Vaaman Puraan
वामन पुराण , Vaaman Puraan
'वामन पुराण' नाम से तो वैष्णव पुराण लगता है, क्योंकि इसका नामकरण विष्णु के 'वामन अवतार' के आधार पर किया गया है, परन्तु वास्तव में यह शैव पुराण है। इसमें शैव मत का विस्तारपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। यह आकार में छोटा है। कुल दस हज़ार श्लोक इसमें बताए जाते हैं, किन्तु फिलहाल छह हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इसका उत्तर भाग प्राप्त नहीं है। इस पुराण में पुराणों के सभी अंगों का यथोचित वर्णन किया गया है। इसकी प्रतिपादन शैली अन्य पुराणों से कुछ भिन्न है। ऐसा लगता है कि इसे कई विद्वानों ने अलग-अलग समय पर लिखा था। इसमें जो पौराणिक उपाख्यान दिए गए हैं, वे अन्य पुराणों में वर्णित उपाख्यानों से भिन्न हैं। किन्तु यहाँ उनका उल्लेख स्पष्ट और विवेचनापूर्ण है। (वामन पुराण , Vaaman Puraan)
शैव पुराण होते हुए भी 'वामन पुराण' में विष्णु को कहीं नीचा नहीं दिखाया गया है। एक विशेष बात यह हे कि इस पुराण का नामकरण जिस राजा बलि और वामन चरित्र पर किया गया है, उसका वर्णन यद्यपि इसमें दो बार किया गया है, परंतु वह बहुत ही संक्षेप में है।
राजा बलि
वेदों में कहा गया है- 'यह समस्त जगत विष्णु के तीन चरणों के अन्तर्गत है।' इसी की व्याख्या करते हुए ब्राह्मण ग्रन्थों में एक संक्षिप्त कथानक जोड़ा गया। उसे ही पुराणकारों ने अपने काव्य और साहित्यिक ज्ञान द्वारा एक प्रभावशाली रूप दे दिया। इस उपाख्यान के अन्तर्गत दैत्यराज प्रह्लाद के पौत्र राजा बलि का वैभवपूर्ण वर्णन करते हुए उसकी दानशीलता की प्रशंसा की गई है। (वामन पुराण , Vaaman Puraan)
उपाख्यान इस प्रकार है कि एक बार राजा बलि ने देवताओं पर चढ़ाई करके इन्द्रलोक पर अधिकार कर लिया। उसके दान के चर्चे सर्वत्र होने लगे। तब विष्णु वामन अंगुल का वेश धारण करके राजा बलि से दान मांगने जा पहुंचे। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने बलि को सचेत किया कि तेरे द्वार पर दान मांगने स्वयं विष्णु भगवान पधारे है। उन्हें दान मत दे बैठनां परन्तु राजा बलि उनकी बात नहीं माना। उसने इसे अपना सौभाग्य समझा कि भगवान उसके द्वार पर भिक्षा मांगने आए हैं। तब विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने संकल्प करके भूमि दान कर दी। तब विष्णु ने अपना विराट रूप धारण करके दो पगों में तीनों लोक नाप लिया और तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रखकर उसे पाताल भेज दिया। (वामन पुराण , Vaaman Puraan)
शिव-सती
इस प्रकरण में विष्णु को सृष्टि का नियन्ता और दैत्यराज बलि को दानवीरता प्रदर्शित की गई है। परन्तु यह कथा ही 'वामन पुराण' की प्रमुख वर्ण्य-विषय नहीं है। इस पुराण में शिव चरित्र का भी विस्तार से वर्णन है।
प्रसिद्ध प्रचलित कथाओं के अनुसार सती बिना निमन्त्रण के अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाती हैं और वहां शिव का अपमान हुआ देखकर अग्नि दाह कर लेती हैं। परन्तु 'वामन पुराण' के अनुसार गौतम-पुत्री जया सती के दर्शन के लिए आती हैं। उससे सती को ज्ञात होता है कि जया की अन्य बहनें विजया, जयन्ती एवं अपराजिता अपने नाना दक्ष के यज्ञ में गई हैं। इस बात को सुनकर सती शिव को निमन्त्रण न आया जानकर शोक में डूब जाती है और वहीं भूमि पर गिरकर अपने प्राण त्याग देती है। यह देख शिव की आज्ञा से वीरभद्र अपनी सेना के साथ जाता है और दक्ष-यज्ञ का विध्वंस कर देता है। (वामन पुराण , Vaaman Puraan)
वामन पुराण की संक्षिप्त जानकारी
वामनपुराण में कूर्म कल्प के वृतान्त का वर्णन है और त्रिवर्ण की कथा है। यह पुराण दो भागों से युक्त है और वक्ता श्रोता दोनों के लिये शुभकारक है, इसमें पहले पुराण के विषय में प्रश्न है, फ़िर ब्रह्माजी के शिरच्छेद की कथा कपाल मोचन का आख्यान और दक्ष यज्ञ विध्वंश का वर्णन है। इसके बाद भगवान हर की कालरूप संज्ञा मदनदहन प्रहलाद नारायण युद्ध देवासुर संग्राम सुकेशी और सूर्य की कथा, काम्यव्रत का वर्णन, श्रीदुर्गा चरित्र तपती चरित्र कुरुक्षेत्र वर्णन अनुपम सत्या माहात्म्य पार्वती जन्म की कथा, तपती का विवाह गौरी उपाख्यान कुमार चरित अन्धकवध की कथा साध्योपाख्यान जाबालचरित अरजा की अद्भुतकथा अन्धकासुर और शंकर का युद्ध अन्धक को गणत्व की प्राप्ति मरुदगणों के जन्म की कथा राजा बलि का चरित्र लक्ष्मी चरित्र त्रिबिक्रम चरित्र प्रहलाद की तीर्थ यात्रा और उसमें अनेक मंगलमयी कथायें धुन्धु का चरित्र प्रेतोपाख्यान नक्षत्र पुरुष की कथा श्रीदामा का चरित्र त्रिबिक्रम चरित्र के बाद ब्रह्माजी द्वारा कहा हुआ उत्तम स्तोत्र तथा प्रहलाद और बलि के संवाद के सुतल लोक में श्रीहरि की प्रशंसा का उल्लेख है।