Rudraksha Ki Utpatti Kaise Hui
रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई , Rudraksha Ki Utpatti Kaise Hui , Story of Rudraksha in Hindi
रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से मानी जाती है। इस बारे में पुराण में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर दुनिया के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन अचानक ही उनका मन दु:खी हो गया।
जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उनमें से कुछ आंसू की बूंदे गिर गई। इन्हीं आंसू की बूदों से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ। शिव भगवान हमेशा ही अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। उनकी लीला से ही उनके आंसू ठोस आकार लेकर स्थिर(जड़) हो गए। जनधारणा है कि यदि शिव-पार्वती को प्रसन्न करना हो तो रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
(रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई , Rudraksha Ki Utpatti Kaise Hui , Story of Rudraksha in Hindi)
क्या है रुद्राक्ष
रुद्राक्ष एक प्रकार का जंगली फल है, जो बेर के आकार का दिखाई देता है तथा हिमालय में उत्पन्न होता है। रुद्राक्ष नेपाल में बहुतायत में पाया जाता है। इसका फल जामुन के समान नीला तथा बेर के स्वाद-सा होता है। यह अलग-अलग आकार और अलग-अलग रंगों में मिलता है। जब रुद्राक्ष का फल सूख जाता है तो उसके ऊपर का छिल्का उतार लेते हैं। इसके अंदर से गुठली प्राप्त होती है। यही असल रूप में रुद्राक्ष है। इस गुठली के ऊपर 1 से 14 तक धारियां बनी रहती हैं, इन्हें ही मुख कहा जाता है।
रुद्राक्ष की श्रेणी
रुद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है-
1- उत्तम श्रेणी- जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।
2- मध्यम श्रेणी- जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।
3- निम्न श्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।
जिस रुद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो, या पूरा गोल न हो। जिसमें उभरे हुए दाने न हों। ऐसा रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए।वहीं जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह उत्तम होता है।
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रंगों के आधार पर रुद्राक्ष को चार श्रेणी में बाटा गया है-
सफेद रंग का रुद्राक्ष ब्राह्मण वर्ग का, लाल रंग का क्षत्रिय, मिश्रित वर्ण का वैश्य तथा श्याम रंग का शूद्र कहलाता है।