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कामाख्या देवी एवं मंदिर जुड़ी प्रचलित कथाएं – Kamakhya Devi Mandir History in Hindi_
_एक ऐसा मंदिर जिसमे किसी देवी की पूजा नहीं होती हैं. एक ऐसा दैवीय स्थल जो तांत्रिक विधाओं का गढ़ हैं. असम के गुवाहाटी में स्थित इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती हैं. कामाख्या मंदिर का अपना अलग ही इतिहास हैं. चलिए इस पोस्ट में हम आपको इस कामाख्या देवी मंदिर के बारे में कुछ अद्भुत और रोचक तथ्य बताएँगे. जिनको जानकर आप हैरान रह जायेंगे. कामाख्या मंदिर का इतिहास और कहानी को विस्तार से जानेंगे, उसके पहले आप यह जान लीजिये कि कामाख्या का अर्थ क्या हैं और कामाख्या मंदिर कहाँ स्थित हैं?
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कामाख्या माता मंदिर का इतिहास एवं इससे जुड़ी प्रचलित कथाएं – Maa Kamakhya Mandir
शक्ति साधना और तांत्रिक विद्या के लिए प्रसिद्ध असम में स्थित मां कामाख्या देवी के मंदिर का इतिहास 16वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि, 16वीं सदी में कामरुप प्रदेश के राज्यों में हुए युद्ध में राजा विश्वसिंह जीत गए, लेकिन इस दौरान सम्राट विश्वसिंह जी के भाई गायब हो गए थे, जिनकी खोज में वे घूमते-घूमते नीलांचल शिखर पर पहंच गए।
इस पर्वत पर राजा विश्वसिंह को एक बुजुर्ग महिला मिली, जिसने राजा को इस जगह का महत्व एवं कामख्या पीठ होने के बारे में बताया।
जिसके बाद राजा ने इस जगह की खुदाई करवाना शुरु कर दी, जिसके बाद मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला और फिर सम्राट विश्वसिंह ने इसी स्थान पर एक नए मंदिर का निर्माण करवाया।
वहीं माता के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कामख्या देवी मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर को 1564 ईसवी में कुछ हमलावरों ने नष्ट कर दिया था, जिसके बाद राजा विश्वसिंह के बेटे नरनारायण फिर से इस मंदिर का पुर्ननिमाण करवाया था।
सती और भगवान शिव से जुड़ी है कामख्या देवी मंदिर की पौराणिक कथा
कामख्या माता मंदिर से जुड़ी एक प्रचलित एवं मशहूर कथा के मुताबिक राजा दक्ष की पुत्री सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन राजा दक्ष इस विवाह से खुश नहीं थे।
वहीं एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपने पुत्री के पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, सती इस बात से काफी क्रोधित हो गई और फिर वे बिना बुलाए ही अपने पिता के घर पहुंच गई।
जिसके बाद राजा दक्ष ने उनका और उनके पति का काफी तिरस्कार किया, अपने पिता द्धारा अपने पति का अपमान सती से नहीं सहा गया और फिर उन्होंने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया।
जिसके बाद भगवान शंकर काफी क्रोधित हो जाते हैं और अपने पत्नी सती के शव को लेकर तांडव करने लगते हैं, तब उन्हें रोकने के लिए भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र फेंकते हैं, विष्णु भगवान के इस सुदर्शन चक्र से माता सती के करीब 51 टुकड़े हो जाते हैं।
वहीं ये टुकड़े जहां-जहां गिरे उन्हें आज शक्तिपीठ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन टुकड़ों में माता सती की योनि और गर्भ भाग असम के नीलांचल पर्वत पर गिरा था, जिससे कामख्या महापीठ की स्थापना हुई थी, इसलिए अब इसे कामाख्या माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।
वहीं इसके पीछे यह भी मान्यता जुड़ी हुई है कि, देवी के योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती है, यानि की मासिक धर्म से होती हैं। वहीं यह माता के सभी शक्तिपीठों में से सबसे प्रमुख माना जाता है। जिससे आज हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।
कामदेव से जुड़ी है कामाख्या माता मंदिर की कथा:
माता के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक माता कामख्या देवी मंदिर से संबंधित एक अन्य कथा भी काफी प्रचलित है, जिसके मुताबिक जब कामदेव भगवान ने अपना पुरुषत्तव खो दिया था, तब उन्हें इसी स्थान पर सती के गिरे योनी और गर्भ से दोबारा अपना पुरुषतत्व वापस मिला था।
भगवान शिव और पार्वती से जुड़ी अन्य प्रचलित कथा:
शक्ति साधना के लिए प्रसिद्ध कामख्या देवी मंदिर से भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ी एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के बीच प्रेम की शुरुआत यहीं से हुई थी, इसे संस्कृत में काम कहा जाता है, इसी वजह से इस मंदिर का नाम कामख्या मंदिर पड़ा।
कामख्या देवी शक्तिपीठ में नहीं है कोई भी देवी की प्रतिमा
अंबा देवी के सबसे प्रमुख शक्तिपीठ कामख्या देवी मंदिर में अंबा या दुर्गा देवी की कोई भी प्रतिमा मौजूद नहीं है, यहां सिर्फ देवी के योनि भाग की ही पूजा-आराधना होती है।
असम के इस मंदिर में योनि की रुप में बनी एक समतल चट्टान की पूजा आराधना होती है। इस प्रसिद्ध मंदिर के पास एक कुंड बना हुआ है, जो कि हमेशा, फूलों से ढका रहता है, वहीं इस स्थान के पास में ही एक मंदिर भी है, जहां पर देवी की प्रतिमा स्थापित है। यह पीठ माता के सभी पीठों में महापीठ माना जाता है।
अम्बुबाची पर्व के दौरान मां कामाख्या होती है रजस्वला :
एक तरफ जहां पूरे देश में महिलाओं के मासिक धर्म को अछूत एवं अपवित्र माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ मासिक धर्म के दौरान कामख्या देवी को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है।
वहीं सभी शक्तिपीठों में से प्रमुख कामख्या देवी मंदिर में यह कथा भी काफी प्रचलित है कि यहां पर माता का योनि हिस्सा गिरा था, जिसकी वजह से यहां पर माता 3 दिनों के लिए रजस्वला यानि मासिक धर्म से होती हैं।
यहां हर साल अम्बुबाची मेला के दौरान 3 दिन तक मंदिर बंद रहता है और इस दौरान मंदिर के पास में स्थित ब्रहापुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है।
ऐसी मान्यता है कि ब्रहा्पुत्र नदी का पानी कामख्या देवी के मासिक धर्म के कारण लाल होता है। 3 दिनों के बाद इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
भक्तों को प्रसाद के रुप में बांटा जाता है गीला कपड़ा:
लाखों हिन्दुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ा कामख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर का प्रसाद भी अन्य शक्तिपीठों से बिल्कुल अलग है। यहां माता कामख्या के दर्शन के लिए आने वाले भक्तजनों को प्रसाद के रुप में एक गीला कपड़ा वितरित किया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि, जब इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ में माता कामख्या मासिक धर्म से होती है, तब मंदिर के अंदर एक सफेद रंग का कपड़ा बिछा दिया जाता है।
वहीं जब 3 दिन बाद मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह कपड़ा लाल रंग का हो जाता है, वहीं इस गीले लाल रंग के वस्त्र को अम्बुबाची वस्त्र कहते हैं, जिसे प्रसाद के रुप में भक्तों में वितरित किया जाता है।
भैरव बाबा के दर्शन
असम के गुवाहटी में ब्रह्रापुत्र नदी के पास नीलांचल पर्वत में स्थित माता कामख्या देवी के मंदिर के पास उमानंद भैरव बाबा का मंदिर बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि मां कामाख्या देवी की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती है, जब तक भैरव बाबा के दर्शन नहीं हो जाते।
इसलिए कामाख्या माता मंदिर के दर्शन करने के बाद उमानंद भैरव बाबा के दर्शन जरुर करें।
कामाख्या देवी मंदिर शक्ति साधना एवं तंत्र विद्या का सबसे बड़ा केन्द्र
असम में स्थित कामाख्या देवी का मंदिर शक्ति साधना एवं तंत्र विद्या का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है एवं प्रत्येक वर्ष जून के महीने में लगने वाले अम्बुबाची मेले के दौरान यहां भारी संख्या में तांत्रिक और साधु-संत आते हैं।
इस दौरान यहां माता कामाख्या का रजस्वला अर्थात मासिक धर्म होने का पर्व मनाया जाता है एवं इस दौरान ब्रह्रापुत्र नदी का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है। इसलिए लाखों लोगों की इस मंदिर से आस्था जुड़ी हुई है।
कामख्या मंदिर से जुड़े कुछ तथ्य –
- भारत में असम में स्थित कामख्या माता मंदिर हिन्दू धर्म से जुड़ा इकलौता ऐसा मंदिर है जहां मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और 3 दिन तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। माता के मासिक धर्म खत्म होने के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। वहीं इस दौरान माता के जलकुंड में पानी की जगह रक्त प्रवाहित होता है।
- माता के सर्वोत्तम शक्तिपीठ में से एक मां कामाख्या देवी 64 योगनियों और दस महाविद्याओं के साथ यहां विराजित है। माता के 10 रुप – भुवनेश्वरी, तारा, छिन्न मस्तिका, बगला, धूमावती, सरस्वती, काली, मातंगी, कमला और भैरवी एक ही जगह पर विराजित हैं।
- मंदिर परिसर में योनि के आकार की एक समतल चट्टान है, जिसकी पूजा की जाती है।
- ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ महीने के 7वें दिन मां कामख्या देवी रजस्वला होती है, वहीं 3 दिन बाद जब मां कामाख्या की महावारी खत्म होती है, तब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं एवं भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
- प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक कामाख्या देवी का मंदिर पशुओं की बलि देने के लिए भी काफी मशहूर है, वहीं इस मंदिर में मादा पशुओं की बलि नहीं दी जाती है, सिर्फ नर पशुओं की ही बलि दी जाती है।
कामाख्या मंदिर तक कैसे पहुंचे – How To Reach Kamakhya Temple
असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित सर्वोच्च ज्ञानपीठों में से एक माता कामाख्या माता का मंदिर की दूरी गुवाहटी से करीब 8 किलोमीटर है। यहां सड़क, रेल और वायु मार्ग की अच्छी सुविधा है।
यहां आने वाले दर्शानार्थी, तीनों मार्गों द्धारा यहां सहूलियत के साथ पहुंच सकते हैं। वहीं इस मंदिर के दर्शन के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च तक का माना गया है।
कामाख्या मंदिर का समय
यह मंदिर भक्तों के सुबह 08:00 AM से दोपहर 01:00PM तक और दोपहर 02:30PM से शाम 05:30PM तक खुला रहता हैं।