिन्दू धर्म के विकास के लिए रत्नागिरी हिन्दू सभा का निर्माण किया | सावरकर ने भारत की जनता को हिंदी को रास्ट्रीय भाषा बनाने के लिए उत्तेजित किया और जाति प्रथा व छुआछूत का विरोध किया | इसके अलावा उन्होंने दूसरा धर्म अपनाने वाले लोगो को फिर से हिन्दू धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया | Veer Savarkar सावरकर ने एक आम सभा में इसाई धर्म अपनाने वाले ब्राह्मण परिवार को फिर से हिन्दू धर्म में परिवर्तित किया और उनके परिवार करर दो बेटियों की शादी भी करवाई |
उधर जिन्ना द्वारा चलाई जा रही मुस्लिम लीग की बढती लोकप्रियता को देखते हुए उन्होंने राष्ट्रीय राजनीतिक माहौल की तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया | Veer Savarkar सावरकर अब मुंबई चले गये और उन्हें 1937 में हिन्दू महासभा का अध्यक्ष चुना गया और 1943 तक उन्होंने अध्यक्ष पद पर रहते हुए काम किया | Veer Savarkar सावरकर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुओ को एकजुट होने का एक नारा दिया था | कांग्रेस द्व्रारा चलाये जा रहे “भारत छोड़ो आन्दोलन” Quit India Movement का उन्होंने विरोध किया और हिन्दुओ को अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध में सक्रीय रहने को कहा |
सावरकर महात्मा गांधी के एक बेबाक आलोचक थे जो गांधीजी को कायर मानते थे क्योंकि उन्हों भगत सिंह की फांसी का विरोध नही किया था | इसके अलावा खिलाफत आन्दोलन के दौरान भी मुस्लिमो की मनुहार के उन्होंने आलोचना की | विभाजन के दौरान सावरकर और उनका दल गांधीजी का विद्रोह कर रहा था क्योंकि गांधीजी उस समय पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे |
वीर सावरकर की गिरफ्तारी Veer Savarkar Arrest in Gandhi’s assassination and death
30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के बाद पुलिस ने नाथूराम गोडसे के साथ उनको भी गिरफ्तार किया था क्योंकि गोडसे भी हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता था | Veer Savarkar सावरकर को 5 फरवरी 1948 को गिरफ्तार कर मुंबई जेल भेज दिया गया | उनको हत्या की साजिश में शामिल होने का इल्जाम लगा था | हालंकि नाथूराम गोडसे ने हत्या की पुरी योजना के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराया |17 जनवरी 1948 को फांसी से पहले नाथूराम गोडसे अंतिम बार सावरकर से मिले | Veer Savarkar सावरकर को सबूतों के आभाव में रिहा कर दिया गया |
अब जेल से रिहा होने के बाद फिर से वो अपने हिंदुत्व अभियान में लग गये थे | उनके कई अनुयायी बन गये थे | 8 नवम्बर 1963 को सावरकर की पत्नी यमुना का देहांत हो गया | 1 फरवरी 1966 से Veer Savarkar सावरकर ने भोजन पानी त्यागकर आत्मार्पण शुर कर दिया और अपनी मौत से पहले उन्होंने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक “आत्महत्या नही आत्मार्पण ” था जिस्म उन्हों बताया कि उनके जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो चूका है इसलिए अब उनके पास समाज की सेवा करने की ताकत नही है इसलिए मौत का इंतजार करने के बजाय अपना जीवन खत्म कर देना बेहतर है |
26 फरवरी 1966 को 83 वर्ष की उम्र में Veer Savarkar का देहांत हो गया |उनकी अंतिम यात्रा में काफी लोगो की भीड़ जमा हुयी थी | उनका एक पुत्र विश्वास और एक पुत्री प्रभा चिपलूनकर थी | उनके पुत्र की बचपन में ही मौत हो गयी थे | उनके घर परिवार की चीजे आज भी संग्रहालय में सुरक्षित रखी गयी है | Veer Savarkar सावरकर के जीवन पर 1996 में मलयालम भाषा में फिल्म बनी थी जिसमे वीर सावरकर का किरदार अनू कपूर ने निभाया था | 2001 में उनकी एक बायोपिक बनी थी जिसमे शैलेन्द्र गौर ने सावरकर का किरदार निभाया था |
तो मित्रो इस तरह आपने सावरकर की जीवनी में देखा कि किस तरह वो देश के सम्मान के लिए लड़े और हिंदुत्व को बचाने में सफल रहे | अगर Veer Savarkar वीर सावरकर की जीवनी से आपको प्रेरणा मिली हो तो आप कमेन्ट में अपने विचार जरुर लिखे |