प्रम्बानन शिव मंदिर (Prambanan Mandir) इंडोनेशिया देश के जावा शहर के पास योग्यकर्ता शहर से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक विशाल मंदिर है। इसे वहां की स्थानीय भाषा में रोरो जोंग्गरंग मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा कुछ लोग इसे प्रम्बानन मंदिर इंडोनेशिया या प्रमबनन मंदिर इंडोनेशिया भी कह देते हैं। यह छोटे-बड़े मंदिरों को मिलाकर कुल 240 मंदिरो का समूह है जिनमे से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं किंतु तीन मुख्य मंदिर जो कि त्रिदेव को समर्पित हैं, वे आज पुनरुद्धार के बाद जीवंत अवस्था में हैं।
यह इंडोनेशिया का सबसे बड़ा व एशिया का एक तरह से दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। इसकी कुल ऊंचाई 154 फुट (47 मीटर) है जिसका निर्माण 9वीं शताब्दी में महाराज पिकाटन ने करवाया था। आज हम आपको जावा में स्थित प्रम्बनन शिव मंदिर का इतिहास, कहानी, सरंचना इत्यादि के बारे में विस्तार से बताएँगे।
प्रम्बानन शिव मंदिर का इतिहास (Prambanan Mandir Ki Katha in Hindi)
सबसे पहले इंडोनेशिया में सनातन धर्म को मानने वाले लोग रहते थे लेकिन सम्राट अशोक के शासन काल में बौद्ध धर्म तेजी से फैला। उन्होंने भारत के उत्तर व दक्षिण में बौद्ध धर्म का जमकर प्रचार करवाया। फलस्वरूप इंडोनेशिया में भी बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ती चली गयी।
इंडोनेशिया में लगभग एक सदी तक बौद्ध धर्म को मानने वाले राजाओं का राज रहा जिनमे शैलेन्द्र राजवंश प्रमुख था। इसके बाद वहां फिर से हिंदू धर्म का राज आया व संजय राजवंश के राजा रकाई पिकाटन (Rakai Pikatan Prambanan) राजा बने। उन्होंने वहां हिंदू धर्म की पुनः स्थापना के उद्देश्य से इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया जो मुख्यतया भगवान शिव को समर्पित था।
इस मंदिर का निर्माण 850 ईसवीं में शुरू हुआ था जो राजा पिकाटन के नेतृत्व में 856 ईस्वी में पूरा हो गया था। इसके बाद संजय राजवंश के अन्य राजाओं ने इस मंदिर को विस्तार दिया जिनमे राजा लोकपाला व बलितुंग महाशंभू प्रमुख थे।
इस मंदिर का शुरूआती नाम शिवगृह था अर्थात भगवान शिव का घर। मंदिर के पास ओपक नदी (Opak River) बहती थी जिसकी दिशा को मंदिर निर्माण के लिए मोड़ दिया गया था ताकि मंदिर को और बड़ा स्थान मिल सके। इसके साथ ही बाद के राजाओं द्वारा इसे और विस्तार दिया गया व मुख्य मंदिर के चारो ओर अन्य छोटे मंदिर क्रमानुसार बनाए गए।
लगभग एक सदी तक विभिन्न राजाओं के द्वारा इस मंदिर का निर्माण जारी रखा गया और इसे विस्तार दिया गया। फिर दसवीं सदी में इस्याना राजवंश ने मध्य जावा से पूर्वी जावा को अपनी राजधानी बना लिया और इस क्षेत्र को छोड़ दिया गया। ऐसा उस क्षेत्र में ज्वालामुखी के बढ़ते प्रभाव के कारण किया गया। इसके बाद यह जगह खाली रहने लगी और धीरे-धीरे भुला दी गयी। मंदिर के चारों ओर विशाल जंगल, पेड़-पौधे, खरपतवार इत्यादि फैलने से यह कई सदियों तक अनदेखा रहा।
प्रम्बानन मंदिर का तोड़ा जाना (Prambanan Temple Attack In Hindi)
कुछ सदियों के बाद जब भारत की भूमि पर अफगान व मुगलों के आक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ गए थे तो उससे इंडोनेशिया भी अछूता नही था। फिर एक समय बाद यहाँ पूर्ण रूप से इस्लामिक शासन की स्थापना हो गयी। उस समय यहाँ सनातन व बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों का व्यापक नरसंहार हुआ। मंदिर-गुरुकुल इत्यादि तोड़ दिए गए व सब लूट लिया गया।
इन मंदिरों में प्रम्बनन शिव मंदिर भी था जहाँ मुगल आक्रांताओं ने भीषण तबाही मचाई। लगातार हो रहे नरसंहार के कारण इंडोनेशिया में हिंदू व बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या नगण्य रह गयी। अन्तंतः इंडोनेशिया में इस्लाम धर्म स्थापित हुआ तथा हिंदू व बौद्ध धर्म को इस धरती से पूरी तरह समाप्त कर दिया गया या वे बहुत कम संख्या में बचे रह गए।
फिर 16वीं शताब्दी में आये विनाशकारी भूकंप ने यहाँ और तबाही मचाई। इस भूकंप ने प्रम्बनन शिव मंदिर के बचे हुए मंदिरों को भी ध्वस्त कर दिया। इसमें मुख्य मंदिर भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ व आसपास के अन्य छोटे मंदिर इत्यादि सब टूट गए या खंडहर में बदल गए। इन मंदिरों पर वहां के शासकों ने कोई काम नही करवाया तथा ये वर्षों तक यूँ ही गुमनामी में पड़े रहे।
प्रम्बानन मंदिर का जीर्णोद्धार (Prambanan Mandir Development In Hindi)
इसके बाद वहां पर अंग्रेजों व डच का शासन आ गया। उनके अधिकारियों और पुरातत्व विभाग के लोगों के द्वारा समय-समय पर मंदिर को जाकर देखा गया। मंदिर की विशालता को देखकर वे बहुत आश्चर्यचकित हुए। आसपास के जावानिज लोगो ने इसके इतिहास के बारे में भी उन्हें बताया।
आखिर में डच के राजाओं ने मुख्य मंदिर का पुनः निर्माण करवाने का निर्णय लिया। फिर सन 1918 में मुख्य शिव मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू हुआ। यह काम बीच में कई बार रुका क्योंकि उस समय विश्व ने दो युद्ध देखे थे। अंत में सन 1953 में जाकर मुख्य शिव मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य पूरा हुआ जिसका इंडोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति सुकर्णो (Sukarno) द्वारा उद्घाटन किया गया।
इसके बाद सन 1978 से लेकर 1993 के बीच में दो अन्य मुख्य मंदिरों (विष्णु व ब्रह्मा जी के मंदिर) तथा तीन वाहन मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया गया। सन 1993 में प्रम्बनन शिव मंदिर के 6 मुख्य मंदिर जो कि त्रिदेव व उनके वाहनों को समर्पित थे, जीर्णोद्धार के बाद तैयार हो चुके थे, तब वहां के राष्ट्रपति सुहर्तो (Suharto) ने इसका उद्घाटन किया था।
अभी भी समस्या यह थी कि मंदिर के असली नक्काशीदार पत्थरों को मुगल काल में या तो लूटा जा चुका था या उन्हें बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया था। इसलिए वहां की सरकार ने घोषित किया कि यदि मंदिर के 75 प्रतिशत से नक्काशीदार पत्थर मिल जाते है तो संपूर्ण मंदिर का पुनः निर्माण करवा दिया जाएगा। हालाँकि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य आज भी समय-समय पर होता रहता हैं।
प्राचीन नक्काशी किये हुए व मंदिर के अवशेष ना मिलने के कारण यह मंदिर अभी भी खंडहर की स्थिति में है। किंतु मुख्य मंदिर व अन्य कुछ बड़े मंदिर अब पहले की तुलना में अच्छी अवस्था में हैं। अपनी विशालता और अद्भुत उत्कृष्ट शैली के कारण यह मंदिर खंडहर होने के बाद भी देश-विदेश के लाखों लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता है।
प्रम्बनन मंदिर की सरंचना :
यह मंदिर इतना विशाल है कि आप ऊपर दिए गए चित्र से ही इसका अनुमान लगा सकते है। यहाँ कुल 240 छोटे व बड़े मंदिर थे। मंदिर का पूरा स्थल एक वर्ग के आकर में बनाया गया है जिसमे क्रमानुसार सभी मंदिरों को बनाया गया हैं। इसमें सबसे मुख्य और ऊँचा मंदिर भगवान शिव का है, इसलिए इसे शिव मंदिर या शिवगृह की संज्ञा दी गयी थी। इसके बाद क्रमानुसार मुख्य मंदिरों में भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के मंदिर, तीनों वाहनों के मंदिर, दो अपित मंदिर व चार केरिल मंदिर आते हैं।
मंदिर की सरंचना इतनी विशाल है कि हमे इसे दो भागों में बांटकर आपको समझाना पड़ेगा। पहले चरण में हम आपको मंदिर की बाहरी सरंचना के बारे में बताएँगे जहाँ सभी मंदिरों की स्थिति, दिशा तथा वह किस भगवान से संबंधित हैं, यह बताया जाएगा। दूसरे चरण में मंदिरों की आंतरिक सरंचना के बारे में बताया जाएगा। आइए जानते हैं।
प्रम्बानन शिव मंदिर की सरंचना (प्रम्बानन शिव मंदिर की कथा - Prambanan Mandir Ki Katha in Hindi )
तीन त्रिमूर्ति मंदिर
इसमें सबसे पहले 3 मुख्य मंदिर है जो त्रिमूर्ति को समर्पित है। सबसे बड़ा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जो प्रम्बनन शिव मंदिर के एकदम केंद्र में स्थापित हैं। यह मंदिर सभी मंदिरों में सबसे ऊँचा व विशाल है। अन्य दो मुख्य मंदिर भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा को समर्पित हैं। भगवान विष्णु का मंदिर शिवजी के उत्तर में व ब्रह्मा जी का मंदिर शिवजी के दक्षिण में स्थित है। इन तीनो मंदिर के मुख सूर्योदय की दिशा में अर्थात पूर्व दिशा में हैं।
तीन वाहन मंदिर
इसके बाद आते हैं 3 वाहन मंदिर जो इन तीन मंदिरों के ठीक सामने बने हैं। यह 3 मंदिर भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शिव के वाहनों को समर्पित हैं। भगवान शिव के सामने नंदी का, विष्णु के सामने गरुड़ का व ब्रह्मा के सामने हंस का मंदिर है। इन तीनो मंदिरों के मुख सूर्यास्त की दिशा में अर्थात पश्चिम दिशा में हैं।
दो अपित मंदिर (Apit Mandir Prambanan)
त्रिमूर्ति व उनके तीन वाहनों के बीच में उत्तर व दक्षिण दिशा की ओर मुख किये हुए दो और मंदिर है जिनमे अब मूर्तियां नहीं है। मान्यता हैं कि भगवान ब्रह्मा के पास स्थित मंदिर माता सरस्वती को व भगवान विष्णु के पास स्थित मंदिर माता लक्ष्मी को समर्पित था। अपित को जावानिज भाषा में बगल में कहा जाता है। मुख्य मंदिरों के बगल में स्थित होने के कारण इनका नाम अपित मंदिर पड़ा।
चार केलिर मंदिर (Kelir Mandir Prambanan)
जैसा कि आप ऊपर चित्र में देख सकते हैं कि पूरा मंदिर एक विशाल वर्ग के आकार में फैला हुआ हैं जिसमें 240 मंदिर बने हुए हैं। इस विशाल वर्ग के बीचों बीच एक छोटा वर्ग हैं जिसमे सभी मुख्य मंदिर स्थित हैं। इस आंतरिक वर्ग में त्रिमूर्ति, वाहन व अपित वाले कुल 8 मंदिर स्थित हैं। आंतरिक वर्ग के चारों ओर बाह्य वर्ग की भांति दीवार बनाई गयी है। इस वर्ग में प्रवेश करने के लिए चारों दिशाओं से चार अन्य मंदिर बनाए गए हैं जिन्हें केलिर मंदिर नाम दिया गया है।
शिव मंदिर (Shiva Mandir Prambanan)
शिव मंदिर चौकोर क्षेत्र में फैला हुआ सबसे ऊँचा व विशाल मंदिर है। मंदिर की ऊंचाई 47 मीटर व चौड़ाई 34 मीटर है। मंदिर धरातल पर ना होकर ऊंचाई पर स्थित हैं जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गयी हैं। सीढ़ियों से चढ़ने पर आप पाएंगे कि मंदिर को चारों ओर से एक मजबूत दीवार से घेरा गया हैं। मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर हैं अर्थात इसमें पूर्वी दिशा से प्रवेश किया जा सकता है।
मंदिर के बाहरी द्वार पर दोनों ओर दो कक्ष है जिनमे महाकाल व नन्दीश्वर की मूर्तियां स्थापित हैं। सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर में प्रवेश करने पर वहां 5 कक्ष और मिलेंगे। इनमे से मुख्य कक्ष मंदिर के मध्य में स्थित है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। मुख्य कक्ष के चारों और चारों दिशाओं में चार कक्ष हैं। मंदिर में प्रवेश करने पर हम पूर्वी कक्ष में प्रवेश करेंगे जो कि मुख्य कक्ष से जुड़ा हुआ है।
मुख्य कक्ष में भगवान शिव को समर्पित 3 मीटर ऊँची मूर्ति स्थापित हैं। यह मूर्ति कमल के आकार की योनी पर खड़ी है। भगवान शिव के मुकुट पर अर्द्धचंद्रमा, मस्तिष्क के मध्य में तीसरी आँख भी बनी हुई हैं। मूर्ति के चार हाथ हैं जिससे उन्होंने त्रिशूल, डमरू व जपमाला पकड़ी हुई हैं।
पूर्वी दिशा के कक्ष में कोई मूर्ति नही हैं। उस कक्ष से केवल मुख्य कक्ष में प्रवेश किया जाता हैं। मुख्य मंदिर के अन्य तीन दिशाओं के कक्ष किसी ना किसी को समर्पित हैं। इसमें उत्तर दिशा के कक्ष में माँ दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी मूर्ति, दक्षिण में महर्षि अगस्त्य की मूर्ति व पश्चिम में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित हैं।
विष्णु व ब्रह्मा मंदिर
भगवान शिव के बाद दो मुख्य मंदिर भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा को समर्पित हैं। दोनों मंदिरों की ऊंचाई 33 मीटर व चौड़ाई 20 मीटर हैं। इन दोनों मंदिरों में प्रवेश करने के लिए भी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। शिव मंदिर की भांति इनमे कई कक्ष नही हैं बल्कि एक मुख्य कक्ष ही हैं जहाँ पर भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी को समर्पित मूर्तियाँ स्थापित हैं।
नंदी, गरुड़ व हंस मंदिर
तीनों मुख्य मंदिरों के सामने उनके वाहनों के मंदिर स्थित हैं। जिसमें भगवान शिव के मंदिर के सामने वाहन नंदी का मंदिर, भगवान विष्णु के सामने वाहन गरुड़ का मंदिर व भगवान ब्रह्मा के सामने वाहन हंस का मंदिर हैं। तीनों मंदिरों का मुख पश्चिम दिशा की ओर हैं या यूँ कहे कि अपने भगवान के मुख्य मंदिरों की ओर हैं।
नंदी मंदिर में प्रवेश करने पर सामने नंदी जी की विशाल मूर्ति है। मूर्ति के ठीक पीछे दोनों ओर सूर्यदेव व चंद्रदेव की मूर्तियाँ स्थापित है। सूर्यदेव अपने रथ पर 7 घोड़ो के साथ व चंद्रदेव अपने रथ पर 10 घोड़ो के साथ स्थापित है। गरुड़ व हंस मंदिरों में अब गरुड़ व हंस देव की मूर्तियाँ नही हैं। इन मूर्तियों को मुगल आक्रांताओं के द्वारा या तो ध्वस्त कर दिया गया था या लूट लिया गया था।
प्रम्बानन मंदिर की दीवारों पर रामायण व महाभारत काल के भित्ति चित्र :
तीनों मुख्य मंदिरों की दीवारों पर अंदर की ओर भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के समय से जुड़ी विभिन्न कथाओं को भित्तिचित्रों के माध्यम से जीवंत रूप दिया गया हैं। इसमें आप माता सीता का रावण द्वारा अपहरण, हनुमान का वानर सेना के साथ श्रीराम की सहायता करना, श्रीराम का रावण पर आक्रमण व उसका वध, भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की लीलाओं समेत कई अन्य कथाएं चित्रों के माध्यम से देख सकते हैं।
चित्रों को भी क्रमानुसार व मंदिर घूमने के अनुसार बनाया गया हैं। यह चित्र शिव मंदिर में प्रवेश करने से लेकर शुरू होते हैं जो मंदिर की प्रदक्षिणा करने के अनुसार चलते रहते हैं। शिव मंदिर में श्रीराम के जीवन से संबंधित चित्र बने हुए हैं जो ब्रह्मा मंदिर तक जाते हैं। विष्णु मंदिर पर श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं।
इसके साथ ही इन तीनों मंदिरों की बाहरी दीवारों पर भी चित्रों को उकेरा गया हैं। शिव मंदिर पर लोकपालों के चित्र, विष्णु मंदिर पर देवताओं व अप्सराओं के चित्र तथा ब्रह्मा मंदिर पर ऋषि-मुनियों के चित्रों को उकेरा गया हैं। मंदिर की निचली बाहरी दीवारों पर विभिन्न पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के आकार के चित्रों को उकेरा गया हैं।
इस मंदिर को रोरो जोंग्गरंग के नाम से भी जाना है। मुख्य मंदिर में स्थापित माँ दुर्गा की मूर्ति को रोरो जोंग्गरंग के नाम से पूजा जाता है जिसे एक समय की राजकुमारी का असली मूर्त रूप बताया गया है। इसके पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।
एक समय में यहाँ के दो राजाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। उनके नाम थे प्रबु बोको व प्रबु दमार मोयो। मोयो के बेटे राजकुमार बांडुंग बोंदोवोसो ने राजा बोको की हत्या कर दी। राजा बोको की एक सुंदर बेटी थी जिसका नाम था रोरो जोंग्गरंग। राजकुमार उसकी सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे राजकुमारी ने ठुकरा दिया।
बोंदोवोसो के बार-बार कहने पर राजकुमारी ने उनके सामने शर्त रखी कि यदि वह प्रम्बनन मंदिर के पास एक रात में 1000 मूर्तियों को बनवा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। उसने यह शर्त मान ली और अपनी शक्तियों के द्वारा एक रात में ही 999 मूर्तियों का निर्माण करवा दिया। यह देखकर राजकुमारी ने आसपास के सभी चावल के खेतो में आग लगवा दी। इस कारण वहां दिन जैसा उजाला हो गया व बोंदोवोसो शर्त हार गया।
जब बन्दुंग को राजकुमारी के द्वारा किये गये छल का पता चला तो वह इतना क्रोधित हो गया था कि उसने राजकुमारी को स्वयं एक मूर्ति बन जाने का श्राप दे दिया। इस तरह 1000वीं मूर्ति के रूप में रोरो जोंग्गरंग की स्थापना हुई जिसकी पूजा आज तक वहां के लोग करते हैं।
प्रम्बानन शिव मंदिर से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- सन 1991 में यूनेस्को के द्वारा प्रम्बनन शिव मंदिर को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में सम्मिलित किया जा चुका है।
- यह मंदिर कुल 39.8 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- हालाँकि प्रम्बनन मंदिर का संपूर्ण क्षेत्रफल बहुत बड़ा हैं जिसमें 4 मंदिर (एक हिंदू व तीन बौद्ध) आते हैं। एक तो प्रम्बनन शिव मंदिर ही हैं जो अपने आप में 240 मंदिरों का विशाल समूह हैं। इसके अलावा बुब्रुह, लुम्बुंग व सेवू बुद्ध मंदिर भी इसी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
- इंडोनेशिया की स्थानीय जावानीज भाषा में प्रम्बनन शिव मंदिर को रोरो जोग्गरंग के नाम से जाना जाता है।
- शिव मंदिर के शीर्ष पर बनी आकृति पुन्काक मस्तक के रूप में जानी जाती हैं। यह हमारे आत्म अवलोकन व मोक्ष को दर्शाती है।
- प्राचीन हिंदू मान्यता के अनुसार प्रम्बनन शिव मंदिर के डिजाईन को सुमेरु पर्वत की महामेरु चोटी की भांति तैयार किया गया था। महामेरु चोटी को देवताओं के घर के रूप में जाना जाता है।
- मंदिर के चारों ओर विशाल उद्यान हैं जहाँ आप घूम सकते हैं या आराम कर सकते हैं।
- मंदिर के आसपास खरीदारी करने के लिए कई दुकाने हैं।
कैसे पहुंचे प्रम्बनन शिव मंदिर
मंदिर के पास के सबसे बड़े शहर योग्यकर्ता या सेमामर्ग है। इंडोनेशिया के ज्यादातर सभी बड़े शहरों से योग्यकर्ता के लिए फ्लाइट मिल जाएगी। योग्यकर्ता पहुँचने के बाद आप टैक्सी से क्लातें (Klaten) पहुँच जाए। यहाँ से मंदिर कुछ ही दूरी पर है जहाँ आप पैदल चलकर पहुँच सकते हैं।