हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में नगरकोट धाम कांगड़ा की माता ब्रजेश्वरी देवी का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। मान्यता है कि इस स्थान पर सती का बायां वक्षस्थल गिरा था। जनसाधारण में ये कांगड़े वाली देवी के नाम से विख्यात हैं।
जिस नगरकोट की इस दुर्गा स्तुति में वर्णन किया गया है वो हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। यहाँ ब्रजेश्वरी मंदिर या कांगड़ा देवी मंदिर स्थित है।
कांगड़ा का पुराना नाम नगर कोट था और रह कहा जाता है कि इस मंदिर को पांडव काल में बनाया गया था। व्रजेश्वरी मंदिर के गृभ ग्रह में माता एक पिण्डी के रुप में विराज मान है, इस पिंडी की ही देवी के रूप में पूजा की जाती है। ब्रजेश्वरी मंदिर में कई देवी व देवताओं की प्रतिमाएँ भी विराजमान हैं तथा मंदिर के बायें तरफ भैरव नाथ की मूर्ति विराजमान है। भैरव नाथ भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है।
ब्रजेश्वरी देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक माना जाता है। माँ ब्रजेश्वरी देवी के दर्शनों के लिए यहाँ पूरे भारत से श्रद्धालु आते हैं। नवराात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में पहुंचते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में उन्हे न बुलाने पर उन्होने अपना और भगवान शिव का अपमान समझा और उसी हवन कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये थे। तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड के चक्कर लगा रहे थे। उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था और उनके ऊग धरती पर जगह-जगह गिरे। जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया। उसमें से सती की बायां वक्षस्थल इस स्थान पर गिरा था जिसे माँ ब्रजेश्वरी या कांगड़ा माई के नाम से पूजा जाता है।
मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है।मां ब्रजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर मां की प्रात: आरती संपन्न होती है। खास बात यह है की दोपहर की आरती और मां को भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है।
मां ब्रजेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर की कथा - Maa Bajreshwari Devi Mandir lKi Katha एक अन्य आख्यान के अनुसार जालंधर दैत्य की अधिवासित भूमि जालंधर पीठ पर ही देवी ने वज्रास्त्र के प्रहार से उसका वध किया था। प्रचीन कथा के अनुसार कांगड़ा में जालंधर दैत्य का किला हुआ करता था।इस दैत्य का वक्ष और कान का हिस्सा कांगड़ा की धरती पर गिरकर वज्र के समान कठोर हो गया था। उसी स्थान पर वज्रहस्ता देवी का प्राकट्य हुआ। वज्रवाहिनी देवी को शत्रुओं पर विजय पाने के लिए भी पूजा जाता रहा है।
यह मंदिर 10वीं शाताब्दी तक बहुत ही समृद्ध हुआ करता था। इस मंदिर को कईं विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार लुटा था। सन 1009 में मौम्मद गजनी ने इस मंदिर को पूरी तरह से तबाह कर दिया था और इस मंदिर में चाँदी से बने दरवाजों तक को उखाड कर ले गया था। यह भी माना जाता है कि मौम्मद गजनी ने इस मंदिर को ही पांच बार लुटा था। उसके बाद 1337 में मौम्मद बीन तुकलक और पांचवी शाताब्दी में सिंकदर लोदी ने भी इस समृद्ध शक्तिपीठ में लूट मचाई थी और नष्ट कर दिया था। इस मंदिर को कई बार लुटा और तोड़ा गया, लेकिन फिर भी इसे बार बार पुनः स्थापित किया जाता रहा। लोगों का कहना है कि सम्राट अकबर भी यहां आये थे और उन्होंने इस मंदिर के पुनः निर्माण में सहयोग भी दिया था।
मां ब्रजेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर की कथा - Maa Bajreshwari Devi Mandir lKi Katha
1905 में बहुत बडा भूकंप आया था और उस भूकंप ने इस मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण 1920 में किया गया था।
माता ब्रजरेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठी और विशेष है क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं. कहते हैं ब्रजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं. पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख संप्रदाय का प्रतीक है
मां ब्रजेश्वरी देवी की इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है. सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है. उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है. मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है. उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं. फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर संपन्न होती है मां की प्रात: आरती
कांगड़ा मंदिर कैसे पहुंचें:
यहां के लिए हिमाचल प्रदेश और सीमावर्ती राज्यों के शहरों से सीधी बस की सुविधा उपलब्ध है। पठानकोट निकटतम रेलवे स्टेशन है। वहां से लगभग 3 घंटे में सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। छोटी रेल लाइन से कांगड़ा मंदिर स्टेशन पर उतरना उचित है। मंदिर नगर क्षेत्र में ही है, इसलिए पहुंचने में परेशानी नहीं होती।