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Jagannath Puri Mandir Ki Katha

Jagannath Puri Mandir Ki Katha  -  जगन्नाथ पुरी मंदिर की कथा

 आज हम जगन्नाथ पुरी मंदिर के आश्चर्यजनक तथ्य और इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी बताने वाले है। ओडिशा राज्य के पुरी में भारत के पूर्वी तट पर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान जगन्नाथ(lord श्री कृष्ण) को समर्पित एक पवित्र हिंदू मंदिर है और पुरी विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर और सबसे लंबे गोल्डन बीच के लिए प्रसिद्ध है।
                                            
जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र की पूजा की जाती है। देवताओं को रत्ना सिंहासन पर विराजमान किया जाता है। श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर ओडिशा के सबसे प्रभावशाली स्मारकों में से एक है। जगन्नाथ का  प्रमुख मंदिर कलिंग वास्तुकला में निर्मित एक प्रभावशाली और अद्भुत संरचना है। मंदिर की ऊंचाई 65 मीटर है। जगन्नाथ पुरी मंदिर को एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है। तो चलिए Shree Jagannath Temple In Hindi के बारे में बताते है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर की कहानी (Jagannath Puri Mandir Ki Katha)
इस मंदिर का पहला प्रमाण सबसे पहले महाभारत के वनपर्व में मिलता हैं. जिसके अनुसार एक दिन मालवा के तेजस्वी राजा इंद्रदयुम्न के सपने में भगवान जगन्नाथ आये. सपने में भगवान जगन्नाथ इंद्रदयुम्न से कहते हंल कि “नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते हैं. तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो”. अगले ही दिन राजा ने अपने करीबी ब्राह्मण विद्यापति को सैनिकों के साथ नीलांचल पर्वत भेज दिया.
विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है. वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्वखवसु नीलमाधव का उपासक है उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है और वह आसानी से मूर्ति राजा को नहीं सौपेगा.
चतुर विद्यापति मुखिया की बेटी से विवाह कर लेते हैं. और अंतत वह अपनी पत्नी की सहायता से गुफा तक पहुँच जाते हैं और मूर्ति चुराकर राजा इंद्रदयुम्न को सौप देते हैं. जब विश्ववसु का यह पता चलता हैं कि उसके आराध्य देव की मूर्ति चोरी हो चुकी हैं तो वह बहुत दु:खी होता हैं. अपने परमभक्त को दुखी देख भगवान भी दुखी हो गए और मूर्ति के रूप में वापस गुफा में लौट आये लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे.
कुछ वर्षो बाद राजा ने भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर बनवा दिया और भगवान से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा. भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो कि द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है. राजा के सेवकों ने भी उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए. तब राजा को समझ आ गया कि इस समस्या में नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्वठवसु की सहायता लेना पड़ेगी. सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु अकेले भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए. (Jagannath Puri Mandir Ki Katha)
मंदिर का निर्माण 
गंग वंश काल के कुछ मिलते प्रमाणों के मुताबिक जगन्नाथ पुरी मंदिर का निर्माण कलिंग के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने किया था। राजा ने अपने शासनकाल 1078 से 1148 के बीच मंदिर के जगमोहन और विमान भाग का निर्माण कराया था। उसके पश्यात 1197 में ओडिशा के राजा भीम देव ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया था।
                  
ऐसा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में 1448 से ही पूजा की जा रही है। मगर उसी साल में एक अफगान ने ओडिशा पर आक्रमण किया था। उस समय भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों और मंदिर को नस्ट कर दिया था। मगर बाद में राजा रामचंद्र देव ने खुर्दा में अपना राज्य स्थापित किया था। और जगन्नाथ मंदिर और इसकी मूर्तियों को फिरसे स्थापित किया था।(Jagannath Puri Mandir Ki Katha)
जगन्नाथ मंदिर से जुडी रोचक बाते 
जगन्नाथ पुरी का यह मंदिर अपने कमाल के स्थापत्यकला के कारण दुनियाभर में मशहूर हैं. इस मंदिर से जुडी कई विचित्र बाते हैं जो अन्य किसी भी मंदिरों में नही देखने को मिलेगी. इस भव्य मंदिर को देखने के लिए लोग दूर दूर से यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं.
1. मंदिर के ऊपर बंधी पताकाएं हमेशा विपरीत दिशा में ही लहराती हैं.
2. पुरी में किसी भी स्थान पर खड़े होकर आप मंदिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र को देख सकते हो. इसके अलावा इस चक्र की यह खासियत हैं किसी भी दिशा से देखने पर यह सदैव सीधा ही दिखाई देता हैं.
3. मंदिर के ऊपर किसी भी पक्षी और जहाज को उडाता नहीं देखा सकता है.
4. गुबंद इस प्रकार बनाया गया हैं कि दिन होने के बावजूद इसकी छाया दिखाई नहीं देती.
5. सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है.
6. इस मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर हैं (Jagannath Puri Mandir Ki Katha)जिसका उपयोग प्रसाद बनाने के लिए किया जाता हैं. प्रसाद एक साथ 7 बड़े मिटटी के बर्तनों एक के ऊपर एक रखकर बनाया जाता हैं. ईंधन के रूप में यहाँ लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता हैं. इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है.
7. मंदिर में सिंहद्वार से प्रवेश करते ही सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते. इसे शाम के समय और साफ़ तरीकें से सुना जा सकता हैं.
8. मंदिर परिसर में प्रसाद बनाने के लिए कुल 500 रसोइए एवं उनके 300 सहायक-सहयोगी एकसाथ काम करते हैं.
जगन्नाथ पुरी मंदिर की समस्या 
जगन्नाथ पुरी में भी किसी हिन्दू मंदिर की तरह पंडों का वर्चस्व हैं. लेकिन जगन्नाथपुरी में तो यह कई गुना ज्यादा हैं. मंदिर परिसर में जाने से पूर्व ही पंडे सैलानियों और भक्तों को घेर कर खड़े हो जाते हैं. पंडे किसी भी भक्त को धनपशु की तरह समझ रहे हैं. कदम कदम पर पंडे किसी न किसी पूजा के पैसे लेते रहते हैं. पुरी में मुख्य मंदिर के अलावा 30 अतिरिक्त छोटे मंदिर हैं जहाँ पर प्रसाद के अलावा जबरदस्ती पैसा चडाने की मांग करते हैं. इस मंदिर परिसर में तुलसी के पत्ते से लेकर चरणामृत के लिए दर्शनाथियों से पैसा वसूला जाता हैं. अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर में प्रसाद मिलता नहीं बल्कि पैसे देकर खरीदना पड़ता हैं. इसके अलावा हर प्रसाद के अलग अलग भाव चुकाने पड़ते हैं. जिस दिन मंदिर में छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाया उस दिन आपको तो किसी आम इंसान को प्रसाद मिल जाये यह तो संभव ही नहीं हैं. प्रसाद चढाते से दुकानों में बिक्री के लिए भेज दिया जाता हैं. इस बात से आप समझ सकते हैं कि मंदिर परिसर में आपको क्या दृश देखने को मिलेगा.
1. इस मंदिर में ध्वज लगाने और उतरने का एकाधिकार एक ही परिवार के पास हैं उनके ही परिवार के लोग मंदिर की प्राचीर पर चढ़ते हैं और ध्वज लगाने और उतारने का काम करते हैं. जैसे ही शाम को मंदिर का ध्वज बदला जाता हैं बाजारों में उतारे गए ध्वजों की बिक्री शुरू हो जाती हैं. ऐसा आपने देश के अन्य किसी हिन्दू मंदिर में होते नहीं देखा होगा.
2. किसी भी धार्मिक स्थल की तरह इस क्षेत्र में भी गन्दगी का साम्राज्य हैं. चार प्रमुख धामों में से एक यह स्थल सबसे ज्यादा दूषित हैं. इस गन्दगी का सबसे बड़ा कारण मंदिर के पंडे ही हैं जो कि धार्मिक आस्था के नाम पर दर्शनाथियों से तरह तरह की वस्तुएं रखीद्वाते हैं और फिर पूजा स्थल पर ही छोड़ जाते हैं. इसके अलावा मंदिर में हर जगह पंडों द्वारा थूकी गई पिक के निशान देखने को मिल जाते हैं. निगम द्वारा सफाई के तौर पर चुना लेप दिया जाता हैं लेकिन उस पर भी पंडों की कृपा हो जाती हैं.
3. इस धार्मिक स्थल पर हिन्दुओं के अलावा किसी भी धर्म के व्यक्ति का जाना मना हैं. ऐसा रिवाज किसने और क्यों बनाया हैं इसके बारे में भी किसी को जानकारी नहीं हैं.
जगन्नाथ मंदिर में सामान्य दर्शन
ओडिसा के जगन्नाथ मंदिर में सामान्य दर्शन के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। मगर अगर आपको कुछ अनुष्ठानों में हिस्सा बनना चाहते हैं। तो आपको 10 से 50 रूपये का भुगतान करना पड़ता है। जगन्नाथ पूरी मंदिर सुबह 5:00 से आधी रात के 12:00 बजे तक खुला रहता है। 
मंगल आरती – मंदिर सुबह 5:00 बजे खुलता है, यह दिन की पहली रस्म होती है।
बेशालगी – सुबह 8:00 बजे उत्सव के अवसरों के मुताबिक सोने और सुंदर पोशाकों से सजाया जाता है। उसको भितर कथा कहा जाता है।
सकल धूप – 10:00 बजे सुबह पूजा उपाचार के साथ की जाती है। उसमे भोग बनाकर भगवान को चढ़ाया जाता है।
मैलम और भोग मंडप – सुबह की पूजा के बाद देवताओं के कपड़े फिर से बदले जाते हैं। उसको मैलम कहते है। बाद में भोग मंडप में पूजा होती है। और भोग या प्रसाद चढ़ाया जाता है।
मध्याह्न धूप – सकल धूप की तरह यह पूजा उपाचारों के साथ सुबह 11:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे के बीच होती है।
संध्या धूप – शाम 7:00 बजे से रात 8:00 बजे तक पूजा करके भोग चढ़ाया जाता है।
मैलम और चंदना लागी – शाम की पूजा के बाद चंदन के लेप से देवताओं का अभिषेक किया जाता है। उस अनुष्ठान को 10 रुपये के शुल्क का भुगतान करने के देख सकते है।
बादशृंगार भोग– यह पुरे दिन का अंतिम भोग और पूजा होती है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर धार्मिक उत्सव
जगन्नाथ पुरी मंदिर धार्मिक त्योहारों को बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाए जाते है। कुछ प्रमुख त्यौहार भी है। जिसको निश्चित रूप से देखना चाहिए। उसमे स्नान यात्रा, नेत्रोत्सव, रथ यात्रा (कार उत्सव), सायन एकादशी, चितलगी अमावस्या, श्रीकृष्ण जन्म और दशहरा शामिल हैं। उसमे मुख्य त्यौहार विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा और बहुदा यात्रा है। उसको देखने भारी भीड़ जमा होती है।
रथ यात्रा जगन्नाथ पुरी मंदिर का प्रमुख त्योहार
पुरी रथ यात्रा जगन्नाथ पुरी मंदिर का प्रमुख त्योहार है। उसको कार महोत्सव या गुंडिचा यात्रा के नाम से भी जानते है। यह त्यौहार आमतौर पर जून या जुलाई के महीने में आयोजित किया जाता है। जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की तीनों मूर्तियों को पुरी की मुख्य सड़क बड़ा डंडा से गुंडिचा मंदिर तक विशाल रथों में ले जाया जाता है। नौ दिन के बाद वापस जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है। वह स्थल से वापसी यात्रा को बहुदा यात्रा भी कहते है। उसका आयोजन भी रथ यात्रा की तरह होता है। भगवान के दर्शन के लिए लाखो लोगो की भीड़ होती हैं। चमकीले रंगों में सजे देवी-देवताओं को देखना बेहद सुंदर दृश्य है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर कैसे पहुंचे
ट्रेन  - पुरी रेल स्टेशन के माध्यम से भारत के सभी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा है। पुरी से अहमदाबाद, कोलकाता, नई दिल्ली और कई स्थानों के लिए कई ट्रेनें चलती हैं। पुरी एक टर्मिनल रेलवे स्टेशन है। यहां से शताब्दी, गरीब रथ सुपरफास्ट और फास्ट मेल और एक्सप्रेस ट्रेनें चलती हैं। वह से रिक्शा और ऑटो रिक्शा से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
सड़क  - पुरी शहर का बस स्टैंड गुंडिचा मंदिर के पास है। जहां से पर्यटक कोलकाता और विशाखापत्तनम के लिए सीधी बसें ले सकते हैं। लोग भुवनेश्वर के लिए बसें भी पकड़ सकते हैं और कटक यहाँ से बसें भी पास के कोणार्क मंदिर के लिए चलती हैं। वह से यात्री रिक्शा और ऑटो रिक्शा से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
फ्लाइट  - पुरी का हवाई अड्डा नहीं है, मगर भुवनेश्वर हवाई अड्डा पुरी से 60 किमी दूर है। भुवनेश्वर हवाई अड्डे को बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी कहते है। वह ओडिशा राज्य का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। हवाई अड्डे के दो टर्मिनल हैं। जिसमे टर्मिनल 1 घरेलू उड़ानों के लिए और टर्मिनल 2 अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए है।

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