सावन का महीना पूरी तरह से देवों के देव यानी महादेव को समर्पित होता है और इस दौरान जो भक्त पूरे श्राद्ध भाव से शिव की पूजा एवं जल अभिषेक करते हैं तो उनकों पापों से मुक्ति मिल जाती है। सावन के इस पावन दिनों में भक्त शिव मंदिर या फिर प्रमुख ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाते रहते हैं। भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते रहते हैं।
ऐसे में अगर आप भी शिव भक्त हैं और आप महाराष्ट्र में मौजूद त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास और कुछ रोचक तथ्य जानना चाहते हैं तो फिर आपको इस लेख को ज़रूर पढ़ना चाहिए। क्योंकि इस लेख में हम आपको त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का इतिहास
नासिक जिले में स्थित से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य कहते हैं कि भगवान शिव को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण मराठा साम्राज्य के पेशवा नानासाहेब ( Peshwa Nanasaheb ) ने एक शर्त पर करवाया था। शर्त यह थी कि यहाँ स्थापित ज्योतिर्लिंग का पत्थर अंदर से खोखला है या फिर नहीं। परन्तु पेशवा नानासाहेब अपनी शर्त हार गए। इसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण भव्य तरीके से वर्ष 1755 से 1786 के मध्य में करवाया। उन्होंने यहाँ विराजित भगवान शिव की प्रतिमा को नासक डायमंड से निर्मित करवाया। परन्तु दुर्भाग्यवश एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान अंग्रेजो ने यहाँ के डायमंड को लूट लिया था।
इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण नानासाहेब पेशवा ने करवाया था। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण 1755 से शुरू हुआ था। जो 1786 तक पूर्ण किया गया था। लेखों के अनुसार इस प्रसिद्ध, भव्य तथा आकर्षित मंदिर का निर्माण कार्य के लिए लगभग 18 लाख खर्च किए गए थे। कहा जाता है कि त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है, इस मंदिर का निर्माण कार्य बहुत ही अद्भुत, अनोखी तथा आकर्षित है। यह मंदिर का भव्य इमारत सिंधु आर्यशैली का अद्भुत उदाहरण है। इस मंदिर के गर्भगृह में से देखने के पश्चात सिर्फ आंख ही दिखाई देती है, ना की लिंग। यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो 1 इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं, जिसे त्रिदेव लिंग कहा जाता है,जो ब्रह्मा विष्णु महेश का अवतार माना जाता है। त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंगकी पौराणिक कथा - Trimbakeshwar Jyotirlinga Ki Pauranik Katha
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की मान्यताएं-
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक होने के कारण इसे अन्य ज्योतिर्लिंग की तरह पवित्र और वास्तविक माना जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर हिंदू धर्म की वंशावली का पंजीकरण माना जाता है। इस मंदिर में वंशावली पंजीकरण के साथ ही इस मंदिर के पंचकोशी में काल सर्प शांति ,त्रिपिंडी विधि और नारायण नागवली विधि आदि भी करवाई जाती है। यह आयोजन भत्तफ़ों द्वारा अपनी मनोकामना पूरी या अपनी इच्छा पूर्ण होने के बाद किया जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर भगवान शिव की मंदिर होने के कारण इस मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव एक ही स्वरूप में विराजित है, जिस कारण इसे त्रिदेव स्वयं विराजित मंदिर कहा जाता है। भगवान शिव की मंदिर होने के कारण यह हिंदू धर्म की मान्यता कही जाती है। कहां जाता है इस स्थल पर मां गंगा जी ने पुनः अवतार लिया था।
त्र्यंबकेश्वर महादेव की सवारी एवं पूजनः-
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की पूजन विधि में उज्जैन और ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग की भांति =बंकेश्वर महादेव की एक राजा की भांति प्रत्येक सोमवार को शाही सवारी निकाली जाती है त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखोटे को पालकी में बिठा कर गांव में भ्रमण कराया जाता है। पुराणों के अनुसार कहा गया है कि, गांव में घुमाने के पश्चात कुशावर्त घाट तीर्थ में स्नान कराया जाता है।
पुराणों के अनुसार गोदावरी नदीं पहले गायब हो जाया करती थी। कुशवत कुंड वह स्थान है जहां गौतम ऋषि ने गोदावरी नदी को अपने तप के बल से एक कुशा से बांध दिया था। तभी से इस स्थान पर कुशावर्त नामक कुंड है।
इसके बाद मुखोटे को वापस मंदिर में लाकर हीरे जड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। इस यात्र से एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। =यंबकेश्वर मंदिर में भत्तफ़ों की भीड़ शिवरात्रि तथा सावन सोमवार के दिनों में ज्यादा देखने को मिलती है। इन दिनों में आने वाले भत्तफ़ अपने आराध्य देवता भगवान शिव जी की पूजा करने के लिए सुबह के समय स्नान करके मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की विशेषताः-
त्र्यंबकेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। सभी ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का अलग ही महत्व है। इस ज्योतिर्लिंग का अलग होने का कारण है कि इसमें त्रिदेव की स्थापना है जिसमें ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों देव निवास करते हैं। इस मंदिर की यह विशेषता है कि इसका निर्माण कार्य बहुत ही अद्भुत अलौकिक तथा भव्य निर्माण है।
त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंगकी पौराणिक कथा - Trimbakeshwar Jyotirlinga Ki Pauranik Katha
इस प्राचीन मंदिर का रहस्य महर्षि गौतम के साथ जुड़ा हुआ है। पुराणों की लेख अनुसार कहा जाता है कि, महर्षि गौतम की मठ में ब्राह्मणों तथा उनकी पत्नियों का निवास था। ब्राह्मण की पत्नियां महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से किसी कारणवश नाराज थी। इस निराशा के कारण उन्होंने अपने पतियों से अनुरोध किया कि वे महर्षि गौतम को अपमान करें तथा इस आश्रम से निकाले। इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए सभी ब्राह्मणों ने भगवान श्री गणेश जी की आराधना की। भगवान श्री गणेश जी ब्राह्मणों के द्वारा की गई श्रद्धा पूर्वक उपासना से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रगट हुए और उनसे अपनी इच्छा पूर्वक वर मांगने का प्रस्ताव किया।
भगवान शिव का वरदानः-
श्रद्धा पूर्वक विधि को पूर्ण करने के पश्चात भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गौतम ऋषि को दर्शन दिए। उनसे कहा कि वह अपनी इच्छा पूर्वक कोई वरदान मांग सकते हैं। ऋषि ने अपनी वॉइस इच्छा में गौ हत्या के पाप से मुत्तिफ़ पाने के लिए वरदान मांगा। यह वाक्य सुनते ही शिवजी ने बताया कि यह कोई पाप नहीं है, ब्राह्मणों के द्वारा मांगे गए वरदान को पूर्ण करने के लिए श्री गणेश जी ने यह किया था। जिसके लिए शिव जी कहते हैं, कि वह ब्राह्मणों को दंड देना चाहते हैं। तो महर्षि गौतम ने भगवान शिव जी से अनुरोध किया कि वह ऐसा ना करें क्योंकि ब्राह्मणों के कारण ही मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए।
वहां उपस्थित ऋषि-मुनियों एवं देवताओं ने महर्षि गौतम का समर्थन किया। आदिशंकर से उस स्थान पर सदा के लिए विराजित होने की इच्छा प्रकट की। जिसके पश्चात यह स्थान त्रिदेव एवं शिवशंभू महादेव के 10 वें ज्योतिर्लिंग त्रंबकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है।