Grishneshwar Jyotirlinga Ki Katha in Hindi
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा , Grishneshwar Jyotirlinga Ki Katha in Hindi
शिवपुराण के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद के पास दौलताबाद से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वेरुलगाँव के पास स्थित है। इसे घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा निर्मित एलोरा की गुफाएं भी मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर ही हैं।
14 वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत ने इस मंदिर पर हमला भी किया था, तब 16 वीं शताब्दी में शिव जी के भक्त मालोजी राव भोसले को खजाना मिला था, उस खजाने से उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और इसके बाद 18 वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोंद्धार महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने भी करवाया था।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा Grishneshwar Jyotirlinga Ki Katha in Hindi
यह ज्योतिर्लिंग सबसे छोटा है। भगवान के दर्शन करने हेतु गर्भ गृह में प्रवेश के लिए कई नियम है। उसी के अनुसार भक्तगण वहां दर्शन के लिए प्रवेश कर सकते हैं। भगवान शिव जी का पिण्ड पूर्व दिशा की तरफ है। मंदिर का निर्माण 24 खम्बों के द्वारा हुआ है। इन खम्बों पर बहुत ही सुन्दर कलाकारी है। यह मंदिर शिल्पकला के लिए भी प्रसिद्द है।
मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं का चित्र बना हुआ है। कहीं – कहीं तो इस मंदिर को कुंकुमेश्वर नाम से भी जाना जाता है। 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा का समापन इस अंतिम ज्योतिर्लिंग से होता है। इस मंदिर के तीन द्वार हैं।
मुख्य मंदिर से पहले कोकिला मंदिर है, भक्तगण पहले इस मंदिर में रुकते हैं। दूर – दूर से भक्तगण इस पावन तीर्थ पर आते हैं और अभिषेक करते हैं। इस मंदिर के आस – पास कई अन्य मंदिर भी हैं।
शिव की भक्त घुष्मा की है कहानी
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जो कि इस प्रकार है। दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था। उनके जीवन का एक ही कष्ट था कि उन्हें कोई संतान नहीं थी। कई प्रयास के बाद भी उनके आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं सुनाई पड़ी।
तब ब्राह्मण की पत्नी सुदेहा ने छोटी बहन घुष्मा से विवाह अपने पति का विवाह करा दिया। घुष्मा भगवान शिव की परम भक्त थी। वह प्रतिदिन 100 पार्थिव शिव बनाकर पूरी भक्ति और निष्ठा से पूजा करती थी और फिर एक तालाब में उन्हें विसर्जित करती थी। उस पर भोलेनाथ की महान कृपा थी। समय के साथ उसने एक पुत्र को जन्म दिया। बच्चे के आने से घर में खुशी और उल्लास का माहौल छा गया लेकिन घुष्मा से मिली खुशी उसकी बड़ी बहन सुदेहा को रास न आई और वह उससे जलने लगी। उसका पुत्र सुदेहा को खटकने लगा और एक रात अवसर पाकर सुदेहा ने उसके पुत्र की हत्या करके उसी तालाब में फेंक दिया।
शिव की कृपा से जीवित हुआ पुत्र
इस घटना से पूरे परिवार में मातम छा गया सब विलाप करने लगे लेकिन शिवभक्त घुष्मा को अपनी भक्ति पर पूर्ण विश्वास था वह बिना किसी दुख विलाप के रोज की तरह उसी तालाब में सौ शिवलिंगों की पूजा कर रही थी। इतने में उसे तालाब से ही अपना पुत्र वापस आता दिखा। यह सब भगवान शिव की महिमा थी कि घुष्मा ने अपने मृत पुत्र को फिर से जीवित पाया। उसी समय स्वयं शिव वहां प्रकट होकर घुष्मा को दर्शन देते हैं।भगवान उसकी बहन को दंड देना चाहते थे लेकिन घुष्मा अपने अच्छे आचरण के कारण भगवान से अपने बहन को क्षमा करने की विनती करती है। अपनी अनन्य भक्त की प्रार्थना पर शिव ने घुष्मा से वरदान मांगने को कहा, तब घुष्मा कहती है कि मैं चाहती हूं कि आप लोक कल्याण के लिए हमेशा के लिए यहां पर बस जाएं। भक्त के नाम को जग में अमर करने के लिए शिव ने कहा कि मैं अपनी भक्त के नाम से यहां घुष्मेश्वर के नाम से जाना जाऊंगा। तब से यह जगत में शिव के अंतिम ज्योतिर्लिंग के तौर पर पूजा जाता है।
पूरी होती है यह मनोकामना
ज्योतिर्लिंग ‘घुष्मेश्वर’ के पास ही एक सरोवर भी है जो शिवालय के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग के साथ जो भक्त इस सरोवर के भी दर्शन करते हैं। भगवान शिव उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार जिस दंपत्ती को संतान सुख नहीं मिल पाता है उन्हें यहां आकर दर्शन करने से संतान की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि यह वही तालाब है जहां पर घुष्मा बनाए गए शिवलिंगों का विसर्जन करती थी और इसी के किनारे उसने अपना पुत्र जीवित मिला था। हर साल यहां सावन माह के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। आम दिनों में भी यहां भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं।