Kanwar Yatra ki History
कावड़ यात्रा की शुरुआत और प्राचीन कथा - Kanwar Yatra ki History
सावन का महीना भगवान शिव और उनके उपासकों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव को खुश करने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा निकालते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करते हैं.

यात्रा शुरू करने से पहले श्रद्धालु बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों के साथ किसी पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं और इन्हीं टोकरियों में गंगाजल लेकर लौटते हैं. इस कांवड़ को लगातार यात्रा के दौरान अपने कंधे पर रखकर यात्रा करते हैं, इस यात्रा को कांवड़ यात्रा और यात्रियों को कांवड़िया कहा जाता है. पहले के समय लोग नंगे पैर या पैदल ही कांवड़ यात्रा करते थे. हालांकि अब लोग बाइक, ट्रक और दूसरे साधनों का भी इस्तेमाल करने लगे हैं. कावड़ यात्रा की परंपरा का उल्लेख तो किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता लेकिन भगवान परशुराम से जुड़ी एक कथा जरूर है। जिससे कावड़ यात्रा का महत्व पता चलता है। सावन के इस पवित्र महीने में आइए जानते हैं कावड़ यात्रा से जुड़ी इस रोचक कथा के बारे में। कावड़ यात्रा की शुरुआत और प्राचीन कथा - Kanwar Yatra ki History
भगवान परशुराम ने की थी कावड़ यात्रा की शुरुआत
- भगवान विष्णु के अवतार परशुराम अवतार एक बार मयराष्ट्र से होकर निकले तो उन्होंने पुरा नाम के स्थान पर विश्राम किया। वह स्थान परशुराम जी को बहुत सुंदर लगा।
- परशुराम जी ने उसी स्थान पर एक भव्य शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। मंदिर में शिवलिंग की स्थापना के लिए पत्थर लेने वे हरिद्वार के गंगा तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने मां गंगा से एक पत्थर प्रदान करने का अनुरोध किया।
- परशुराम जी की बात सुनकर सभी पत्थर रोने लगे क्योंकि वे देवी गंगा से अलग नहीं होना चाहते थे। तब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर वे ले जाएंगे उसका चिरकाल तक गंगाजल से अभिषेक किया जाएगा।
- भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया। इसके बाद से ही कावड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई। आज भी भक्त कावड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार से गंगाजल लाकर मेरठ स्थित परशुरामेश्वर मंदिर में जल चढ़ाते हैं।
ये है कावड़ यात्रा के नियम (कावड़ यात्रा की शुरुआत और प्राचीन कथा - Kanwar Yatra ki History)
- कावड़ यात्रा में किसी भी तरह के नशे करने की मनाही होती है।
- कावड़ यात्रा में किसी भी तरह के तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली, अंडा यहां तक की लहसुन प्याज भी नहीं खाते हैं।
- यात्रा के दौरान कावड़ को जमीन पर रखने की भी मनाही होती है।
- बिना स्नान किए भी कावड़ यात्री को नहीं छूते हैं। अगर किसी कारणवश कावड़ कंधे से उतारनी पड़े तो बिना शुद्ध हुए दोबारा कावड़ को हाथ न लगाएं।
- कावड़ यात्रा के दौरान तेल, साबुन, कंघी करने या अन्य कोई श्रृंगार सामग्री का उपयोग करने की भी मनाही होती है।
- कावड़ यात्री चारपाई पर नहीं बैठ सकते और ना ही किसी वाहन पर बैठ सकते हैं।
- यात्रा के दौरान चमड़े से बनी चीजों जैसे बेल्ट, पर्स आदि को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए।