जिहाद का जवाब जिहाद से देने वाला पहला हिंदू योद्धा तक्षक
जिहाद का जवाब जिहाद से देने वाला पहला हिंदू योद्धा तक्षक
⚜️मुहम्मद बिन कासिम ने सन 712 में भारत पर आक्रमण किया। वह अत्यंत क्रूर और अत्याचारी था। उसने अपने आक्रमण में एक भी युवा को जीवित नहीं छोड़ा।
⚜️कासिम के इस नरसंहार को 8 वर्ष का बालक तक्षक चुपचाप देख रहा था। वही इस कथा का मुख्य पात्र है।
⚜️तक्षक के पिता सिन्धु नरेश राजा दाहिर के सैनिक थे।कासिम की सेना के साथ लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए थे।
⚜️राजा दाहिर के मरने के बाद लूट मार करते हुए अरबी सेना तक्षक के गांव में पहुंची, तो गांव में हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से बाहर खींच-खींच कर सरे-आम इज्जत लूटी जाने लगी। भय के कारण तक्षक के घर में सब चिल्ला उठे। तक्षक की दो बहनें डर से कांपने लगीं।
⚜️तक्षक की मां सब परिस्थिति भांप चुकी थी। उसने कुछ पल अपने तीनों बच्चों की तरफ देखा। उन्हें गले लगा लियाऔर रो पड़ी।
🔱अगले ही क्षण उन क्षत्राणी ने तलवार से दोनों बेटियों का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसकी मां ने तक्षक की ओर देखा और तलवार अपनी छाती में उतार ली।
⚜️यह सब घटना आठ वर्ष का अबोध बालक "तक्षक" देख रहा था। वह अबोध बालक अपने घर के पिछले दरवाजे से बाहर निकल कर खेतों की तरफ भागा और समय के साथ बड़ा होता गया। तक्षक भटकता हुआ कन्नौज के राजा "नागभट्ट" के पास पहुँचा। उस समय वह 25 वर्ष का हो चुका था। वह नागभट्ट की सेना में भर्ती हो गया।
⚜️अपनी बुद्धि बल के कारण वह कुछ ही समय में राजा का अंगरक्षक बन गया। तक्षक के चेहरे पर कभी न खुशी न दुःख दिखता था। उसकी आंखें हमेशा क्रोध से लाल रहतीं थीं। उसके पराक्रम के किस्से सेना में सुनाए जाते थे। तक्षक इतना बहादुर था कि तलवार के एक वार से हाथी का सिर धड़ से अलग कर देता था।
⚜️सिन्धु पर शासन कर रही अरब सेना कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुकी थी लेकिन हमेशा नागभट्ट की बहादुर सेना उन्हें युद्ध में हरा देती थी।और वे भाग जाते थे। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते हुए राजा नागभट्ट की सेना इन भागे हुए जेहादियों का पीछा नहीं करती थी।
⚜️इसी कारण वे पुनः सक्षम होकर बार बार कन्नौज पर आक्रमण करते रहते थे। एक बार फिर अरब के खलीफा के आदेश से सिन्धु की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण करने आयी।
⚜️यह सूचना पता चली तो कन्नौज के राजा नागभट्ट ने अपने सेनापतियों की बैठक बुलाई। सबअपने अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। इतने में महाराजा का अंग रक्षक तक्षक खड़ा हुआ। उसने कहा महाराज हमें दुश्मन को उसी की भाषा में उत्तर देना होगा।
⚜️एक पल नागभट् ने तक्षक की ओर देखा, फिर कहा कि अपनी बात खुल कर कहो तक्षक क्या कहना चाहते हो।
⚜️तक्षक ने महाराजा नागभट्ट से कहा कि अरब सैनिक महा बरबर, क्रूर, अत्याचारी, जेहादी मानसिकता के लोग हैं। उनके साथ सनातन नियमों के अनुसार युद्ध करना अपनी प्रजा के साथ अन्याय होगा।उन्हें उन्हीं की भाषा में उत्तर देना होगा।
⚜️महाराजा ने कहा किन्तु हम धर्म और मर्यादा को कैसे छोड़ सकते हैं "तक्षक"।
⭕तक्षक ने कहा कि मर्यादा और धर्म का पालन उनके साथ किया जाता है जो मर्यादा और धर्म का मर्म समझें। इन राक्षसों का धर्म हत्या और बलात्कार है। इनके साथ वैसा ही व्यवहार करके युद्ध जीता जा सकता है । राजा का मात्र एक ही धर्म होता है - प्रजा की रक्षा। राजन: आप देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें। मुहम्मद बिन कासिम ने युद्ध जीता, दाहिर को पराजित किया और उसके पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया।
⭕यदि हम पराजित हुए तो हमारी स्त्रियों और बच्चों के साथ वे वैसा ही व्यवहार करेंगे।महाराज आप जानते ही हैं कि भारतीय नारियों को किस तरह खुले बाजार में राजा दाहिर के हारने के बाद बेचा गया। उनका एक वस्तु की तरह भोग किया गया। महाराजा ने देखा कि तक्षक की बात से सभा में उपस्थित सारे सेनापति सहमत हैं।
⚜️महाराजा नागभट्ट गुप्त कक्ष की ओर तक्षक के साथ बढ़े और गुप्तचरों के साथ बैठक की।तक्षक के नेतृत्व में युद्ध लड़ने का फैसला हुआ।अगले ही दिन कन्नौज की सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चुका था। आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।
⚜️आधी रात बीत चुकी थी। अरब की सेना अपने शिविर में सो रही थी। अचानक ही तक्षक के नेतृत्व में एक चौथाई सेना अरब के सैनिकों पर टूट पड़ी। जब तक अरब सैनिक संभलते तब तक मूली गाजर की तरह हजारों अरबी सैनिकों को तक्षक की सेना मार चुकी थी। किसी हिंदू शासक से रात्री युद्ध की आशा अरब सैनिकों को न थी। सुबह से पहले ही अरबी सैनिकों की एक चौथाई सेना मारी जा चुकी थी। बाकी सेना भाग खड़ी हुई।
⚜️जिस रास्ते से अरब की सेना भागी थी उधर राजा नागभट्ट अपनी बाकी सेना के साथ खड़े थे। सारे अरबी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। एक भी सैनिक नहीं बचा। युद्ध समाप्त होने के बाद राजा नागभट्ट वीर तक्षक को ढूंढने लगे।
अंजनी पुत्र 🚩