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Amarnath Ki Katha

अमरनाथ की कथा – Amarnath Ki Katha

अमरनाथ मंदिर भारतीय हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है भगवान शिव के प्रख्यात मंदिरों में जाना जाता है। भगवान शिव का यह भव्य अमरनाथ मंदिर जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से लगभग 134 किलोमीटर दूर है और समुद्र तल से 13600 फुट की ऊंचाई पर बना हुआ है।
अमरनाथ मंदिर और इस मंदिर की गुफाएं भगवान शिव और माता पार्वती की अमरत्व से जुड़ी हुई है यही कारण है कि इस अमरनाथ धाम को तीर्थों का तीर्थ कहकर भी बुलाया जाता है। इस मंदिर तक पहुचने की यात्रा को अमरनाथ की यात्रा कहा जाता है जो पूरे साल मे लगभग 45 दिन (जुलाई व अगस्त) ही होती है।
           
पवित्र गुफा की विशेषता
इस स्थान की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक बर्फ से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू बर्फ का शिवलिंग भी कहते हैं यह शिवलिंग लगभग 10 फुट ऊचा बनता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
ऐतिहासिक महत्व
इस गुफा का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है, वो इसलिए क्योकि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए थे।
ऐसा माना जाता है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं।
अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी चैथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है।

अमरनाथ की कथा - Amarnath Ki Katha
अमरनाथ मंदिर जम्मू कश्मीर में ऊंचाई पर होने के कारण प्राय बर्फ से ढका रहता है इस मंदिर के चारों ओर बर्फ जमी होती है इसीलिए यह मंदिर वर्ष में केवल एक बार सभी श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है और अमरनाथ यात्रा करके श्रद्धालु यहां पर भगवान शिवलिंग का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
अमरनाथ मंदिर से जुड़ा हुआ इतिहास है कि जम्मू-कश्मीर में आर्य राजा भगवान शंकर के शिवलिंग की पूजा आराधना करते थे जो की बर्फ की बनी हुई थी। राज तरंगिणी के पुस्तक में इस शिवलिंग को अमरेश्वर यानी कि अमरनाथ कहा गया है।
कहा जाता है कि इसी अमरनाथ मंदिर में भगवान शिव माता पार्वती को अमरत्व की कथा यानी की अमर कथा सुना रहे थे तब उन्होंने माता पार्वती को यह कथा सुनाने के लिए एक रुद्र का त्याग किया था जिससे इस गुफा में आग लग गई थी ताकि कोई भी जीवित व्यक्ति या जानवर इस कथा को न सुन सके।
लेकिन कहा जाता है कि जब भगवान शिव माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तब वहां कबूतरों का एक जोड़ा था जो भगवान से उसे अमर कथा सुन रहा था अमर कथा सुनने के बाद वह कबूतर आज भी अमर हो गए हैं और लोग मानते हैं कि वह अमरनाथ मंदिर की गुफा में में अक्सर दिखाई देते हैं
अमरनाथ गुफा की खोज से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य
अमरनाथ धाम और अमरनाथ धाम की यात्रा भारत की प्रसिद्ध तीर्थ यात्राओं में से एक है। अमरनाथ धाम और उसकी यात्रा से जुड़े हुए बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं।
अलग-अलग क्षेत्रों में लोग अलग-अलग मान्यताओं को मानते हैं। लेकिन अमरनाथ शिवलिंग की खोज को लेकर एक कथा अत्यंत प्रचलित है और लगभग पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इसी कथा को मानते आए हैं। कहा जाता है कि जब एक ही कहानी को बार-बार दोहराया जाता है तो एक ऐसा समय आता है जब झूठी बात भी लोगों को सच लगने लगती है। कुछ ऐसा ही झूठ अमरनाथ शिवलिंग की खोज को लेकर भारत के लोगों को सच के रूप में स्वीकार कराया गया।
दरअसल अमरनाथ धाम में अमरनाथ शिवलिंग की खोज को लेकर एक कथा बहुत ज्यादा प्रचलित है जिसके अनुसार यह कहा जाता है कि अमरनाथ शिवलिंग की खोज किसी मुस्लिम गडरिए ने की थी। कहा जाता है कि बूटा मलिक नाम के मुस्लिम गडरिया ने 1850 में इस शिवलिंग को खोजा था। कहा जाता है कि इसी गडरिया ने हीं, बर्फ से निर्मित भगवान शिव के अमरनाथ शिवलिंग को सबसे पहले देखा था जिसके पश्चात लोगों को इसके बारे में पता चला और लोग अमरनाथ की यात्रा करने लगें।
लेकिन फिर भी बहुत से ऐसे भारतीय इतिहासकार पुरातत्वविद थे जो इस मान्यता को सही नहीं मानते थे और इसे लेकर लगातार खोज में जुटे हुए थे। इन्हीं खोजों में इस मान्यता से जुड़ा हुआ सच उभर कर सामने आया है। जिसके ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि कि सदियों से लोग भारतीय हिंदुओं से झूठ बोलते हैं क्योंकि अमरनाथ ज्योतिर्लिंग की खोज किसी मुस्लिम गडरिया ने नहीं की थी बल्कि इसका अस्तित्व पहले से ही लोगों को ज्ञात था। इस बात को प्रमाणित करने के लिए इतिहासकारों ने बहुत सारे मत दिए हैं।
5वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक कई बार हुआ है इस शिवलिंग का वर्णन-
भले ही लोग यह मानते हो कि बाबा बर्फानी के शिवलिंग की खोज मुस्लिम गडरिया ने 19वीं शताब्दी में की थी लेकिन यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है। अमरनाथ शिवलिंग का जिक्र पांचवी शताब्दी से लेकर 17 वीं शताब्दी तक विभिन्न प्रकार की पुस्तकों में साक्ष्य के रूप में संकलित है।
पांचवी शताब्दी में पुराणों की रचना में अमरनाथ ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया है इसके अलावा राज तरंगिणी नाम के ग्रंथ में भी अमरनाथ ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है। राज तरंगिणी ग्रंथ कश्मीर के ऊपर 12वीं शताब्दी में लिखा गया था। पुराणों और राज तरंगिणी ग्रंथ के अलावा आईने अकबरी नाम की पुस्तक में भी इस शिवलिंग का वर्णन किया गया है जो कि 16 वी शताब्दी के दौरान अकबर के शासन काल के बारे में लिखी गई है।
इन सब बातों के अलावा 1842 में ब्रिटिश यात्री जिसका नाम GT Venge था उसने भी अपनी पुस्तक में इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया है साथ ही साथ 17वीं शताब्दी के दौरान ही औरंगजेब के फ्रेंच डॉक्टर फ्रैंकोइस बेरनर ने भी अपनी किताब में इस शिवलिंग का जिक्र किया था।
आईने अकबरी में किया गया है अमरनाथ गुफा का जिक्र –
आपको बता दें कि 16वीं शताब्दी के दौरान अकबर के शासनकाल पर एक पुस्तक लिखी गई जिसका नाम आईने अकबरी था। इस पुस्तक में भगवान शिव के अमरनाथ ज्योतिर्लिंग और अमरनाथ यात्रा दोनों का ही जिक्र मिलता है।
आपको बता दें कि आईने अकबरी के दूसरे खंड के 360 नंबर पेज पर यह बात स्पष्ट लिखी हुई है कि एक गुफा में बर्फ से एक शिवलिंग की आकृति निर्मित है जिसे अमरनाथ कहा जाता है। इसके अलावा यह बात भी लिखी है कि पूर्णिमा के समय इस पवित्र स्थान पर बूंदे गिरती हैं जो बर्फ का रूप लेकर 15 दिनों में शिव के हिम शिवलिंग का निर्माण करती हैं। साथ ही साथ यह भी लिखा हुआ है कि अमावस के समय यह  पिघलने लगता था।
कथन का अर्थ यह है कि अगर मुस्लिम गडरिया की खोज वाली बात के 300 वर्ष पूर्व ही अमरनाथ शिवलिंग के बारे में लोगों को पता था तो फिर भारतीय हिंदुओं से इतना बड़ा झूठ क्यों बोला गया।
अमरनाथ गुफा की खोज से सम्बंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
गडरिए की कहानी को लेकर कुछ लोगों का यह भी मत है कि इस अमरनाथ के शिवलिंग की खोज सबसे पहले एक मुस्लिम गडरिया ने 16 वीं शताब्दी में की थी लेकिन यह मत बिल्कुल भी प्रमाणित नहीं है क्योंकि 16 वीं शताब्दी के दौरान बिना उचित मार्ग से इतनी ज्यादा ऊंचाई पर बिना अक्सीजन के चढ़ना कोई साधारण बात नहीं है और वह भी कोई गडरिया अपनी बकरियां चराने के लिए इतनी ऊंचाई पर नहीं जाएगा।
लेकिन जम्मू-कश्मीर के राजस्थानी इतिहासकार मानते हैं कि अमरनाथ मंदिर की गुफा की खोज 1869 की ग्रीष्म ऋतु में की गई जिसके बाद इस गुफा में औपचारिक यात्रा के लिए 1869 के 3 साल बाद 1872 में कुछ श्रद्धालुओं ने यह यात्रा शुरू की।
एक अंग्रेजी पुस्तक जिसका नाम वैली आफ कश्मीर है जो कि एक लारेंस नाम के अंग्रेज द्वारा लिखी गई है उसका यह मानना है कि कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ की तीर्थ यात्रा करने आए श्रद्धालुओं को अमरनाथ गुफा की यात्रा कराते थे लेकिन बाद में यह जिम्मेदारी वटुकुट के मलिकों ने संभाल ली।
यह मलिक लोग गाइड की तरह तीर्थयात्रियों को गुफा की यात्रा कराते हैं वृद्ध और बीमार व्यक्तियों की देखरेख करते हैं यही कारण है कि आज भी एक चौथाई चढ़ावा मुसलमानों के वंशजों को मिलता है।
दरअसल 14 शताब्दी के लेकर लगभग 300 वर्षों तक विदेशी इस्लामी आक्रांता द्वारा लगातार कश्मीर पर आक्रमण किए जा रहे थे जिसके कारण वहां के हिंदुओं को इस स्थान से मजबूरन पलायन करना पड़ा। और परिणाम स्वरूप दिया हुआ कि लगभग 300 वर्षों के लिए अमरनाथ की यात्रा बिल्कुल बाधित रही हालांकि 18वीं शताब्दी में यह यात्रा फिर से शुरू हो गई।
वर्ष 1991 से लेकर 1995 तक एक बार फिर से अमरनाथ की यात्रा को स्थगित कर दिया गया था क्योंकि उस समय अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले की गुंजाइश बहुत ज्यादा बढ़ गई थी इन आतंकी हमलों के डर से इन 4 वर्षों के लिए अमरनाथ की यात्रा को स्थगित कर दिया गया।
अमरनाथ गुफा में कैसे बनता है शिवलिंग-
अमरनाथ गुफा में शिवलिंग के निर्माण की प्रक्रिया बिल्कुल प्राकृतिक और चमत्कारिक है इस गुफा में प्राकृतिक बर्फबारी से लगातार शिवलिंग के निर्माण होते रहते हैं इसके अलावा भी लोग यह मानते हैं कि यहां पर कई प्रकार के देवी देवताओं की आकृतियां बर्फ के माध्यम से बनती हैं और यही कारण है कि अमरनाथ मंदिर में बर्फ के शिवलिंग बनने के कारण इन्हें बर्फानी और हिमानी बाबा कहकर बुलाया जाता है।
अमरनाथ से जुड़ी हुई पौराणिक अमर कथा का रहस्य-
अमरनाथ मंदिर में शिवलिंग के साथ-साथ इनसे ही गणेश और पार्वती पीठ की थी उत्पत्ति हुई है माना जाता है कि यहां माता सती के कंठ का निपात हुआ था आपको बता दें कि इस मंदिर में स्थित पार्वती पीठ शक्ति के 51 सीटों में से प्रमुख है।
दरअसल इस पवित्र गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को मोक्ष के मार्ग के बारे में बताया था और उन्हें अमृत्व का तत्व देने वाली अमर कथा सुनाई थी यही कारण है कि भगवान शिव के इस धाम को अमरनाथ कहा गया है
कथा सुनाने के लिए भगवान शिव ने किया था पंच तत्वों का त्याग-
भगवान शिव ने यह अमर कथा सुनाने के लिए पंच तत्वों पृथ्वी जल वायु आकाश अग्नि का त्याग किया था।
सर्वप्रथम पहलगांव में इन्होंने नंदी बैल को त्यागा था उसके बाद चंदनवाड़ी में अपनी जटाओं से चंद्रमा का त्याग किया।
चंद्रमा का त्याग करने के पश्चात भगवान शिव शेषनाग झील पहुंचे जहां पर उन्होंने अपने गले से सर्पों का त्याग किया उसके बाद महागुणस पर्वत पर पहुंचकर गणेश जी का त्याग किया जब भगवान ने अपना सर्वस्व त्याग दिया उसके पश्चात पंचतरणी स्थान पर पहुंच कर अपने शरीर के अवयव वाले पांच तत्वों को त्यागा उसके बाद पर्वत मालाओं पर पहुंचकर माता पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाई थी।
अमरनाथ गुफा के कबूतरों की पौराणिक कथा –
माता सती ने हिमालय राज के यहां पार्वती के रूप में अपना दूसरा जन्म लिया इससे पहले वह अपने पूर्व जन्म में महाराजा दक्ष की पत्नी थी जिन का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था।
कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती दोनों एक साथ बैठे हुए थे माता पार्वती ने भगवान शिव के कंठ में में पड़ी मुंडमाला को देखकर बड़े आश्चर्य से पूछा कि आप ही मुंडमाला क्यों धारण करते हैं?
इस बात पर भगवान शिव ने उनकी जिज्ञासा को दूर करते हुए बताया कि उन्होंने जितनी बार अपने शरीर का त्याग किया है भगवान शिव ने उतनी ही मुंडमाला ओं का हार धारण किया। इस बात पर पार्वती माता की जिज्ञासा और बड़ी और उन्होंने भगवान शिव से पुनः प्रश्न किया कि मेरा शरीर नश्वर है जो बार-बार मृत्यु को प्राप्त होता है और पुनः में एक नया जन्म लेते हैं लेकिन आपकी मृत्यु नहीं होती, आप मुझे बताएं कि आप क्यों अमर हैं आप मुझे अमर तत्वों से परिचित कराएं क्योंकि मैं भी अजर अमर होना चाहती हूं।
भगवान शिव ने पुणे उत्तर दिया कि उनकी मृत्यु के पीछे अमर कथा है तब पार्वती जी ने भगवान शिव से अमर कथा सुनने की उत्कंठा जताई। हालांकि कि भगवान शिव ने कई बार उनकी जिज्ञासा को टालने का प्रयास लेकिन जब उन्हें लगा कि अब पार्वती जी की जिज्ञासा बहुत ज्यादा बढ़ गई है तब उन्होंने यह निर्णय लिया कि उन्हें अभी अमर कथा सुना देनी चाहिए
 
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