नटराज मंदिर , जिसे चिदंबरम नटराज मंदिर या थिलाई नटराज मंदिर के रूप में भी जाना जाता है , चिदंबरम , तमिलनाडु , भारत में नटराज - शिव को नृत्य के स्वामी के रूप में समर्पित एक हिंदू मंदिर है । मंदिर की जड़ें प्राचीन हैं और उस स्थान पर एक शिव मंदिर मौजूद था जब शहर को थिलाई के नाम से जाना जाता था। चिदंबरम, शहर और मंदिर के नाम का शाब्दिक अर्थ है "ज्ञान का वातावरण" या "विचारों में पहना", मंदिर की वास्तुकला कला और आध्यात्मिकता, रचनात्मक गतिविधि और परमात्मा के बीच संबंध का प्रतीक है। मंदिर की दीवार की नक्काशी भरत मुनि द्वारा नाट्य शास्त्र से सभी 108 करणों को प्रदर्शित करती है , और ये मुद्राएं एक शास्त्रीय भारतीय नृत्य भरतनाट्यम की नींव बनाती हैं ।
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वर्तमान मंदिर 10 वीं शताब्दी में बनाया गया था जब चिदंबरम चोल वंश की राजधानी थे, जिससे यह दक्षिण भारत में सबसे पुराने जीवित सक्रिय मंदिर परिसरों में से एक बन गया। नटराज को अपने परिवार के देवता के रूप में मानने वाले चोलों द्वारा १०वीं शताब्दी के अभिषेक के बाद, मंदिर को दूसरी सहस्राब्दी के दौरान क्षतिग्रस्त, मरम्मत, पुनर्निर्मित और विस्तारित किया गया है। मंदिर की अधिकांश जीवित योजना, वास्तुकला और संरचना 12 वीं शताब्दी के अंत और 13 वीं शताब्दी की शुरुआत से है, बाद में इसी तरह की शैली में परिवर्धन के साथ। जबकि शिव नटराज के रूप में मंदिर के प्राथमिक देवता हैं, यह श्रद्धापूर्वक शक्तिवाद , वैष्णववाद और हिंदू धर्म की अन्य परंपराओं से प्रमुख विषयों को प्रस्तुत करता है । उदाहरण के लिए, चिदंबरम मंदिर परिसर में दक्षिण भारत में सबसे पुराना ज्ञात अम्मान या देवी मंदिर है, जो रथ के साथ 13 वीं शताब्दी से पहले का सूर्य मंदिर, गणेश , मुरुगन और विष्णु के लिए मंदिर है , जो सबसे पहले ज्ञात शिव गंगा पवित्र कुंड में से एक है। तीर्थयात्रियों ( चूल्ट्री , अम्बलम या सभा ) और अन्य स्मारकों की सुविधा के लिए मंडप । शिव खुद के रूप में प्रस्तुत किया जाता है नटराज प्रदर्शन आनंद तांडव मंदिर के स्वर्ण हॉल में ( "डिलाईट के नृत्य") पॉन अम्बलम ।
नटराज मंदिर से संबंधित इतिहास एवं किवदंतियाँ
यहाँ मंदिर की स्थापना से कई वर्ष पूर्व यह भूभाग एक विशाल वनीय प्रदेश था। तिल्लई मैंग्रोव के नाम पर इस वन का नाम तिल्लई वन पड़ा। इस वन में ऋषियों का वास था जो सदा विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन करते रहते थे। समयोपरांत उन्हे ऐसा भ्रम होने लगा था कि शक्तिशाली मंत्रों द्वारा वे भगवान शिव को भी नियंत्रित कर सकते हैं। फलतः भगवान शिव ने उन्हे यथार्थ से अवगत कराने का निश्चय किया। एक दिवस उन्होंने एक भिक्षु का रूप धारण किया तथा मोहिनी रूप में भगवान विष्णु को साथ लेकर उन ऋषियों से भेंट करने यहाँ आए। भगवान शिव का वो स्वरूप देख ऋषि पत्नियाँ उन पर मुग्ध हो गईं। इससे कुपित होकर, ऋषियों ने शिव पर सर्पों का वर्षाव किया । भगवान शिव ने उन सर्पों को आदर पूर्वक स्वीकारा तथा उन्हे आभूषण के रूप में अपनी देह पर धारण किया। उन्होंने शिव पर बाघ को छोड़ा। भगवान शिव ने बाघ को मुक्ति प्रदान की तथा बाघचर्म को अपने कटि पर धारण कर लिया। यह देख ऋषियों ने अपनी समस्त आध्यात्मिक शक्तियां एकत्रित की तथा मुयलकन असुर अर्थात् अपस्मर का आव्हान किया जो अज्ञानता एवं निरर्थक भाषण का प्रतीक है। भगवान शिव ने अपस्मर पर खड़े होकर उसे गतिहीन कर दिया। तत्पश्चात वे आनंद तांडव नृत्य करने लगे तथा अपना वास्तविक रूप ऋषियों के समक्ष प्रकट किया। ऋषियों को अपनी अज्ञानता का पूर्ण आभास हुआ तथा वे भगवान शिव के समक्ष नतमस्तक हो गए।
तभी से भगवान शिव यहाँ नटराज के रूप में पूजे जाने लगे।
एक अन्य किवदंती के अनुसार भगवान शिव के आनंद तांडव का दर्शन करने के लिए भगवान विष्णु आदिशेष के रूप में यहाँ आए थे। वे अब भी इस मंदिर में गोविन्दराज के रूप में विराजमान हैं।
तिल्लई नटराज मंदिर से संबंधित सभी ऐतिहासिक संदर्भ यह दर्शाते हैं कि कम से कम ६वीं सदी से यह मंदिर व्यवहार में है। संगम साहित्य से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर के पुनरुद्धार में प्रमुख वास्तुविद के रूप में विडुवेलविडुगु पेरुंटक्कन का योगदान है जो पारंपरिक विश्वकर्मा समुदाय के वंशज हैं। अप्पर एवं सम्बन्द की कविताओं में भी चिदंबरम के नृत्य मुद्रा में विराजमान भगवान का उल्लेख है। १०वीं सदी के आसपास चिदंबरम चोलवंश की राजधानी थी तथा नटराज उनके कुलदेवता थे। कालांतर में उन्होंने अपनी राजधानी तंजावुर में स्थानांतरित कर दी थी।
किन्तु इस मंदिर के अस्तित्व के विषय में तात्विक साक्ष्य १२वीं सदी से आगे के ही है। दक्षिण भारत के पल्लव, पंड्या, चोल, चेर एवं विजयनगर जैसे अनेक राजवंशों ने अपनी कालावधि में इस मंदिर के रखरखाव एवं विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आप प्रत्येक राजवंश की शैली के चिन्ह मंदिर के विभिन्न भागों में देख सकते हैं।
१४वीं सदी के आरंभ में मलिक काफ़ुर ने इस मंदिर पर आक्रमण किया तथा अपार मात्रा में मंदिर की संपत्ति लूट कर ले गया था। अनेक प्रतिमाएं भूमिगत गड़ी हुई थीं जिन्हे गतकाल में उत्खनित किया गया है। पुर्तगलियों, अंग्रेजों एवं फ़्रांसीसियों ने भी इस मंदिर पर कोई दया नहीं दिखायी थी।
नटराज मंदिर के विभिन्न शिव स्वरूप
मंदिर में पूजे जाने वाला भगवान शिव का प्राथमिक स्वरूप नृत्य देव एवं लौकिक नर्तक नटराज का है। मंदिर के पूर्वी गोपुरम पर आप उनकी नृत्य की विभिन्न मुद्राएं देख सकते हैं। वास्तव में ये केवल नृत्य मुद्राएं नहीं हैं, अपितु १०८ कारण अथवा गतियाँ हैं जिनका शास्त्रीय नृत्य में प्रयोग किया जाता है।
भगवान शिव यहाँ उनके निर्गुण स्वरूप अर्थात् शिवलिंग के रूप में भी उपस्थित हैं।
चिदंबरम रहस्य – चिदंबरम मंदिर दक्षिण भारत के ५ पंचभूत मंदिरों में से एक है। यह पंच महाभूतों में से एक, आकाश का प्रतिनिधित्व करता है। गर्भगृह में एक रिक्त स्थान है। यहां ५१ स्वर्ण बिल्व पत्रों से बना एक हार है जिसकी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ शिव एवं पार्वती का वास है किन्तु वे मानवी नेत्रों के समक्ष अदृश्य रहते हैं। इस स्थान को सदैव लाल व काले वस्त्र के आवरण से ढँक कर रखा जाता है। यह आवरण माया का प्रतिनिधित्व करता है। यह आवरण केवल विशेष पूजा अर्चना के समय ही खोला जाता है। तब आप इन स्वर्ण बिल्व पत्रों को देख सकते हैं। यह इस मंदिर को अद्वितीय बनाता है।
चिदंबरम मंदिर के उत्सव एवं दैनिक पूजा अनुष्ठान
एक पालकी में भगवान की पादुकाओं को लाने की प्रक्रिया द्वारा चिदंबरम मंदिर की दैनिक पूजा अनुष्ठान का आरंभ किया जाता है। सम्पूर्ण दिवस में उनके ६ विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं। इन सभी अनुष्ठानों में शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। तत्पश्चात, उसी पालकी में भगवान की पादुकाओं को वापिस ले जाकर दिवस की समाप्ति की जाती है।
चिदंबरम मंदिर के दो प्रमुख उत्सव हैं मार्गलि तिरुवादिरई एवं आणि तिरुमन्जनं। इन उत्सवों में भगवान को रथ पर बिठाकर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। नटराज मंदिर का कार्यभार दीक्षिदर ब्राह्मणों का समुदाय संभालता है। एक दीक्षिदर ब्राह्मण को विवाहोपरांत अपने परिवार से अर्चक की उपाधि विरासत में प्राप्त होती है। यद्यपि ऐसी मान्यता है कि इन ब्राह्मणों को स्वयं पतंजलि कैलाश पर्वत से यहाँ लेकर आए थे, तथापि ये केरल के नंबूदिरी से अधिक साम्य रखते प्रतीत होते हैं।
नटराज मंदिर की वास्तुकला
नटराज मंदिर का परिसर ४० एकड़ के क्षेत्र में पसरा हुआ है। मंदिर परिसर प्राकारों अथवा प्रांगणों की ५ परतों से घिरा है जिसमें सबसे भीतरी प्राकार में गर्भगृह है। कुल मंदिर एक ठेठ द्रविड़ वास्तुकला का पालन करता है। किन्तु इसका गर्भगृह ठेठ स्पष्टतः केरल अथवा मलाबारी शैली का है।
गोपुरम
मंदिर को घेरे हुए कुल नौ गोपुरम हैं। उनमें से चार विशालतम गोपुरम बाहरी प्राकार में चार दिशाओं में स्थित हैं। ये गोपुरम मंदिर से अपेक्षाकृत कहीं अधिक ऊंचे हैं। फिर भी, अपने शुद्ध स्वर्ण के शीर्ष के कारण साधारण ऊंचाई का यह मुख्य मंदिर उठकर दिखाई पड़ता है। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वी गोपुरम के नीचे है जहां तक पहुँचने के लिए एक संकरे मार्ग से जाना पड़ता है। सँकरे मार्ग के दोनों ओर पूजा सामग्री बिक्री करते अनेक विक्रेता तथा जूते-चप्पल के रखवाले इसे और अधिक संकरा बना देते हैं। गोपुरम का निचला प्रवेश द्वार का भाग रंगा हुआ नहीं है। किन्तु इसकी ऊपरी विशाल अधिरचना को नीली पृष्ठभूमि में अनेक रंगों में रंगा हुआ है। उस पर अनेक देवी-देवताओं के शिल्प हैं जो पुराणों के विभिन्न कथाओं को प्रदर्शित करते हैं।
गोपुरम के अन्तः भाग में पत्थर के छोटे छोटे चौकोर खंडों पर भरतनाट्यम की विभिन्न मुद्राओं को उत्कीर्णित किया गया है। गोपुरम के अग्र एवं पृष्ठ भाग पर लघु प्रतिमाएं हैं। उनमें से कुछ को ताले में बंद कर रखा है। मैं समझ नहीं पायी कि ऐसा क्यों किया गया है।
कुछ मूर्तियों को वस्त्रों एवं पुष्पों से अलंकृत किया हुआ है। उन्हे देख ऐसा आभास होता है कि उनकी नियमित पूजा अर्चना की जाती है जबकि अन्य मूर्तियों का कदाचित केवल अवलोकन किया जाता है। मेरे अनुमान से जहां जहां महिषासुर का वध करती देवी की महिषासुरमर्दिनी रूप में प्रतिमाएँ हैं, केवल उन्ही की पूजा अर्चना की जाती है। स्मित हास्य लिए तथा हाथ जोड़े एक दाढ़ीधारी पुरुष की प्रतिमा मुझे अत्यंत रोचक प्रतीत हुई। मेरे सर्वोत्तम अनुमान के अनुसार यह प्रतिमा उस राजा की होगी जिसने किसी काल में इस मंदिर का संरक्षण किया होगा। इसके एक ओर एक छोटे आले के भीतर स्थित प्रतिमा उनकी पत्नी की होगी। एक अनभिज्ञ दर्शक के लिए अन्य गोपुरम भी इसी प्रकार के हैं, केवल उनमें नृत्य मुद्राएं नहीं हैं। प्रांगण में कुछ अन्य छोटे-बड़े मंदिर हैं जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं।
शिव मंदिर
मंदिर के भीतर विशाल गलियारे हैं जिन्हे अनेक विशाल चौकोर स्तम्भ आधार देते हैं। इन स्तंभों के फैले हुए शीर्ष इन गलियारों के ऊपर मंडप सा बनाते प्रतीत होते हैं। ये स्तम्भ अधिकांशतः सादे हैं किन्तु इनके ऊपरी भाग उत्कीर्णित हैं। इन गलियारों से होकर जाते हुए अत्यंत राजसी भाव का आभास होता है। मंदिर का भीतरी भाग बाहरी परिवेश से अत्यंत पृथक है। यह आपको एक भिन्न विश्व एवं कदाचित एक भिन्न कालावधि में ले जाता है।
मेरी उपस्थिति के समय मंदिर में अधिक दर्शनार्थी नहीं थे। जो भी यहाँ उपस्थित थे उन्होंने पारंपरिक परिधान धारण किए हुए थे। उनकी भक्ति की अवस्था वातावरण को अत्यंत पवित्र कर रही थी। मंदिर में उपस्थित पंडितों ने अधिकतम शीश का मुंडन कर केवल छोटी चुटिया बांधी हुई थी। उनकी देह पर चंदन से अनेक बिन्दु एवं रेखाएं बनी हुई थीं। मंदिर के क्रियाकलापों के साथ वे प्रत्येक दर्शनार्थी पर भी दृष्टि रख रहे थे तथा उन्हे विभिन्न पूजा-अनुष्ठान करने के लिए प्रेरित कर रहे थे। भक्तों द्वारा नकारने पर वे तुरंत उनसे विरक्त भी हो रहे थे। मेरी माने तो उनके इस आचरण को मन से न लगाएं।
नटराज मंदिर का गर्भगृह
चिति सभा अर्थात् चेतना कक्ष, नटराज मंदिर का गर्भगृह इसी नाम से जाना जाता है। यह ग्रेनाइट के आधार पर स्थापित चौकोर काष्ठी संरचना है जिसके छत पर सोने का पानी चढ़ा हुआ है। इसकी असामान्य रूप से तिरछी छत इसकी वास्तुशिल्प को अत्यंत विशेष बनाती है। गर्भगृह में नटराज की मूर्ति स्थापित है। गर्भगृह के भीतर अग्रभाग से नहीं जा सकते अपितु एक ओर से प्रवेश किया जाता है। नटराज की प्रतिमा पर वस्त्रों एवं पुष्पों की इतनी परतें रहती हैं कि आप विग्रह का अधिकांश भाग देख नहीं पाते। वैसे भी मंदिर के भीतर कुछ क्षण ही व्यतीत करने दिए जाते हैं।
चिदंबरम, यह शब्द चित एवं अंबर इन दो शब्दों के संयोजन से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है, चेतना का आकाश। मंदिर के गर्भगृह के भीतर ये दोनों तत्व प्रदर्शित होते हैं।
कनक सभा या स्वर्ण कक्ष चिति सभा के ठीक सामने स्थित है। इस की छत स्वर्णिम है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी छत को 22,600 सुनहरी पट्टिकाओं को 72,000 सुनहरी कीलों द्वारा जोड़कर बनाया गया है। आप जानते ही हैं कि 22,600 मानवी श्वास की वह संख्या है जो वह एक दिन में ग्रहण करता है। वहीं, एक मानव की देह में 72,000 की संख्या में शिराएं रहती हैं। शीर्ष पर स्थित 9 कलश मानवी देह के 9 द्वारों की ओर संकेत करते हैं। कनक सभा का प्रयोग अनेक अनुष्ठानों के आयोजनों में तथा मुख्य मूर्ति के दर्शन के लिए किया जाता है। चिति सभा एवं कनक सभा मंदिर के केंद्र हैं। अन्य सभी अवयव इनके चारों ओर स्थित हैं।
परिसर का रखरखाव
नटराज मंदिर परिसर भित्तियों पर जंग के धब्बों की उपस्थिति पत्थरों में उपस्थित लोहे की प्रचुर मात्रा के कारण हो सकती है। कदाचित इसी जंग से रक्षण करने के लिए गोपुरम को चटक रंगों में रंगा गया है क्योंकि इस क्षेत्र की वायु में अत्यधिक आर्द्रता रहती है। मंदिर में लगी बिजली की व्यवस्था में सौंदर्यविषयक सुधार अत्यावश्यक है। इस समय उन्हे देखें तो ऐसा प्रतीत होता है मानो इस अप्रतिम मंदिर को कुदृष्टि से बचाने के लिए उन्हे जानबूझ कर अव्यवस्थित रूप से बिठाया गया है। भित्तियों पर कहीं कहीं भित्तिचित्रों के अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं। क्या कभी किसी ने इनके संरक्षक के लिए प्रयास किया होगा? मेरी यह भी इच्छा है कि इस प्रकार के धरोहरों एवं धार्मिक स्थलों की स्वच्छता को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वहाँ की अस्वच्छता ना तो दर्शनार्थियों को व्याकुल कर रही थी ना ही वहाँ के अधिकारियों को विचलित कर रही थी।
चिदंबरम नटराज मंदिर की यात्रा से संबंधित कुछ सुझाव
नटराज मंदिर के दर्शन करने में ही आप आधा दिवस व्यतीत कर सकते हैं। इनकी अद्भुत शिल्पकारी व इसकी वास्तुकला निहारने में तथा मंदिर की जीवंत परंपरा के दर्शन करने में आप मग्न हो जाएंगे।
मंदिर के परिसर में चारों ओर घूमने के लिए 1 से 2 घंटों का अतिरिक्त समय रखें।
मंदिर प्रातःकाल से रात्रि तक खुला रहता है। मध्यकाल में दोपहर से संध्या ५ बजे तक मंदिर के पट बंद रहते हैं। अधिक जानकारी के लिए मंदिर के इस वेबस्थल से संपर्क करें।
मंदिर के बाह्य भाग में छायाचित्रीकारण की मनाही नहीं है। किन्तु मंदिर के भीतर इसकी अनुमति नहीं है, गर्भगृह के आसपास व भीतर तो कदापि नहीं।
चिदंबरम में इस प्रतिष्ठित नटराज मंदिर के अतिरिक्त भी अनेक दर्शनीय स्थल हैं। चिदंबरम नगर के दर्शनीय स्थल भी अवश्य देखें।