भारत के सबसे प्राचीन और रहस्यमयी मंदिरों में विरुपाक्ष मंदिर ( Virupaksha Mandir ) शामिल है जो कर्नाटक राज्य की तुंगभद्रा नदी के समीप हम्पी में अवस्थित है। विरुपाक्ष में ‘विरु’ का अर्थ है – विपरीत और अक्ष से तात्पर्य है पहिया।
यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह मंदिर विपरीत अक्ष वाला है। यहाँ भगवान् शिव के विरुपाक्ष रूप की पूजा किये जाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। भगवान् विरुपाक्ष की पत्नी का नाम पंपा था जिस कारण इस मंदिर को पम्पापति मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ भुवनेश्वरी और विरुपाक्ष की पत्नी पम्पा की मूर्तियां भी बनी हुई हैं।
इसकी अद्भुत वास्तुकला और भव्य इतिहास को देखते हुए इसे UNESCO ने विश्व धरोहर के रूप में भी संग्रहित किया है। भगवान् विरुपाक्ष और उनकी पत्नी पंपा को समर्पित इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ स्थापित शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है।
विरुपाक्ष मंदिर का इतिहास Virupaksha Mandir History In Hindi
विरुपाक्ष मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में कल्याणी के चालुक्य (chalukya dynasty) शासक विक्रमादित्य द्वितीय की रानी लोकमाह द्वारा करवाया गया था। बता दें कि विक्रमादित्य द्वितीय चालुक्य वंश के सबसे शक्तिशाली शासक माने जाते हैं क्योंकि उन्होंने गद्दी सँभालते ही चोल, होयसल और वनवासी के राजाओं को पराजित कर दिया था।
विरुपाक्ष मंदिर हम्पी शहर का सबसे प्राचीन मंदिरों या यु कहें की प्राचीन इमारतों में से एक है जिसके निर्माण में विजयनगर साम्राज्य के सम्राट राजा कृष्णा देव राय जी का अहम योगदान रहा था। वर्ष 1509 मे उन्होंने इस मंदिर में गोपुरम का निर्माण करवाया था। हम्पी स्थित इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य द्वितीय जी की महारानी लोकमहादेवी द्वारा बनवाया गया था।
विरुपाक्ष मंदिर वास्तुकला
इस विशाल मंदिर को द्रविड़ स्थापत्य शैली (विरुपाक्ष मंदिर का इतिहास , Virupaksha Mandir History In Hindi)में निर्मित किया गया है। मंदिर में जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है वे ईंट या चूने से बने हुए हैं। इसका गोपुरम आज से 500 वर्ष पूर्व बनाया गया था जो करीब 50 मीटर ऊँचा है। यहाँ भगवान् शंकर के विरुपाक्ष रूप और उनकी पत्नी पंपा के साथ ही भगवान् गणेश व सवारी नंदी की मूर्ति स्थापित है।
विरुपाक्ष संबंधित पौराणिक कथा
पौराणिक कहानी कहती है कि यह रामायण काल का किष्किन्धा (Kishkindha) है। बताते चलें कि यहाँ स्थापित शिवलिंग के संबंध में जो कहानी है उसका संबंध भगवान् शंकर और रावण से है। जब भगवान् शिव के परमभक्त माने जाने वाले रावण ने भगवान् शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी तो उनकी तपस्या से शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए। रावण के सामने प्रकट उन्होंने वर मांगने को कहा।
रावण ने स्वयं भगवान् शिव (विरुपाक्ष मंदिर का इतिहास , Virupaksha Mandir History In Hindi) को अपने साथ लंका ले जाने का वरदान माँगा। उसकी यह इच्छा सुनकर शिव ने जाने से तो मना कर दिया पर उसके हाथ में एक शिवलिंग दे दिया। रावण को भोलेनाथ ने शिवलिंग दिया था तो उसे लंका ले जाते समय यह यहीं पर स्थापित हो गया था। क्योंकि रावण ने एक वृद्ध व्यक्ति को वह शिवलिंग कुछ समय के लिए पकड़ने के लिए दिया था। लेकिन वृद्ध व्यक्ति उस शिवलिंग को अधिक भार होने के कारण उठा नहीं सका और उसने लिंगम वहीँ पर रख दिया था।
इसके बाद रावण ने लाख प्रयास किये पर वह शिवलिंग अत्यधिक वजनदार होने के कारण टस से मस न हुआ। इस कहानी का ज़िक्र यहाँ मंदिर की दीवारों पर एक चित्र के माध्यम से किया गया है जिसमें रावण शिवलिंग को उठाने का प्रयास कर रहा हैं।
मंदिर का रहस्य -
विरुपाक्ष नामक इस मंदिर का रहस्य (विरुपाक्ष मंदिर का इतिहास , Virupaksha Mandir History In Hindi)यह है कि मौजूद खंभों में से संगीत की ध्वनि सुनाई देती है इसलिए इसे Musical Pillars भी कहा जाता है। खम्भों से सुनाई देने वाले संगीत के रहस्य को जानने के लिए अंग्रेजों ने इन खंभों को तोड़ दिया था ताकि वे जान सकें कि यह संगीत किस वजह से सुनाई देता है। परन्तु खंभों को तोड़ने के बाद वह खोखले निकलें जिसे देखकर अंग्रेज आश्चर्यचकित रह गए। इस तरह खम्भों में से निकलने वाले संगीत का रहस्य आज तक पता नहीं लग पाया है।
मंदिर कैसे पहुंचे?
यहाँ जाने का सबसे ठीक वक़्त अक्टूबर से मार्च के मध्य का हैं। यहाँ तीनों ही माध्यमों रेल, हवाई जहाज, सड़क के रास्ते पहुंच सकते है। इस मंदिर का सबसे नज़दीक हवाई अड्डा बेल्लारी है व नज़दीक का रेलवे स्टेशन होस्पेट हैं।