नैना देवी मंदिर (Naina Devi Mandir) हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है. यह नैनी झील के उत्तरी किनारे पर पहाड़ी के ऊपर स्थित है.
यह मंदिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है. यहाँ देवी सती की शक्ति के रूप में पूजा की जाती है. कहा जाता है कि नैनी झील में देवी सती के नेत्र गिरे थे. इसलिए इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया, जो नैना देवी मंदिर (Naina Devi Mandir) कहलाता है. इस मंदिर में नैना देवी को दर्शाते दो नेत्रों की स्थापना की गई है.
भक्तगणों का विश्वास है कि इस मंदिर में नैना देवी के दर्शन मात्र से नेत्र संबंधी सभी रोग एवं विकार दूर हो जाते हैं. दूर-दूर से श्रद्धालु और भक्तगण देवी माँ के दर्शन हेतु मंदिर आते हैं. नवरात्रि में यहाँ लगने वाले ८ दिवसीय मेले के कारण भक्तों की संख्या और बढ़ जाती हैं.
नैना देवी मंदिर की ऊँचाई/नैना देवी मंदिर की चढ़ाई
नैना देवी मंदिर ११७७ मीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी पर स्थित है. सड़क मार्ग द्वारा पहाड़ी तक पहुँचने के बाद कंक्रीट की सीढ़ियों चढ़कर मंदिर तक पहुँचा जाता है.
यहाँ ‘केबल कार’ भी संचालित की जाती है, जो भक्तों को पहाड़ी के ऊपर स्थित मंदिर तक ले जाती है.
नैना देवी मंदिर का निर्माण/इतिहास | Naina Devi Temple History
नैना देवी मंदिर के निर्माण के संबंध में लोगों की विभिन्न मान्यतायें हैं. कुछ का मानना है कि १५ वीं शताब्दी में कुषाण राजवंश के दौरान मंदिर का निर्माण किया गया था, जो १८८० में आये भू-स्खलन में नष्ट हो गया.
कुछ अन्य लोगों के अनुसार नैना माता के एक भक्त मोती राम शाह द्वारा १८४२ में मंदिर का निर्माण करवाया गया था, जो १८८० में आये भू-स्खलन में नष्ट हो गया था.
भू-स्खलन में नष्ट नैना देवी मंदिर का वर्ष १८८३ में पुनर्निर्माण किया गया. नैना देवी मंदिर के निर्माण के बारे में वर्ष १८८० के पूर्व की कहानी लोगों की मान्यताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न है. लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं कि मंदिर का पुनर्निमाण १८८३ में हुआ था.
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नैना देवी मंदिर की पौराणिक कथा (MYTHOLOGY OF NAINA DEVI TEMPLE)
हिंदू ग्रंथ भी नैना देवी मंदिर के ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानकारी प्रदान करता है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री “उमा” का विवाह भगवान शिव से हुआ था | शिव को दक्ष प्रजापति बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे , किन्तु दक्ष प्रजापति देवताओ के अनुरोध को मना नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह ना चाहते हुए भी भगवान शिव के साथ कर देते है | एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ करवाया जिसमे कि उन्होंने सभी देवताओ को निमंत्रण दिया परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमंत्रण नहीं दिया | मगर देवी उमा हठ कर यज्ञ में पहुच जाती है | जब देवी उमा ने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओ का सम्मान और अपने पति और अपना अपमान होते हुए देखती है तो देवी उमा अत्यंत दुखी हो जाती है और यज्ञ के हवनकुंड में यह कहते हुई कूद पड़ती है कि ” मैं अगले जन्म मे सिर्फ शिव को ही अपना स्वामी (पति) बनाउंगी , आपने मेरे पति और मेरा जो अपमान किया है उसके फलस्वरूप यज्ञ के हवनकुंड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हु” |
जब भगवान शिव को पता चलता है कि देवी उमा सती(मृत्यु प्राप्त) हो गई है तो उनके क्रोध की सीमा नहीं रहती है | भगवान शिव अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर देते है | सभी देवी-देवता भगवान शिव के रोद्र-रूप को देखकर सोच में पड जाते है कि कही शिव प्रलय ना कर डाले , इसलिए देवी- देवता भगवान शिव से प्रार्थना करके उनके क्रोध को शांत कर देते है | दक्ष प्रजापति भी भगवान शिव से माफ़ी मांगते है , लेकिन देवी उमा यानी सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव का वैराग्य उमड़ पड़ता है और भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रखकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर देते है | ऐसी स्थिति में जिस जिस स्थान में देवी उमा या सती के शरीर के अंग गिरे , उस स्थान पर शक्ति पीठ हो गए | जिस स्थान पर सती के नयन गिरे , वही पर नैना देवी के रूप में देवी उमा अर्थात नंदा देवी का भव्य स्थान हो गया | आज नैनीताल वही स्थान है , जहाँ पर देवी उमा के नेत्र (आँखें) गिरे थे | सती के शरीर के 51 टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां-वहां एक-एक शक्तिपीठ स्थापित हुआ । मान्यता है कि देवी की अश्रुधार (आँखों (नयनो) की आंसू की बूंदों) से इस स्थान पर एक ताल का निर्माण हुआ है , तब से निरंतर शिवपत्नी नंदा(पार्वती) की पूजा “नैना देवी” के रूप में होती है |(नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा)
नैना देवी मंदिर की वास्तुकला |
संगमरमर से निर्मित नैना देवी मंदिर वास्तुकला और सौंदर्य का अद्भुत संगम है. चाँदी की परत चढ़े हुए मंदिर के मुख्य द्वार पर देवी-देवताओं की सुंदर आकृतियाँ उकेरी गई हैं. मंदिर में प्रवेश करने के उपरांत बाईं ओर शताब्दियों पुराना पीपल का पेड़ है. मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर भगवान श्री गणेश और हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है.
मुख्य मंदिर के द्वार पर भी चाँदी की परत चढ़ी हुई है और उस पर सूर्य देव और अन्य देवताओं के चित्र बने हुए हैं. मुख्य द्वार पर शेरों की दो प्रतिमायें है.
मंदिर के गर्भ गृह में तीन पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित हैं. पहले पिंडी के रूप में श्री नैना भगवती की मुख्य आकृति है, जो दो सुंदर नेत्रों के रूप में है. दाईं ओर की दूसरी आकृति में भी दो नेत्र हैं. माना जाता है कि पांडवों ने द्वापर युग में इसकी स्थापना की थी. बाईं ओर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित है.
नैना देवी मंदिर का दर्शन समय
सामान्य दिनों में नैना देवी मंदिर में दर्शन का समय प्रातः ४:०० बजे से लेकर रात्रि १०:०० बजे तक है. नवरात्रि में दर्शन का समय प्रातः २:०० बजे से लेकर मध्यरात्रि १२:०० बजे तक है.
नैना देवी मंदिर की आरती |
मंगल आरती – पूरे दिन की आरती का प्रारंभ सर्वप्रथम ‘मंगल आरती’ से होता है. मंदिर के पुजारी द्वारा ब्रह्म-मुहुर्त प्रातः ४:०० बजे मंदिर के किवाट खोलकर घंटी बजाकर माता को जगाया जाता है.
उसके बाद माता की शैय्या समेटी जाती है और उनके मुख और नेत्र को गडवी में रखे जल से धोया जाता है. फिर माता को ५ मेवों का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘मोहन भोग’ कहते हैं. ५ मेवों के भोग में काजू, बादाम, खुमानी, गरी, छुआरा, मिश्री, किशमिश में से कोई भी ५ मेवे शामिल होते हैं.
मंगल आरती में दुर्गा सप्तशती में वर्णित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के ध्यान मंत्र उच्चारित किये जाते हैं. माता के मूल बीज मंत्र और माता श्रीनयनादेवी के ध्यान के विशिष्ट मंत्र भी उच्चारित होते हैं. ये सभी मंत्र गोपनीय होते हैं और दीक्षा प्राप्त पुजारी को ही बताये जाते हैं.
श्रृंगार आरती – श्रृंगार आरती का समय प्रातः ६:०० बजे है. जिसमें एक व्यक्ति मंदिर के पीछे ढलान की ओर नीचे २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित “झीड़ा” नमाक बावड़ी से जल की गागर लाता है. इस व्यक्ति को ‘गगरिया’ कहते हैं.
इस जल के द्वारा षोडशोपचार विधि से माता को स्नान करवाकर उनका हार श्रृंगार किया जाता है. माता की स्तुति सप्तश्लोकी दुर्गा और रात्रिसूक्त के श्लोकों द्वारा की जाती है और उन्हें हलवे तथा बर्फी का भोग लगाया जाता है.
श्रृंगार आरती उपरांत दशमेश गुरु गोविन्दसिंह जी द्वारा स्थापित यज्ञशाला स्थल पर हवन किया जाता है, जिसमें स्वसित वाचन, गणपतिपूजन, संकल्प, श्रोत, ध्यान, मंत्र जाप, आहुति आदि की जाती है.
मध्यान्ह आरती – मध्यान्ह आरती का समय दोपहर १२:०० बजे है. इस आरती में चांवल, माश की दाल, मुंगी साबुत या चने की दाल, खट्टा, मधरा और खीर आदि का भोग लगाया जाता है तथा ताम्बूल चढ़ाया जाता है. इस आरती में सप्तश्लोकी दुर्गा के श्लोकोण से माता की स्तुति की की जाती है.
सायं आरती – शाम ६:०० बजे सायं आरती होती है. इस आरती में गगरिया झीड़ा बावड़ी से पानी लाता है. उससे माता के स्नान के बाद श्रृंगार जाता है. फिर माता को चने और पूरी का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘श्याम भोग’ कहते हैं. इस समय ताम्बूल भी अर्पित किया जता है. सायं आरती में सौंदर्य लहरी के विभिन्न श्लोकों का गायन होता है.
शयन आरती – रात ९:३० बजे माता के शयन के समय ‘शयन आरती’ की जाती है. इस समय माता को दूध और बर्फ़ी का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘दुग्ध भोग’ कहते हैं. भोग उपरांत श्रीमदशंकराचार्य विरचित सौंदर्य लहरी के श्लोक बोले जाते हैं.
नैना देवी मंदिर कैसे पहुँचे?
वायु मार्ग – नैना देवी जाने के लिए निकटतम एयरपोर्ट चंडीगढ़ एयरपोर्ट है. जहाँ से बस और कैब की सुविधा उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त अमृतसर एयरपोर्ट दूसरा निकटतम एयरपोर्ट है.
रेल मार्ग – नैना देवी मंदिर जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ और पालमपुर रेलवे स्टेशन है. यहाँ से बस या कैब की सुविधा उपलब्ध है.
सड़क मार्ग – चड़ीगढ़ सड़क मार्ग द्वारा देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है. इसलिए बस, टैक्सी द्वारा चड़ीगढ़ होते हुए नैना देवी आसानी से पहुँचा जा सकता है.