एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से, प्राणियों की मृत्यु, यमलोक यात्रा, नरक-योनियों तथा सद्गति के बारे में अनेक गूढ़ और रहस्ययुक्त प्रश्न पूछे। उन्हीं प्रश्नों का भगवान विष्णु ने सविस्तार उत्तर दिया। यह प्रश्न और उत्तर की श्रृंखला ही गरुड़ पुराण है। गरुड़ पुराण में स्वर्ग, नरक, पाप, पुण्य के अलावा भी बहुत कुछ है। उसमें ज्ञान, विज्ञान, नीति, नियम और धर्म की बाते हैं। गरुड़ पुराण में एक ओर जहां मौत का रहस्य है जो दूसरी ओर जीवन का रहस्य छिपा हुआ है।
गरुड़ पुराण से हमे कई तरह की शिक्षाएं मिलती है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। यह पुराण भगवान विष्णु की भक्ति और उनके ज्ञान पर आधारित है। प्रत्येक व्यक्ति को यह पुराण पढ़ना चाहिए। गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है। 18 पुराणों में से इसे एक माना जाता है। गरुड़ पुराण में हमारे जीवन को लेकर कई गूढ़ बातें बताई गई है। जिनके बारें में व्यक्ति को जरूर जनना चाहिए।
क्यों सुनाते हैं इसे मृत्यु के बाद :
- गरुण पुराण में मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। इसीलिए यह पुराण मृतक को सुनाया जाता है।
- 13 दिनों तक मृतक अपनों के बीच ही रहता है। इस दौरान गरुढ़ पुराण का पाठ रखने से वह स्वर्ग-नरक, गति, सद्गति, अधोगति, दुर्गति आदि तरह की गतियों के बारे में जान लेता है।
- आगे की यात्रा में उसे किन-किन बातों का सामना करना पड़ेगा, कौन से लोक में उसका गमन हो सकता है यह सभी वह गरुड़ पुराण सुनकर जान लेता है।
- जब मृत्यु के उपरांत घर में गरुड़ पुराण का पाठ होता है तो इस बहाने मृतक के परिजन यह जान लेते हैं कि बुराई क्या है और सद्गति किस तरह के कर्मों से मिलती है ताकि मृतक और उसके परिजन दोनों ही यह भलि भांति जान लें कि उच्च लोक की यात्रा करने के लिए कौन से कर्म करना चाहिए।
- गरुड़ पुराण हमें सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता है। सत्कर्म और सुमति से ही सद्गति और मुक्ति मिलती है।
- गरुड़ पुराण में व्यक्ति के कर्मों के आधार पर दंड स्वरुप मिलने वाले विभिन्न नरकों के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार कौनसी चीजें व्यक्ति को सद्गति की ओर ले जाती हैं इस बात का उत्तर भगवान विष्णु ने दिया है।
- गरुड़ पुराण में हमारे जीवन को लेकर कई गूढ बातें बताई गई है। जिनके बारे में व्यक्ति को जरूर जनना चाहिए। आत्मज्ञान का विवेचन ही गरुड़ पुराण का मुख्य विषय है। गरूड़ पुराण के उन्नीस हजार श्लोक में से बचे सात हजार श्लोक में गरूड़ पुराण में ज्ञान, धर्म, नीति, रहस्य, व्यावहारिक जीवन, आत्म, स्वर्ग, नर्क और अन्य लोकों का वर्णन मिलता है।
- इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारण को प्रवृत्त करने के लिए अनेक लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है। यह सभी बातें मृतक और उसके परिजन जानकर अपने जीवन को सुंदर बना सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त इसमें आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों के वर्णन के साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किए जाने वाले कृत्यों का विस्तार से निरूपण किया गया है।
- कहते हैं कि गरुढ़ पुराण का पाठ सुनने से ही मृतक आत्मा को शांति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति का मार्ग पता चल जाता है। वह अपने सारे संताप को भूलकर प्रभु मार्ग पर चलकर सद्गति प्राप्त कर या तो पितरलोक में चला जाता है या पुन: मनुष्य योनी में जन्म ले लेता है। उसे प्रेत बनकर भटकना नहीं पड़ता है।
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है -
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥ अर्थ -श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, ये आत्मा अजर अमर होती है, इसे ना तो आग से जला सकते है, और ना ही पानी भिगो सकते है, और ना ही हवा इसे सुखा सकती है और ना ही कोई अस्त्र शस्त्र इसे काट सकता हैं। आत्मा का विनाश कोई नही कर सकता है। यह शरीर विनाशी है और आत्मा अविनाशी। जन्म या मृत्यु सिर्फ शरीर का होता है, आत्मा का नहीं। आत्मा को दुनिया के किसी भी अस्त्र-शस्त्र से ने तो काटा जा सकता है और न ही इसे अग्नि में जलाकर नष्ट ही किया जा सकता है। यहां भगवान श्रीकृष्ण के कहने का तात्पर्य यह है कि मानव जिसे जन्म या मृत्यु समझता है, वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता है। जन्म या मृत्यु सिर्फ इस नश्वर शरीर का होता है, आत्मा तो जन्म-मृत्यु से परे है। आत्मा अजर-अमर और शाश्वत होती है।
विरोधाभास कहां ?
गरुड़ पुराण के अनुसार यमदूत, मृतक को वैतरणी नदी पार करवाते हैं, रास्ते में यातनाएं देते जाते हैं। फिर नर्क में उन्हें उनके कर्मानुसार सजाएं दी जाती हैं। या फिर चित्रगुप्त उनके अच्छे कर्मों के अनुसार स्वर्ग में भेज देते हैं। इस्लाम में इसे जन्नत और दोज़ख कहा गया है। अंग्रेज इसे हैल और हैवन कहते हैं। प्रश्न उठता है कि जब मृत्यु के पश्चात शरीर को जला दिया जाता है या दबा दिया जाता है या उसका किसी अस्पताल में देह दान हो जाता है तो उसे नर्क में गर्म तेल में तला कैसे जाता है, बेहोश होने तक पीटा कैसे जाता है,आग में जलाया कैसे जाता है, शारीरिक यातनाएं , कष्ट कैसे दिए जा सकते हैं? स्वर्ग - नर्क
पर आधारित काफी समय पहले बड़े बड़े कैलेंडर - करनी - भरनी के नाम से आते थे जिसमें नर्क की यातनाओं का बखूबी चित्रांकन किया जाता था।यहां गरुड़ पुराण तथा गीता में परस्पर विरोधाभास है।
क्या सचमुच स्वर्ग या नर्क हैं ? या कपोल कल्पना? विज्ञान सारा यूनिवर्स खोज चुका है। कहीं कुछ नहीं मिला। वास्तव में हमारे ग्रंथों में यह सब कुछ समाज को सही रास्ते पर चलने के लिए, नर्क आदि का भय दिखा कर समझाने का प्रयास किया जाता है ताकि हम अच्छे कर्म करें। अधिकांश विद्वानों का मत है कि हमें अच्छे या बुरे कर्मों का फल इसी जीवन में मिल जाता है। यदि इस जन्म में नहीं मिलता तो अगले जन्म में अवश्य मिलता है।
इस बात का साक्ष्य है पुनर्जन्म। ऐसे कितने ही जीवंत उदाहरण हैं जिसमें जन्म के कुछ दिनों बाद बच्चे पिछले जन्म के मां बाप के पास जाने की जिदद् करने लगे या अपने पिछले जन्म का हाल बतान लगे जो बिल्कुल सही निकले थे। पुनर्जन्म की वास्तविक घटनाओं का विवरण केवल भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में मिलता है।
गीता की इस अवधारणा पर विश्वास और दृढ़ हो जाता है कि शरीर नश्वर है, मरणोपरांत आत्मा अपने कर्मानुसार, एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है। यहां 84 लाख योनियों की परिकल्पना भी सार्थक लगती है कि पशु ,पक्षी या अन्य जीव जंतुओं में भी आत्मा होती हैं।